अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
हाथरस की सहाना बेगम इस बात का जीता-जागता उदाहरण हैं कि यदि नारी में हौसला हो तो कोई बाधा उन्हें आत्मनिर्भर बनने से रोक नहीं सकती। कम पढ़ी-लिखी होने के बावजूद सहाना ने चौका-चूल्हा सँभालते हुए अपने परिवार और गाँव की महिलाओं के लिए आर्थिक सशक्तिकरण का नया रास्ता खोला। राष्ट्रीय आजीविका मिशन से जुड़कर उन्होंने शहद का कारोबार शुरू किया। आज उनका शहद केवल हाथरस ही नहीं अपितु दिल्ली जैसे बड़े शहरों तक पहुँच रहा है। सालाना 50 हजार से अधिक का मुनाफा कमा रही सहाना अब न केवल स्वयं आत्मनिर्भर हैं अपितु समूह की दर्जनों महिलाओं को भी आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ा चुकी हैं। अन्य महिलाएँ भी बकरी, गाय व भेड़ पालन कर आर्थिक मजबूती की राह पर हैं। सहाना का मानना है 'नारी यदि चाह ले तो हर मुश्किल आसान हो जाती है, आत्मनिर्भरता मात्र सपना नहीं, हकीकत बन सकती है।' महज आठवीं पास सहाना ने अपनी बेटियों और बेटों को पढ़ाई के रास्ते पर आगे बढ़ाया है, ताकि वे भी भविष्य में आत्मनिर्भर बन सकें। सहाना की यह कहानी बताती है कि सरकारी योजनाओं और स्वयं सहायता समूहों के सहारे ग्रामीण महिलाएँ भी परिवार की मजबूरी से ऊपर उठकर आत्मनिर्भरता की नई इबारत लिख सकती हैं।