गांव से ग्लोबल तक: उत्तर प्रदेश की औद्योगिक क्रांति
कभी देश का सबसे बड़ा राज्य होने के बावजूद कृषि प्रधान और औद्योगिक दृष्टि से पिछड़ा माने जाने वाला उत्तर प्रदेश आज भारत के औद्योगिक मानचित्र पर एक नई, सशक्त और आत्मविश्वासी पहचान के साथ उभर रहा है। यदि आज इसे ‘भारत का विकास इंजन’ कहें तो यह अतिशयोक्ति नहीं है। यह परिवर्तन महज संयोग नहीं, बल्कि सुविचारित नीतियों, दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति और दूरदर्शी नेतृत्व का परिणाम है। वर्ष 2017 से पहले जिस प्रदेश को निवेशकों की दृष्टि में असुरक्षित और जटिल प्रक्रियाओं वाला माना जाता था, आज वही वैश्विक कंपनियों के लिए सबसे भरोसेमंद और आकर्षक निवेश स्थल बन गया है। इस बदलाव के केंद्र में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का वह नेतृत्व है जिसने औद्योगिक विकास को केवल आर्थिक वृद्धि तक सीमित न रखकर सामाजिक परिवर्तन, क्षेत्रीय संतुलन, रोजगार सृजन और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अग्रणी बनने का साधन बनाया। योगी आदित्यनाथ का औद्योगिक दृष्टिकोण केवल योजनाओं और आंकड़ों का संग्रह नहीं है, बल्कि यह भारत के आत्मगौरव, आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक उत्थान का जीवंत दस्तावेज है। जिसमें देशभर के युवा, किसान, व्यापारी तथा उद्यमी इस औद्योगिक नवजागरण का हिस्सा बनने के लिए उत्सुक हैं।
योगी सरकार ने औद्योगिक विकास को शीर्ष प्राथमिकता दी है। उनका दृष्टिकोण बिलकुल स्पष्ट है -”उत्तर प्रदेश को भारत का औद्योगिक और निवेश केंद्र बनाना।“ इसके लिए सबसे पहले ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ में सुधार पर जोर दिया गया। विभिन्न स्वीकृतियों और अनुमतियों को एकल खिड़की प्रणाली से जोड़कर प्रक्रियाएं सरल की गईं। इससे उद्यमियों को सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने से मुक्ति मिली और पारदर्शिता बढ़ी।
वर्ष 2018 में आयोजित पहली ‘उत्तर प्रदेश इन्वेस्टर्स समिट’ ने उत्तर प्रदेश में निवेश के नए युग की शुरुआत की। रुपये 4.68 लाख करोड़ के प्रस्ताव आए और अधिकांश परियोजनाओं पर समयबद्ध काम भी शुरू हुआ। वर्ष 2023 में ‘ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट’ ने इस गति को कई गुना बढ़ा दिया-33.5 लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव और इलेक्ट्रॉनिक्स, डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग, टेक्सटाइल, नवीकरणीय ऊर्जा, लॉजिस्टिक्स और फार्मा जैसे क्षेत्रों में बड़े कॉर्पाेरेट घरानों की सक्रियता ने स्पष्ट कर दिया कि उत्तर प्रदेश अब दुनिया के औद्योगिक मानचित्र पर निर्णायक भूमिका निभाने को तैयार है। सैमसंग, टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स, एयरटेल डेटा सेंटर, एचसीएल, आईटीसी, अडानी समूह और रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसी कंपनियों ने यहां बड़े पैमाने पर निवेश कर अपने प्रोजेक्ट्स को क्रियान्वित किया। अब वर्ष 2025 की तीसरी समिट में में 60 से 80 लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव का लक्ष्य है ।
औद्योगिक विकास के लिए मजबूत बुनियादी ढांचा अनिवार्य है और उत्तर प्रदेश ने इस दिशा में भी ऐतिहासिक कदम उठाए हैं। पूर्वांचल, बुंदेलखंड और गंगा एक्सप्रेसवे जैसे मेगा प्रोजेक्ट्स ने औद्योगिक रीढ़ को सुदृढ़ किया। 594 किलोमीटर लंबा गंगा एक्सप्रेसवे-जो देश का सबसे बड़ा होगा। इसके किनारों पर औद्योगिक पार्क, वेयरहाउसिंग हब और लॉजिस्टिक सेंटर विकसित किए जा रहे हैं। जेवर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, जो एशिया का चौथा सबसे बड़ा एयरपोर्ट बनने जा रहा है, उत्तर भारत का प्रमुख लॉजिस्टिक और व्यापार केंद्र बनेगा। मेरठ में प्रदेश की पहली इंटीग्रेटिड ट्रांजिट ओरिएंटेड डेवलपमेंट (टीओडी) टाउनशिप की भी नीव रखी गयी है। मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक हब, आईटी पार्क और इंडस्ट्रियल टाउनशिप जैसे प्रोजेक्ट निवेश को गति दे रहे हैं। नोएडा और ग्रेटर नोएडा डेटा सेंटर और इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में उभरे हैं।
निवेशकों को सुविधा देने के लिए ‘निवेश मित्र’ पोर्टल और ‘उद्योग बंधु’ कार्यक्रम लागू किए गए, जिनसे त्वरित मंजूरी और आवश्यक अनापत्ति प्रमाण पत्र उपलब्ध कराए जा रहे हैं। भ्रष्टाचार-रोधी कदम, पारदर्शिता और मुख्यमंत्री द्वारा व्यक्तिगत मॉनिटरिंग ने निवेशकों का भरोसा मजबूत किया।
प्रदेश के औद्योगिक विकास को विकेंद्रीकृत करने के लिए ‘एक जनपद एक उत्पाद’ (व्क्व्च्) योजना लागू की गई। जिसने पारंपरिक उद्योगों को पुनर्जीवित किया और वैश्विक बाजार में उनकी मांग बढ़ाई। बनारसी साड़ी, मुरादाबाद की पीतल कला, आगरा का जूता उद्योग, फिरोज़ाबाद का कांच उद्योग जैसे उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों से जोड़ा गया, जिससे लाखों कारीगरों और उद्यमियों की आय में वृद्धि हुई। यह योजना भारत की सांस्कृतिक विविधता और स्थानीय कौशल को आर्थिक प्रगति से जोड़ने का सफल मॉडल साबित हुई है। परिणामस्वरूप वर्ष 2022-23 में राज्य का निर्यात 2.21 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचा, जबकि 2017 में यह 88,000 करोड़ रुपये था। 2024-25 तक यह आंकड़ा 2.5 लाख करोड़ रुपये पार कर गया, जिससे सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (डैडम्े) को बड़ा लाभ मिला।
डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर भी राज्य की औद्योगिक रणनीति का प्रमुख आधार है जो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के विज़न को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अलीगढ़, झांसी, कानपुर, चित्रकूट, आगरा और लखनऊ में फैले इस कॉरिडोर में 5,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश हुआ है और 100 से ज्यादा रक्षा उपकरण निर्माता सक्रिय हैं। साथ ही अब तक 25,000 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। टाटा, अडानी डिफेंस, एयरो इंडिया जैसी कंपनियां यहां उत्पादन इकाइयां स्थापित करने की दिशा में सक्रिय हैं। इससे न केवल रक्षा उत्पादन क्षमता में वृद्धि हो रही है, अपितु यह स्थानीय युवाओं को उच्च कौशल आधारित रोजगार भी प्रदान कर रहा है।
मानव संसाधन विकास को औद्योगिक प्रगति का आधार बनाते हुए ‘उत्तर प्रदेश कौशल विकास मिशन’ के तहत 20 लाख से अधिक युवाओं को उद्योग की जरूरतों के अनुसार प्रशिक्षित किया गया है। 18 नए आईटीआई और पॉलिटेक्निक कॉलेज खोले गए और हर विधानसभा क्षेत्र में कौशल केंद्र स्थापित हो रहे हैं। स्टार्टअप नीति 2020 ने नवाचार को बढ़ावा दिया, जिसके तहत नवंबर 2024 तक 9,200 से अधिक स्टार्टअप पंजीकृत हुए, जिनमें 40 प्रतिशत महिला उद्यमियों के थे। कृषि आधारित उद्योगों के लिए ‘फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्रियल पॉलिसी 2023’ लागू की गई, जिसके तहत शीतगृह, प्रोसेसिंग यूनिट और निर्यात केंद्रों को प्रोत्साहन मिला। इससे किसानों की आमदनी बढ़ी और कृषि उपज की बर्बादी में कमी आई। साथ ही, राज्य में बायोएनर्जी परियोजनाओं ने सतत और पर्यावरण-अनुकूल औद्योगिक विकास का मार्ग प्रशस्त किया।
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र के लिए 1,000 करोड़ रुपये का विशेष फंड, मुख्यमंत्री ग्राम उद्योग योजना और स्वरोजगार अभियान जैसी पहलें की गईं, जिनसे 2023-24 में इस क्षेत्र में 30 लाख से अधिक नए रोजगार सृजित हुए। नवीकरणीय ऊर्जा नीति 2022 के तहत बुंदेलखंड और पूर्वांचल में बड़े सौर पार्क विकसित हो रहे हैं, ताकि 10,000 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य हासिल हो सके।
राज्य की 10 से अधिक सेक्टर-विशिष्ट नीतियों-आईटी एवं आईटीईएस, इलेक्ट्रिक व्हीकल, टेक्सटाइल, फूड प्रोसेसिंग, लॉजिस्टिक्स, स्टार्टअप आदि ने हर उद्योग को उसकी जरूरत के मुताबिक प्रोत्साहन और सुविधाएं प्रदान कीं। इस रणनीति ने औद्योगिक आधार को विविध और मजबूत बनाया।
आंकड़े बताते हैं कि 2016-17 में राज्य का सकल घरेलू उत्पाद ₹10.70 लाख करोड़ था, जो 2023-24 में बढ़कर ₹21.31 लाख करोड़ हो गया- लगभग दोगुना। 2017 से अब तक 40 लाख करोड़ रूपये से अधिक के निवेश प्रस्ताव आए, जिनमें से 10 लाख करोड़ रूपये की परियोजनाएं क्रियान्वयन में हैं। वर्ष 2017 से 2025 के बीच 1.5 करोड़ से अधिक रोजगार सृजित हुए।
योगी सरकार की विशेषता यह रही कि औद्योगिक विकास केवल महानगरों तक सीमित न रहकर राज्य के सभी क्षेत्रों में संतुलित रूप से फैला है। चाहे बुंदेलखंड में डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर की स्थापना की गई हो, या पूर्वांचल में टेक्सटाइल पार्क, तराई में खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग ज़ोन का विकास हो, ये इस बात का प्रमाण है कि सरकार ने क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने के लिए भी ठोस प्रयास किए हैं।
यह परिवर्तन केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं हैं, अपितु इन्हें प्रदेश के हर कोने में महसूस किया जा सकता है। गांवों में लौटे कारीगर, शहरों में स्थापित नए उद्योग और युवाओं में रोजगार के अवसर इसकी गवाही देते हैं। अपराध पर लगाम, भूमाफियाओं पर कार्यवाही और समयबद्ध परियोजना क्रियान्वयन ने उत्तर प्रदेश की साख को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऊंचा किया है।
इस व्यापक औद्योगिक परिवर्तन के केंद्र में योगी आदित्यनाथ का अनुशासित, राष्ट्रवादी और विकासोन्मुख नेतृत्व है। उन्होंने औद्योगिक विकास को केवल आर्थिक वृद्धि तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे सामाजिक न्याय, क्षेत्रीय संतुलन, पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक पुनर्जागरण से भी जोड़ा। उनका मानना है कि जब तक देश का सबसे बड़ा राज्य औद्योगिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होगा, तब तक भारत एक वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित नहीं हो सकता।