जुट गये स्वयंसेवक आपातकाल में उदित हुआ प्रचंड जनांदोलन संघ यात्रा - 6
लेखक- डॉ. प्रताप निर्भय सिंह
शोध प्रमुख, प्रेरणा शोध संस्थान न्यास, नोएडा
छली श्रृंखला
में हमने पढ़ा कि इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने लोकतंत्र का गला
घोटकर देश में आपातकाल लगा दिया था। प्रबल विरोध न हो सके इसलिए राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ पर भी प्रतिबंध लगा दिया और संघ के तत्कालीन सरसंघचालक बाला साहब
देवरस को गिरफ्तार कर लिया। परीक्षा के ऐसे कठिन काल में स्वयंसेवकों ने लोकतंत्र
की रक्षा के लिए कमर कस ली। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अधिनायकवादी
नीतियों और भ्रष्टाचार के विरुद्ध जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में 'समग्र
क्रांति' जन-आंदोलन चल रहा था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अखिल भारतीय
विद्यार्थी परिषद् के समर्थन मिलने से यह आंदोलन एक संगठित राष्ट्रव्यापी आंदोलन
बन गया।
जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी सहित विपक्षी दलों के अनेक नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया था। संघ की विशाल संगठित शक्ति अधिनायक तंत्र के विरुद्ध चट्टान सी खड़ी हो सकती है इसका भान इंदिरा गांधी को पहले से था इसलिए आपातकाल लागू करते ही उन्होंने सबसे पहले संघ शक्ति को कुचलने का असफल प्रयास किया। संघ पर प्रतिबंध, संघ के वरिष्ठ अधिकारियों व कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी उसी का परिणाम था। संघ के स्वयंसेवकों ने चुनौती स्वीकार की। संघ के प्रचारकों और कार्यकर्ताओं ने भूमिगत रूप से नेतृत्व किया और संघ के सभी स्वयंसेवक कुंठित राजनीतिक षडयंत्र के विरुद्ध जुट गये। संघ के समवैचारिक (आनुषांगिक) संगठनों जनसंघ, विद्यार्थी परिषद्, विश्व हिन्दू परिषद्, मजदूर संघ जैसे लगभग 30 संगठनों ने इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए अपनी शक्ति लगा दी।
संघ के भूमिगत नेतृत्व ने गैर कांग्रेसी राजनीतिक दलों, बुद्धिजीवियों और विभिन्न वैचारिक संगठनों को एक मंच पर लाने में समन्वयक की भूमिका का निर्वहन किया। अपनी प्रसिद्धि परांगमुखता की श्रेष्ठ परम्परा का अनुपालन करते हुए संघ ने इस आंदोलन को जयप्रकाश नारायण द्वारा घोषित 'लोक संघर्ष समिति' तथा 'छात्र युवा संगठन समिति' के नाम से ही चलाया। स्वयंसेवकों के अपेक्षित संगठन-कौशल से आततायी सरकार दबाव में आ गयी। इंदिरा गांधी सरकार ने संघ के आंदोलन से हट जाने के बदले जेल में बंद स्वयंसेवकों को छोड़ने और संघ से प्रतिबंध हटाने की बात कही। संघ ने आपातकाल हटाकर लोकतंत्र की पुनर्स्थापना से कम कुछ भी स्वीकार करने से मना कर दिया। रिकॉर्ड के अनुसार जेल जाने वाले एवं सत्याग्रही स्वयंसेवकों की संख्या लगभग 2 लाख थी जिन्होंने अनेक प्रताड़नाएं और यातनाएं सहते हुए राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखा। उस समय पूरे भारत में संघ के प्रचारकों की संख्या 1356 थी जिनमें से मात्र 189 को ही पुलिस पकड़ सकी, शेष ने भूमिगत रहकर आंदोलन का कुशलतापूर्वक संचालन किया।
अंततः इस प्रचंड
जन-आंदोलन के सामने इंदिरा गांधी की तानाशाही को पराजित होना पड़ा, 21 मार्च 1977 को आपातकाल समाप्त हुआ, 22 मार्च को संघ
से भी प्रतिबंध
हटा लिया गया। देश में चुनाव की घोषणा कर दी गयी। संघ के दो वरिष्ठ अधिकारियों
प्रो. राजेंद्र सिंह (रज्जू भैया) और दत्तोपंत ठेंगडी ने प्रयत्नपूर्वक चार बड़े
राजनीतिक दलों को एक मंच पर लाकर 'जनता
दल' के रूप में एक
नए दल के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। देश के जनमानस की जीत हुई, देश में लोकतंत्र की पुनर्स्थापना हुई।
जयप्रकाश नारायण
स्वयंसेवकों की निष्ठा और समर्पण को देखकर मंत्रमुग्ध थे। उन्होंने हृदय से
स्वयंसेवकों के प्रति अपना उदगार प्रस्तुत किये। दिसंबर 1977 में आंध्र प्रदेश के
तटीय क्षेत्र में भयंकर चक्रवात से बड़ी हानि हुई, प्रतिकूल परिस्थितियों में स्वयंसेवकों ने सेवाकार्य किया। 1977 में
रज्जू भैय्या सह सरकार्यवाह और 1978 में उन्हें सरकार्यवाह चयनित किया गया। इसी
वर्ष दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना हुई। मध्य भारत प्रान्तिक शिविर इंदौर में 6000
स्वयंसेवकों ने भाग लिया। वर्ष 1979 में विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा द्वितीय विश्व
हिन्दू सम्मलेन का आयोजन हुआ।
अगस्त 1979 में गुजरात के मोरबी की बाढ़ में सेवाकार्य में जुटे स्वयंसेवकों द्वारा 12000 परिवारों को राहत पहुंचाई गयी। 1980 में व्यापक जनसंपर्क अभियान में स्वयंसेवकों ने 95000 गांवों और एक करोड़ परिवारों से संपर्क किया। 1980 में जनता पार्टी के नेताओं ने एक ही समय में संघ और जनता पार्टी दोनों की सदस्यता को लेकर बाधा खड़ी की जिसके फलस्वरूप भारतीय जनता पार्टी अस्तित्व में आई। वर्ष 1981 में तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम में 800 हिन्दू परिवारों का इस्लाम में मतान्तरण कर दिया गया, तब स्वयंसेवकों ने 'हिन्दू मुन्नानी' का गठन किया और हिन्दू पुनर्जागरण हेतु आंदोलन चलाया। इस अवसर पर अलगाववादी और हिन्दू विरोची द्रविड़ मुनेत्र कड़गम और द्रविड़ कषगम जैसे दलों की पोल भी खुल गयी जिन्होंने मुस्लिम लीग और जमात-ए-इस्लामी के साथ मिलकर हिन्दू विरोधी जिहाद छेड़ा। इन्होने हिन्दू मंदिरों का बहिष्कार किया जिसका प्रतिउत्तर देते 'हिन्दू मुन्नानी' के आह्वान पर भक्तगण भारी संख्या में मंदिरों में पहुंचे। धीरे-धीरे DMK, DK, AIDMK, Congress जैसे विरोधी दलों के कर्मठ हिन्दू कार्यकर्ताओं ने भी सामजिक हिन्दुत्व के लिए संघ के प्रयासों को सराहा और वे हिन्दू सम्मेलनों में उपस्थित होने लगे। जनवरी 1981 में संस्कार भारती की स्थापना की गई।
1982 में कर्नाटक प्रान्तिक शिविर बेंगलुरु में 25000 स्वयंसेवकों ने प्रतिभाग किया। फरवरी 1981 में तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में सांप्रदायिक दंगे होने पर स्वयंसेवकों द्वारा गठित 'हिन्दू ओट्टरूमई मैय्यम' (हिन्दू एकता मंच) के माध्यम से सभी जातियों के 100 से ज्यादा प्रतिनिधि जुड़े और व्यापक मोर्चा सम्भाला। जनवरी 1984 में उपद्रवग्रस्त और मतान्तरण वाले क्षेत्र में पदयात्रा निकालकर सभी जातियों तथा उपजातियों का सम्मेलन आयोजित किया गया। 18 मार्च 1984 को रामनाड के मुरुगन मंदिर में 'पंगुनी उचीरम' उत्सव शांतिपूर्वक सम्पन्न हुआ जबकि पहले इसे लेकर दंगे भड़क जाते थे। इस उत्सव में हरिजन एवं अन्यजन का सद्भाव आकर्षण का केंद्र था। रामनाड राजपरिवार के सदस्य आत्मनाथ स्वामी तब जिला संघचालक थे। उन्होंने सामाजिक समरसता हेतु महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1984 में विश्व हिन्दू परिषद् की 'ज्ञानरथम् परियोजना' भी आई। आतंकवाद से जूझते पंजाब में विश्व हिन्दू परिषद् ने मार्च 1983 में एक लाख लोगों की शोभायात्रा निकाली, जिसमें हिन्दू समाज के सभी वर्गों के लोगों सहित हजारों केशधारी सिख बंधुओं ने भी सहभागिता की।
'भारत माता' और 'गंगा माता' के
प्रति आस्था और सम्मान के लिए जनमानस को व्यापक स्तर पर जागरूक करने हेतु 1983 में
विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा 'एकात्म
यज्ञ' का आयोजन किया
गया। इसी वर्ष महाराष्ट्र प्रान्तिक शिविर पुणे में 35000 स्वयंसेवक सम्मिलित हुए।
'ऑपरेशन ब्लू स्टार' के ठीक पूर्व छात्रों, शिक्षकों और ज्ञान प्रबोधिनी के
सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित 115 कार्यकर्ताओं ने पंजाब में शांति यात्रा की। 5 जून
1984 को भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन
ब्लू स्टार' के
तहत पवित्र श्री हरि मंदिर साहिब को आतंकवादियों से मुक्त कराया। परिणामस्वरूप
खालिस्तान समर्थक आतंकियों के ईशारे पर 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री
इंदिरा गांधी की सिख सुरक्षाकर्मियों द्वारा हत्या कर दी गई जिसके बाद दिल्ली में
कांग्रेसियों द्वारा सिख भाइयों का नरसंहार किया गया। उस समय सिख भाइयों और बहनों
की रक्षा करने में स्वयंसेवकों ने अपना जीवन दांव पर लगा दिया। सैंकड़ों सिख
परिवारों को स्वयंसेवकों के घरों में शरण दी गई और विपदाग्रस्त लोगों के लिए
सहायता शिविर खोले गए। 6 मई 1984 को चेम्सफोर्ड क्लब नई दिल्ली में विश्व हिन्दू
परिषद् ने पंजाब एकता सम्मेलन का आयोजन किया। ऑपरेशन ब्लू स्टार के पश्चात कारसेवा
के लिए सिख ग्रंथियों के आह्वान पर स्वयंसेवकों ने भी आगे बढ़कर नगर संघचालक के
नेतृत्व में स्वर्ण मंदिर के पुनर्निर्माण हेतु कार सेवा की, बड़ी संख्या में गणवेशधारी स्वयंसेवक
कारसेवा करते देखे गये। 1985 में संघ स्थापना के 60 वर्ष पूर्ण होने पर पूरे देश
में जनजागरण के अनेक कार्यक्रम आयोजित किए गए।
इस श्रृंखला में
इतना ही, अगली श्रृंखला
में चर्चा करेंगे संघ यात्रा-7 के अगले दशक की