बरेली, उत्तर प्रदेश
पहले मतान्तरण, फिर जिस्म से खेला और जब मन भर गया तो गला दबाकर फेंक दी लाश
बरेली की मीरा शर्मा की हत्या कोई आम घरेलू घटना नहीं थी ।यह मजहब के नाम पर रची गई सोची-समझी षड्यंत्र का आखिरी पड़ाव था। गुड्डू उर्फ आशिक, एक मुस्लिम युवक, पहले मीरा के घर में दोस्त बनकर घुसा। बच्चों से रिश्ता बनाया, “मामा” कहलवाया ताकि घरवालों को भरोसा हो जाए लेकिन ये कोई मामूली मेल-जोल नहीं था — ये घुसपैठ की शुरुआत थी। धीरे-धीरे उसने मीरा से नजदीकियां बढ़ाईं, उसे भावनात्मक रूप से तोड़ा, पति से दूर किया और आख़िरकार उसका मतान्तरण करवा डाला। मीरा ने अपने पति, अपने रिश्तेदार, अपने संस्कार सबको छोड़कर गुड्डू के साथ रहना शुरू किया, अपने छोटे बेटे को लेकर और यहीं से शुरू हुई उसकी कीमत चुकाने की घड़ी । गुड्डू के लिए वो प्रेमिका नहीं थी, बस मजहबी जीत की ट्रॉफी थी। एक साल तक साथ रहा, उसके शरीर और भरोसे से खिलवाड़ किया और जैसे ही मकसद पूरा हो गया — मीरा को उसी के बेटे के सामने गला घोंटकर मौत के घात उतार दिया। क्योंकि मजहबी षड़यंत्र का अंतिम चरण यही होता है – सनातनी को मिटा देना। बेटा लाश के पास बैठकर रोता रहा, और गुड्डू भाग निकला। पोस्टमार्टम में गला दबाकर हत्या की पुष्टि हुई है। मीरा की बहन पहले ही चेतावनी दे चुकी थी। “गुड्डू कहता था – मैं इसे मार दूँगा।” क्या ये महज इत्तेफाक था? नहीं - ये वही प्लान है जो आज देशभर में दोहराया जा रहा है: पहले दोस्त बनो फिर घर में भरोसे से घुसो लड़की को तोड़ो, उसका मतान्तरण करो और फिर उसे मिटा दो, क्योंकि कट्टरपंथी सोच में प्रेम नहीं होता । वहाँ केवल क मजहबी जंग होती है। मीरा जैसी स्त्रियाँ उनके लिए केवल ‘लक्ष्य’ होती हैं, न की जीवनसाथी। पहले घर में घुसो, रिश्तों में विष भरो, मतान्तरण कराओ और जब जी भर जाए, तो गला घोंट दो।