इस रक्षाबंधन भाइयों की कलाइयों पर राखियों के साथ-साथ बहनों की मेहनत, हुनर और आत्मनिर्भरता की चमक भी दिखाई देगी। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल में “रेशम एक नई पहल” नाम से गठित स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने कोकून से कला तक का सफर तय करते हुए रेशम से बनी आकर्षक राखियों का निर्माण शुरू कर दिया है। महज चार दिनों में 25,000 रुपये तक के ऑर्डर मिल चुके हैं और दिल्ली व देहरादून जैसे शहरों में इन अनोखी राखियों की मांग तेजी से बढ़ रही है।
वहीं, उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले की वो 15 महिलाएं भी किसी मिसाल से कम नहीं, जिन्होंने कभी घर की दहलीज पार नहीं की थी, लेकिन आज ‘स्वयं सहायता समूह’ के माध्यम से न केवल हजारों राखियां बना रही हैं, बल्कि पूरे परिवार की जिम्मेदारी भी संभाल रही हैं। जरी, कुंदन, रेजिन और गाय के गोबर तक से पारंपरिक और पर्यावरण-संवेदनशील राखियां तैयार कर ये महिलाएं लखनऊ, दिल्ली, वाराणसी जैसे बड़े शहरों तक अपने उत्पाद भेज रही हैं। पिछले साल इन्होंने 1.5 लाख राखियां बनाईं थीं और इस बार लक्ष्य है 3 लाख राखियों का। इस पहल से हर महिला महीने में 10 से 25 हजार रुपये तक कमा रही है।
दूसरी ओर, एटा जिले की ग्रामीण महिलाएं भी पीछे नहीं हैं। मुख्य विकास अधिकारी के निर्देशन में, एनआरएलएम के अंतर्गत सक्रिय महिला समूह राखी निर्माण में जुटे हैं। इन राखियों की बिक्री के लिए विकास भवन सहित अन्य सरकारी कार्यालयों में राखी मेले आयोजित किए जाएंगे, जिससे न केवल इन महिलाओं को बाजार मिलेगा, बल्कि उनकी आमदनी भी बढ़ेगी और आत्मनिर्भरता की दिशा में उनका कदम और मजबूत होंगे। इस बार रक्षाबंधन पर जो राखी भाई की कलाई पर बंधेगी, उसमें बहन के प्रेम के साथ-साथ उसकी मेहनत, आत्मबल और आत्मनिर्भर भारत का सपना भी होगा। अब राखी सिर्फ रेशम की डोरी नहीं रही, बल्कि महिला उद्यमिता की एक प्रेरक कहानी बन गई है।