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IIT रुड़की में अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन का शुभारंभ

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रुड़की, उत्तराखण्ड

भारतीय संस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुँचाने के उद्देश्य से उत्तराखण्ड के IIT रुड़की में अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन का आयोजन किया गया है।  बता दें यह आयोजन IIT रुड़की और अमेरिका स्थित श्री रामचरित भवन ने मिलकर किया है। सम्मेलन में भारत और विदेशों से आए विद्वान, संत और शोधकर्ता भाग ले रहे हैं। यहां भारतीय ज्ञान परंपरा पर चर्चा और करीब 150 शोध पत्र प्रस्तुत किए जाएंगे। वही वक्ताओं ने कहा कि रामायण के मूल्यों को समझने और अपनाने के लिए आधुनिक शिक्षा की आवश्कता है। उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा का उद्देश्य केवल रोजगार पाना नहीं, बल्कि मानवता और समाज की सेवा करना होना चाहिए। वही सम्मेलन को संबोधित करते हुए आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रोफेसर के.के. पंत ने बताया कि संस्थान का राष्ट्रगान गोस्वामी तुलसीदास की रामचरितमानस की एक पंक्ति से प्रेरित है। उन्होंने कहा कि रामचरितमानस की पंक्ति “परहित सरिस धर्म नहीं भाई” और IIT का राष्ट्रगान “सर्जन हित जीवन नित अर्पित” दोनों ही समाज सेवा और जनकल्याण का संदेश देते हैं।

उन्होंने बताया कि भारतीय ज्ञान परंपरा के सिद्धांत बहुत मूल्यवान हैं। रामायण माता-पिता के प्रति कर्तव्य, सामाजिक जिम्मेदारी, ईमानदारी और राम राज्य जैसे आदर्शों की शिक्षा देती है, जो आज के समय में सतत विकास, नैतिकता और राष्ट्र निर्माण से जुड़े हुए हैं।

युवाओं को दिया गया संदेश

संस्थान के निदेशक ने युवाओं से अपील की कि वे ज्ञान को केवल अधिक वेतन पाने का जरिया न बनाएं, बल्कि इसे समाज सेवा और 2047 तक एक विकसित भारत के निर्माण का माध्यम समझें।

संतों के विचार

संत महामंडलेश्वर स्वामी हरि चेतानंद ने कहा कि मोबाइल और भौतिक सुख-सुविधाओं के इस दौर में चरित्र निर्माण और मानसिक शांति के लिए रामायण, महाभारत और अन्य धार्मिक ग्रंथ बेहद जरूरी हैं। उन्होंने कहा कि रामायण जीवन का संपूर्ण मार्गदर्शन करती है और त्याग, भक्ति, गुरु के प्रति सम्मान और सामाजिक सद्भाव का संदेश देती है।