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इतिहास

राष्ट्रीय चेतना के अमर गायक रामनरेश त्रिपाठी

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4 मार्च/जन्म-दिवस

उत्तर भारत के अधिकांश प्राथमिक विद्यालयों में एक प्रार्थना बोली जाती है -  


हे प्रभो आनन्ददाता, ज्ञान हमको दीजिये,

शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये।

लीजिये हमको शरण में हम सदाचारी बनें,

ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीरव्रतधारी बनें।।


यह प्रार्थना एक समय इतनी लोकप्रिय थी कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के बाद जब शाखाएँ प्रारम्भ हुईं, तो उस समय जो प्रार्थना बोली जाती थी, उसमें भी इसके अंश लिये गये थे। 


हे गुरो श्री रामदूता शील हमको दीजिये,

शीघ्र सारे सद्गुणों से पूर्ण हिन्दू कीजिये।

लीजिये हमको शरण में रामपंथी हम बनें,

ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीरव्रतधारी बनें।।


यह प्रार्थना संघ की शाखाओं पर 1940 तक चलती रही। 1940 में सिन्दी बैठक में अनेक महत्वपूर्ण निर्णय हुए। उनके अनुसार इसके बदले संस्कृत की प्रार्थना नमस्ते सदा वत्सले... को स्थान मिला, जो आज भी बोली जाती है।


इस प्रार्थना के लेखक श्री रामनरेश त्रिपाठी का जन्म 4 मार्च, 1889 को ग्राम कोइरीपुर (जौनपुर, उत्तर प्रदेश) में हुआ था। वे कुछ समय पट्टी (प्रतापगढ़) तथा फिर कक्षा नौ तक जौनपुर में पढ़े। इसके बाद वे हिन्दी के प्रचार-प्रसार तथा समाज सेवा में लग गये। उन दिनों स्वतन्त्रता का आन्दोलन चल रहा था, वे उसमें कूद पड़े और आगरा जेल में बन्दी बना लिये गये।


इस किसान आन्दोलन के समय सिगरामऊ के राजा हरपाल सिंह ने उन पर मानहानि का मुकदमा ठोक दिया। इससे उनका मन टूट गया और वे अपना गृह जनपद छोड़कर दियरा राज्य (जिला सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश) में चले आये। वहाँ के प्रबन्धक कुँवर कौशलेन्द्र प्रताप ने उनको रेलवे स्टेशन के पास जगह दिलवा दी। इस प्रकार 1930 ई0 में उनका निवास ‘आनन्द निकेतन’ निर्मित हुआ। 


यहाँ उन्होंने भरपूर साहित्य साधना की तथा ग्राम्य लोकगीतों का संग्रह ‘कविता कौमुदी’ कई भागों में प्रकाशित कराया। उनकी रचनाओं में देशप्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी थी। इससे जनजागरण में उनका भरपूर उपयोग हुआ। उनके द्वारा निकाला गया ‘वानर’ अपने समय का सर्वश्रेष्ठ बाल मासिक था।


मधुमेह से पीडि़त हो जाने से वे अधिक समय तक यहाँ नहीं रह पाये। साहित्यकारों की गुटबाजी ने भी उनको बहुत मानसिक कष्ट दिये। अतः 1950 में वे यह स्थान छोड़कर प्रयाग चले गये। इसके बाद का उनका समय वहीं बीता। प्रयाग उस समय हिन्दी साहित्यकारों का गढ़ था। श्री रामनरेश त्रिपाठी के सभी से प्रेम सम्बन्ध बन गये। ‘हिन्दी समिति, प्रयाग’ के वे संस्थापक थे।


जनवरी, 1962 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग की स्वर्ण जयन्ती मनायी गयी। घोर शीत, कोहरे एवं वर्षा के बीच काफी अस्वस्थ होते हुए भी वे उसमें गये। इससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया और 16 जनवरी, 1962 को पड़े दिल के दौरे से उनका प्राणान्त हो गया। 


उनकी शव यात्रा में प्रयाग के सभी बड़े साहित्यकार सम्मिलित हुए। श्री रामनरेश त्रिपाठी भले ही अब न हों; पर कविता विनोद, बाल भारती, चयनिका, हनुमान चरित, मिलन, पथिक, स्वप्न आदि काव्य रचनाओं द्वारा वे हिन्दी साहित्याकाश में सदा चमकते रहेंगे।


उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री श्रीपति मिश्र ने अपने काल में सुल्तानपुर में त्रिपाठी जी के नाम पर एक भव्य सभागार का निर्माण कराया।