चंपावत, उत्तराखण्ड
कहते हैं, जब महिलाएं आगे बढ़ती हैं तो पूरा पहाड़ आगे बढ़ता है। उत्तराखण्ड के चंपावत की महिलाओं ने ऐसा ही कमाल कर दिखाया है। सरकारी योजना से मिली मदद से महिलाओं ने पहाड़ को भी पंख लगा दिए हैं। यह महिलाएं जो कभी घर की जरूरतों के लिए संघर्ष करती थीं। आज पहाड़ों की पहचान बन गई हैं। अल्ट्रापुअर योजना ने इन महिलाओं को आत्मनिर्भरता की नई राह दी है। यह कहानी है लोहाघाट के नसखोला गाँव की ममता जोशी की जो जागृति स्वयं सहायता समूह से जुड़कर हर महीने 10 हजार रुपये ज्यादा की आमदनी कर रही हैं।
ममता बताती हैं कि पति के निधन के बाद परिवार की सारी जिम्मेदारियां उनके कंधों पर आ गईं। आर्थिक स्थिति सुधारने और परिवार का संबल बनने के प्रयास में वह जागृति स्वयं सहायता समूह से जुड़ीं। समूह से जुड़कर उन्हें अल्ट्रापुअर योजना के बारे में जानकारी मिली और ममता को योजना से 35 हजार रुपये का ब्याजमुक्त सहायता मिली, तो उन्होंने उन्नत नस्ल की गाय खरीद ली। आज ममता 12 लीटर रोज दूध बेचकर 10,000 रुपये से ज्यादा महीना कमा रही हैं। वे न केवल परिवार को आर्थिक संबल दे पा रही हैं। बल्कि पहाड़ों में आत्मनिर्भरता की एक चमकती मिसाल बन गई हैं। सिर्फ ममता ही नहीं चंपावत जिले के चारों ब्लॉक—लोहाघाट, पाटी, बाराकोट और चंपावत में 1067 महिलाएं इस योजना से जुड़कर अपनी नियति बदल रही हैं। सभी को 35,000 रुपये की ब्याजमुक्त सहायता मिल रही है। जिससे शुरू होता है—दुग्ध उत्पादन का छोटा लेकिन मजबूत व्यवसाय। इस योजना से आमदनी तो बढ़ ही है साथ ही पलायन भी रुका है और हर गांव में महिलाओं की आर्थिक स्वतन्त्रता की नई कहानी लिखी जा रही है।यह मात्र एक सरकारी योजना नहीं बल्कि पहाड़ों की बेटियों की आर्थिक क्रांति बन चुकी है।



