- कला, साहित्य और लोकसंस्कृति में योगदान के लिए देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान
- गांव-गली की प्रतिभा को मिला 'पद्म सम्मान', कला-संस्कृति के सच्चे सपूतों को प्रणाम
लखनऊ : जब भी हम 'पद्म पुरस्कार' का नाम सुनते हैं, तो मन में छवि उभरती है किसी बड़े शहर के प्रतिष्ठित व्यक्ति की, या किसी विख्यात वैज्ञानिक, कोई चर्चित अभिनेता या कोई अनुभवी राजनेता। लेकिन अब ये सोच बदल रही है। अब पद्म पुरस्कार केवल ऊंची इमारतों के दफ्तरों से नहीं, बल्कि मिट्टी से जुड़े सादगी, सरलता में रमे लोगों से भी जुड़ने लगे हैं।
2025 के पद्म श्री पुरस्कारों की सूची इस बदलाव का सबसे जीवंत प्रमाण है। उत्तर प्रदेश के छोटे-छोटे गांवों और कस्बों से निकलकर चार हस्तियों ने यह सिद्ध कर दिया है कि प्रतिभा को न तो दिखावे की आवश्यकता होती है, न ही प्रचार की। वे लोग, जो वर्षों तक गुमनामी में रहकर अपने शिल्प, अपनी भाषा, अपनी लोकधुनों और अपनी मेहनत से समाज को समृद्ध करते रहे आज राष्ट्रीय मंच पर उनकी गूंज सुनाई दे रही है।
यह केवल चार नाम नहीं है, बल्कि एक पूरी सोच का परिवर्तन है, जहां अब उन लोगों को मुख्यधारा से जोड़ा जा रहा है जो बिना किसी दिखावे के दिन-रात अपने कार्यों में लगे हुए हैं। देश के 10 पद्म श्री पुरस्कार में से चार उत्तर प्रदेश के विभूतियों को मिलना प्रदेश के लिए गर्व की बात है। आइए, जानें उन चार प्रेरणादायक व्यक्तित्वों के बारे में, जिन्होंने न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे भारत का सिर गर्व से ऊंचा किया है।
सम्मानित हस्तियों की सूची
ये चार हस्तियां डॉ. श्याम बिहारी अग्रवाल जी , हृदय नारायण दीक्षित जी , गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ जी और डॉ. सत्यपाल सिंह जी हैं।
- डॉ. श्याम बिहारी अग्रवाल जी की कला साधना और शिक्षा के क्षेत्र में निस्वार्थ सेवा ने भारतीय कला जगत में अमिट छाप छोड़ी है। इसलिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- यूपी विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और लेखक हृदय नारायण दीक्षित जी की लेखनी भारतीय संस्कृति, दर्शन और जीवन मूल्यों को दर्शाती है। उनका साहित्य राष्ट्रीय भावना को पोषित करने वाला है। दीक्षित जी लंबे समय तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष भी रहे हैं और भारतीय राजनीति व साहित्य में उनकी गहरी समझ के लिए जाने जाते हैं।
- गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ जी भारतीय ज्ञान परंपरा का प्रकाश स्तंभ हैं। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर और वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के भूमि पूजन के लिए शुभ मुहूर्त शास्त्री जी ने ही निकाला था। वैदिक साहित्य और संस्कृत के क्षेत्र में उनके योगदान को देश भर में सराहा जाता है।
- पैरा एथलेटिक्स के प्रसिद्ध कोच डॉ. सत्यपाल सिंह जी के अथक परिश्रम और खेलों के प्रति समर्पण ने न केवल प्रदेश बल्कि पूरे देश का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोशन किया है।
बदलते समय के पद्म पुरस्कार
एक समय था जब पद्म पुरस्कार केवल महानगरों और राजनीतिक-सामाजिक रसूख वाले व्यक्तियों तक सीमित माने जाते थे। लेकिन अब सरकार की 'जन-जन के पद्म' नीति ने इस अवधारणा को बदल दिया है। पिछले कुछ वर्षों में ग्रामीण भारत की प्रतिभाएं भी इन सम्मानों की हकदार बनी हैं। यह बदलाव एक सकारात्मक और समावेशी समाज की ओर बढ़ते कदम का प्रतीक है।
जनमानस में प्रसन्नता की लहर
उत्तर प्रदेश के कोने-कोने में इन नामों की गूंज सुनाई दे रही है। सोशल मीडिया से लेकर गांव की चौपालों तक, हर जगह इन कलाकारों और साहित्यकारों की मेहनत और सफलता की चर्चा हो रही है। इन चारों व्यक्तियों की सफलता यह बताती है कि प्रतिभा को पहचानने के लिए भौगोलिक सीमाएं कोई मायने नहीं रखतीं। यह सम्मान केवल इन व्यक्तियों का नहीं, बल्कि उन अनगिनत लोगों का भी है, जो सीमित संसाधनों में भी कुछ बड़ा करने का स्वप्न देखते हैं।