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विशेष

आज का पुण्यस्मरण 22 जनवरी

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समर्थ गुरु रामदास पुण्यतिथि

भारतीय संत परम्परा में जो संत हुए उन्होनें मात्र भक्ति मार्ग ही नहीं दिखाया अपितु समाज की स्थति को देखते हुए कभी समाज सुधारक के रूप में कार्य किया तो कभी एक क्रांतिकारी के रूप में. समर्थ गुरु रामदास मुगलों के अत्याचारअनाचार और अराजकता से आहत थे। पूरा उत्तर भारत औरन्जेब के अत्याचारों से त्रस्त था। उन्होनें भारत को इस्लाम के आतंक से मुक्त कराने के योजनाबद्ध तरीके से प्रयास किये। उन्हें एहसास हुआ कि धर्म संघटन और लोक संघटन होगा। तभी राष्ट्र परतंत्रता से मुकाबला कर सकता है।

राष्ट्रधर्म की स्थापना

 उन्होंने धर्म संघटन के लिए कृष्णा नदी के उद्गम महाबलेश्वर में वीर हनुमान मन्दिर बनाया। 1100 मठों की स्थापित किएऔर 1400 महंतों को दीक्षा दी।

 लोगों में राष्ट्रधर्म हिन्दुधर्म और स्वराज्य की भावना जागृत की। वे जानते थे कि लोक संघटन के लिए लोक शक्ति जागृत करनी होगी।  उन्होनें मुसलमानों से अपना राज्य वापस लेने के लिए हिन्दुओं को संगठित कर जनजागरण किया। उन्होनें कहा परमेश्वर को सिर पर धारण करते हुए युद्ध छेड़ दो। धर्म की स्थापना के लिए हमारे देश  को तबाह करने वाले मुगल आक्रान्ताओं पर टूट पड़ो। 

संत रामदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से रूढ़िवादी समाज पर भी चोट की...

जातिगत भेदभाव के कारण समाज का एक बड़ा वर्ग अपमानित हो रहा था.. समर्थगुरु रामदास इसके विरोध में समाज जागरण करने लगे। उन्होनें अपनी रचना ‘दासबोध’ में सैद्धान्तिक रूप से यह बात प्रतिपादित की.. कि सभी के अन्दर एक ही ब्रह्म है। वे कहते हैं:

 ईश्वर के समक्ष ऊँच-नीच का भेद नहीं है।

 उसके सामने राजा और रंक एक ही समान हैं। चाहे पुरुष हो या स्त्री सबका एक ही पद है।

शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास

महाराष्ट्र में गुरु रामदास को समाचार मिला कि शिवाजी ने मुगलों से किले जीतकर स्वराज्य का शुभारम्भ कर दिया है. स्वामी रामदास के मन में जो रामराज्य का स्वप्न था वह शिवाजी के रूप में सत्य हो रहा था. दोनों ही स्वराज्य के लिए लालायित थे. उनके बीच अनेकों बार स्वराज्य के विषय पर मन्त्रणा होती थी. सारे हिन्दू समाज को एकजुट करने के उद्देश्य से समर्थगुरु रामदास ने रामनवमी पर बड़े-बड़े उत्सव प्रारम्भ करवाए.. जिसमें श्रीराम का रथ निकलता था और सभी जातियों के लोग इसमें उत्साह से भाग लेते थे

 संत रामदास के अनुसार कर्म के अनुसार ही व्यक्ति श्रेष्ठ तथा निकृष्ट होता है।

 अजीजन बाई  

अजीजनबाई मूलतः एक पेशेवर नर्तकी थी जो देशभक्ति की भावना से भरपूर थी। गुलामी की बेड़ियां तोड़ने के लिए उसने घुंघरू उतार दिए थे। रसिकों की महफिलें सजाने वाली अजीजन क्रांतिकारियों के साथ बैठके कर रणनीतियां बनाने लगी थी। अजीजन बाई का जन्म 22 जनवरी सन 1824 को मध्य प्रदेश के मालवा राज्य के राजगढ़ में हुआ था। उनके पिता शमशेर सिंह एक ज़ागीरदार थे। अजीजनबाई ने  1857 के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और अपने जुनून तथा देश के लिए मर मिटने की भावना के चलते अंग्रजों को लोहे के चने चबाने पर मजबूर कर दिया था। 



पाण्डुरंग सदाशिव खानखोजे पुण्यतिथि 



भारत के एक स्वतन्त्रता सेनानीक्रान्तिकारीविद्वानइतिहासकार तथा कृषि वैज्ञानिक थे। वे गदर पार्टी के संस्थापकों में से एक थे।

पाण्डूरंग खानखोजे का जन्म नवम्बर १८८३ में वर्धा में हुआ था। उनके पिता वर्धा में याचिका लिखने का कार्य करते थे। उनका बचपन वर्धा में ही बीता और वहीं उनकी प्राथमिक एवं मिडिल स्कूल की शिक्षा पूरी हुई। उसके पश्चात उच्च शिक्षा के लिए वे नागपुर  गए। उस समय वे महान स्वतन्त्रा सेनानी बालगंगाधर तिलक के राष्ट्रवादी कार्यों से बहुत प्रभावित थे। १९०० के प्रथम दशक में किसी समय वे भारत से बाहर जाने के लिए एक समुद्री यात्रा पर निकल पड़े और अन्ततः संयुक्त राष्ट्र अमेरिका जा पहुँचे। यहाँ उन्होने वाशिंगटन स्टेट कॉलेज में प्रवेश लिया जिसका नाम अब वाशिंगटन स्टेट विश्वविद्यालय है। वहाँ से उन्होने १९१३ में स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की।