• अनुवाद करें: |
मुख्य समाचार

न्यूनतम सुविधा में उत्तम सुशासन का कालखण्ड लोकमाता अहिल्याबाई का जीवन – मुकुन्द जी

  • Share:

  • facebook
  • twitter
  • whatsapp

काशी। लोकमाता अहिल्याबाई होलकर त्रि-शताब्दी जयन्ती समारोह में मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह मुकुन्द जी ने कहा कि न्यूनतम सुविधा में उत्तम सुशासन का कालखण्ड लोकमाता अहिल्याबाई होलकर का था. अहिल्याबाई के प्रशासनिक नेतृत्व को देखते हुए ‘लेस गवर्नमेंट, मोर गवर्नेंस’ सदृश सूक्ति चरितार्थ होती है. जो राजसत्ता अपनी प्रजा की हर समस्या का समाधान करे उसे पुण्यश्लोक कहा गया.

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के स्वतंत्रता भवन सभागार में आयोजित कार्यक्रम में कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के जीवन से मातृत्व, नेतृत्व और कर्तृत्व धर्म की शिक्षा लेनी चाहिए. आज के समय में ’मातृत्व’ में होते क्षरण को देखते हुए यह आवश्यक हो जाता है कि लोकमाता अहिल्याबाई को याद किया जाए. भारतीय समाज में विश्वास और आत्मसम्मान जगाने का कार्य लोकमाता ने मंदिरों और घाटों के पुनरोद्धार के माध्यम से किया. यूरोपीय स्त्रियों और भारतीय स्त्रियों को तुलनात्मक रूप में देखने से पता चलता है कि भारतीय महिलाओं की स्थिति राजनीति, प्रशासन और धार्मिक-सांस्कृतिक क्षेत्रों में अपेक्षाकृत अधिक उत्तम थी. इसका सबसे बड़ा उदाहरण स्वयं अहिल्याबाई होलकर हैं.


स्त्री और पुरुष की समानता की बात करते हुए मुकुंद जी ने कहा कि समाज को पुरुषत्व की जितनी आवश्यकता है, उतनी ही मातृत्व की भी. आज अर्थशास्त्री बताते हैं कि राष्ट्र की जीडीपी में महिलाओं का भरपूर योगदान है. वर्तमान में सम्पूर्ण भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा सेवा के एक लाख तीस हजार से अधिक सेवा कार्य चल रहे हैं. जिनमें महिलाएं आगे हैं. इन कार्यों में निर्णय लेने की क्षमता पुरुषों की तुलना में मातृशक्ति में कहीं अधिक सुदृढ़ है. माताएं संवेदनशीलता, एकाग्रता में पुरुषों से कहीं आगे हैं. वर्तमान युवा पीढ़ी जिस भी माध्यम से अहिल्याबाई के संदेशों को ग्रहण करती हो, हमें उसी माध्यम से संदेश को जन-जन तक पहुंचाना चाहिए, यही हमारे इस कार्यक्रम का भी ध्येय है.


विशिष्ट अतिथि लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के वंशज उदय सिंह राजे होलकर जी ने कहा कि पुण्यश्लोक अहिल्याबाई का जीवन साधारण नहीं रहा. अपने ही जीवन काल में उन्हें सास, श्वसुर, पति, पुत्र-पुत्री सभी की मृत्यु देखनी पड़ी. पति के साथ सती होने से श्वसुर मल्हार राव होलकर ने उन्हें रोका. घाट, धर्मशाला का निर्माण अथवा मन्दिरों का जीर्णोंद्धार लोकमाता ने अपने स्त्रीधन से किया था. देवी अहिल्याबाई होलकर कुशल प्रशासिका के साथ आध्यात्मिक महिला भी थी. उनके हाथ की लिखी श्रीमद्भागवत गीता भोपाल संग्रहालय में संरक्षित है. लोकमाता ने धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किये जो 300 वर्ष बाद भी आज याद किए जा रहे हैं और किये जाते रहेंगे. महेश्वर में सभी छोटे बड़े लोगों के साथ बैठकर प्रसाद ग्रहण करके समता और समभाव प्रदर्शित करना तथा सामान्य जन की जीविका हेतु महेश्वर में हथकरघा उद्योग की स्थापना करना इत्यादि लोकमाता के कल्याणकारी कार्यों में प्रतिष्ठित है.


विशिष्ट अतिथि सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. माधुरी कानिटकर जी ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को लोकमाता अहिल्याबाई के जीवन संघर्ष से प्रेरणा लेनी चाहिए. देश का भविष्य युवा पीढ़ी के हाथों में ही होता है. लोकमाता की तीन विशिष्ट भूमिकाएं सैनिक, प्रजावत्सल ममतामयी अभिभावक और शिक्षिका, जिनसे प्रेरित होकर मैंने अपने जीवन को संवारा.

कार्यक्रम अध्यक्ष लोकमाता अहिल्याबाई होलकर त्रिशताब्दी जयन्ती समारोह समिति की अखिल भारतीय अध्यक्षा प्रो. चंद्रकला पाड़िया जी ने कहा कि भारतीय नारी उस पक्षी की तरह है जो दिन में तो आकाश में विचरण करती है, लेकिन शाम होते-होते वह अपने नीड़ में वापस आने की इच्छा भी रखती है. उन्होंने महादेवी वर्मा जी के ’श्रृंखला की कड़ियां’ निबंध-संग्रह का उल्लेख करते हुए लोकमाता अहिल्याबाई के जीवन पर प्रकाश डाला.


कार्यक्रम का शुभारंभ मंचस्थ अतिथियों द्वारा देवी अहिल्याबाई के तैल चित्र और मालवीय जी की प्रतिमा पर पुष्पार्चन तथा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ. मंचस्थ अतिथियों का परिचय एवं स्वागत प्रान्त सम्पर्क प्रमुख दीनदयाल पाण्डेय ने किया. आयोजन समिति की सदस्या डॉ. नीरजा माधव जी ने विषय प्रस्तावना की.

निवेदिता शिक्षा सदन एवं संत अतुलानंद के छात्र- छात्राओं ने देवी अहिल्याबाई होलकर के जीवन पर आधारित लघु नाटिकाओं का मंचन किया. संत अतुलानन्द के विद्यार्थियों ने लघु नाटिका द्वारा काशी विश्वनाथ मन्दिर के स्थापना के प्रसंग को प्रदर्शित किया. कार्यक्रम में जागरण पत्रिका ‘चेतना प्रवाह’ के लोकमाता अहिल्याबाई होलकर पर केंद्रित विशेषांक का लोकार्पण किया गया. साथ ही गुंजन नंदा जी की पुस्तक देवी अहिल्याबाई : महेश्वर से मोक्षदायिनी काशी तक का भी लोकार्पण हुआ. कार्यक्रम में स्वतंत्रता भवन की वीथिका में लोकमाता अहिल्याबाई होलकर से संबंधित चित्रकला प्रदर्शनी का आयोजन भी हुआ.