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देशभक्ति और देवभक्ति अलग-अलग नहीं – डॉ. मोहन भागवत जी

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नागपुर

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि देवभक्ति और देशभक्ति, यह दो शब्द भले ही अलग दिखते हों, लेकिन हमारे देश में यह शब्द अलग नहीं है। जो वास्तविक देवभक्ति करेगा, वह देश की भी भक्ति करेगा। और जो प्रामाणिकता से देशभक्ति करेगा, उससे भगवान देवभक्ति भी करवा लेंगे। यह तर्क नहीं है, अनुभव की बात है। सरसंघचालक जी आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा नागपुर के मानकापुर क्रीडा स्टेडियम में आयोजित सोमनाथ ज्योतिर्लिंग महारुद्र पूजा के अवसर पर संबोधित कर रहे थे। इस दौरान मंच पर आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर जी भी उपस्थित थे।

सरसंघचालक जी ने कहा कि इतिहास भी जब जागा नहीं था, तबसे भारत देश अस्तित्व में है। शिवशंकर जी आदिगुरू हैं। सबके अंदर जो एकतत्व है, उसको जानने के १०८ रास्ते हैं। सबको सिखाने वाले शिवजी हैं। मनुष्यों की प्रकृति अनेक प्रकार की है। सबको एक ही रास्ता सुहाता नहीं। रुचिवैचित्र्य के कारण अनेक प्रकार के रास्ते हैं। लेकिन जाना सभी को एक ही जगह है। यह जो नाना पथ हैं, इसके उद्गाता शिवजी हैं।

उन्होंने कहा कि तपस्या भारत में ही है। जब तपस्या का सार जो अंदर की वस्तु मिल जाती है, तब जानते हैं, जो हम में है वो सब में है और जो सब में है, वही मुझ में है। हमारा आपस में प्रत्यक्ष संबंध है, रिश्ता है, हमारा कॉन्ट्रेक्ट नही है। बच्चों को हम इसलिये नहीं पढ़ाते कि बड़े होकर हमारी सेवा करें। वो नहीं करेंगे तो भी वह हमारा काम है, वह हमारे अपने हैं। बच्चे भी बड़े होकर सोचते हैं, इन्होंने मुझे लाड-प्यार से बड़ा किया, इनकी सेवा करना मेरा कर्तव्य है।

सरसंघचालक जी ने कहा कि जीवन अपनेपन के आधार पर चलता है। इस अपनेपन के संबंधों को आज दुनिया तरस रही है। क्योंकि २ हजार वर्षों से दुनिया जिस प्रभाव में चली, वह प्रभाव अधूरी बात पर आधारित है। उसको ये जोड़ने वाला ज्ञात नहीं, जो सबके अंदर है। जो बलवान है वो जिएगा और जो दुर्बल है वह मरेगा, ऐसा मानकर दुनिया चल रही है। मनुष्यों का ज्ञान बढ़ा, विकास हुआ, लेकिन इसके बाद भी झगड़े चल रहे हैं। मनुष्यो में असंतोष आज भी बरकरार है। सुख सुविधाएँ बहुत हो गयी, पर संतोष नहीं है। विकास बहुत हो रहा, पर्यावरण खराब हो रहा है। यह सारा देखकर दुनिया अब लड़खड़ा रही है। उनको रास्ता नहीं मिल रहा है। रास्ता कहां है, यही है शिवजी के पास। वह रास्ता मिला, तब हमारे पूर्वजों ने सोचा, यदि सब अपने है तो सबको ये बात मिलनी चाहिये। पूरा देश इसके लिये तैयार करना चाहिए। इसलिए बहुत बड़ी मात्रा में गांव, जंगल, झोपड़ी तक हमारे पूर्वजों ने ज्ञान का प्रबोधन किया और पूरा देश ऐसा बनाया, जिसका जीवन देख कर दुनिया संभल जाए।

उन्होंने कहा कि राम मनोहर लोहिया कहते थे, भगवान राम उत्तर से दक्षिण को जोड़ते हैं। भगवान कृष्ण पूरब से पश्चिम को जोड़ने वाले हैं। लेकिन भगवान शिव भारत के कण-कण में हैं। हम सब लोग शिवजी की पूजा करते हैं। लेकिन पूजा करना यानि जिसकी पूजा करते हैं, उसके जैसे थोड़ा-थोड़ा बनने का प्रयास करें तो वह पूरी होती है।

कार्यक्रम में सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत का सत्कार किया गया। धर्म की रक्षा भगवान नंदी करते हैं, ऐसा कहकर श्री श्री रविशंकर जी ने उन्हें पुष्पमाला पहनाकर, शाल और नंदीबैल की प्रतिकृति देकर अभिनंदन किया। श्री श्री रविशंकर जी ने कहा कि डॉ. मोहन भागवत जी कर्मनिष्ठ, समर्पित हैं। लगातार अपना समय देश के लिये, समाज के लिये देते हैं। आपके मार्गदर्शन से करोडों लोग देशभक्ति, धर्म की स्थापना में लगे हैं। संघ १०० साल से देश की धरोहर को बचाने का काम कर रहा है। वह यशस्वी भी हुआ है। संघ के लाखों लोग समाज के लिये समय दे रहे हैं। संघ का काम बढ़ते रहना चाहिए। युवा प्रेरित होकर देश और देवभक्ति में लगने चाहिएं।