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पहाड़ों में रचा इतिहास! उत्तराखण्ड की पंचायतों में लड़कियों ने संभाली कमान

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देहरादून, उत्तराखण्ड

उत्तराखण्ड के गांवों में लोग शहरों की ओर पलायन करते रहे हैं। इसलिए ज्यादातर गांव खाली होते गए और पंचायत की कमान बुजुर्ग पुरुषों के हाथ में रही। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। पढ़ाई पूरी करते ही गांव लौट रहीं युवा लड़कियां अब पंचायत की जिम्मेदारी संभाल रही हैं। ये नई पीढ़ी की प्रधान पढ़ी-लिखी हैं, आत्मविश्वास से भरी हैं और मोबाइल और नई सोच के साथ गांव की समस्याओं को समझती हैं। ये न केवल पलायन रोकने की कोशिश कर रही हैं, बल्कि ‘प्रधान-पति’ जैसी पुरानी सोच को भी समाप्त कर रही हैं।

वही हाल के पंचायत चुनावों में कई गांवों में 20–22 साल की युवा महिलाएं प्रधान चुनी गई हैं। यह युवा प्रधान सड़क, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी जरूरी समस्याओं पर सीधे काम कर रही हैं। उनका मानना है कि गांव में रहकर भी अच्छा भविष्य बनाया जा सकता है।

गणित से शासन तक- प्रियंका नेगी

सरकोट गांव की प्रधान प्रियंका नेगी  कभी गणितज्ञ बनना चाहती थीं। उनके पिता खुद दो बार प्रधान रह चुके हैं. उनकी प्राथमिकता है सड़क कनेक्टिविटी। प्रियंका मानती हैं कि सड़कें ठीक हों तो पहाड़ की आधी समस्याएं अपने आप सुलझ जाएंगी।

नेतृत्व और मातृत्व साथ-साथ- दीक्षा मंडोली

गुलाड़ी गांव की प्रधान दीक्षा मंडोली 22 वर्ष की हैं। 20 की उम्र में शादी और 21 में मां बनने के बावजूद उन्होंने नेतृत्व संभाला। अंग्रेजी से स्नातक दीक्षा युवाओं में बढ़ती नशे की लत को बड़ी चुनौती मानती हैं। वह स्पष्ट कहती हैं, ‘अब लोग सीधे हमसे बात करते हैं, किसी ‘प्रधान-पति’ की जरूरत नहीं।