गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
उनके प्रोडक्ट्स बांस से बने टूथब्रश और टंग क्लीनर, नीम की लकड़ी की कंघी, रिसाइकल पेपर से बनी बीज वाली पेंसिल पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल हैं, जो प्लास्टिक की जगह पर्यावरण-अनुकूल विकल्प साबित हो रहे हैं। इस नन्हीं बच्ची को प्रेरणा मिली अपने परिवार से। बाबा अक्सर उन्हें प्लास्टिक के नुकसान और प्रकृति के महत्व के बारे में बताते थे। नाना अमरजीत सिंह कारगिल में शहीद हुए। मामा नीतीश सिंह पर्वतारोहण में देश का नाम रोशन कर चुके हैं। इन्हीं आदर्शों ने अदिरा के मन में राष्ट्र और प्रकृति सेवा का बीज बो दिया। अदिरा ने अपने अभियान को व्यवसाय नहीं अपितु राष्ट्र सेवा का रूप दिया है। उनका लक्ष्य है इस साल 1 लाख प्लास्टिक टूथब्रश को बांस के ब्रश से बदलना। वह स्वयं पैकिंग करती हैं और ऑर्डर लोगों तक पहुँचाती हैं। गोरखपुर के आरपीएम स्कूल में पढ़ने वाली अदिरा अपने साथियों को भी प्लास्टिक के नुकसान और पर्यावरण के फायदे समझाती हैं। उनके प्रयासों को पहचान मिली है और उन्हें पूर्वांचल गौरव सम्मान से नवाजा गया। अदिरा कहती हैं 'बांस और नीम जैसे प्राकृतिक संसाधन हमारे पास पहले से हैं। अगर हम इन्हें अपनाएँ तो न केवल प्लास्टिक का बोझ घटेगा अपितु देश भी आत्मनिर्भर बनेगा।' उनका मिशन सिर्फ उत्पाद बेचना नहीं है अपितु हर भारतीय को यह संदेश देना है कि 'प्लास्टिक छोड़ो, प्रकृति अपनाओ।'