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उत्तराखण्ड के गढ़वाल में लकड़ी की लकीर पर आत्मनिर्भरता की तस्वीर

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उत्तराखण्ड के गढ़वाल में लकड़ी की लकीर पर आत्मनिर्भरता की तस्वीर 


उत्तराखण्ड श्रीनगर गढ़वाल, नए भारत के युवा अब नौकरी की तलाश में नहीं भटकते, बल्कि मेहनत और समर्पण से खुद का भविष्य गढ़ते हैं... ऐसा ही कुछ उत्तराखंड के श्रीनगर गढ़वाल में 3 दोस्तों ने कर दिखाया... तीनों युवकों ने लकड़ी की छीलन में अपने भविष्य की तस्वीर ऐसी उकेरी, कि भारत के लिए गौरव और दूसरे युवाओं के लिए प्रेरणा बन गई। उन्होंने न केवल खुद को आत्मनिर्भर बनाया, अपितु अपने हुनर से दूसरों के लिए भी रोजगार की उम्मीद जगाई।


यह कहानी है मनोज, अमित और महावीर की जिन्होंने पारंपरिक लकड़ी कारीगरी को नया आयाम देकर एक सफल स्टार्टअप की नींव रखी। एमए पत्रकारिता और ग्राफिक डिजाइनिंग करने के बाद मनोज ने एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी शुरू की, लेकिन मन वहां नहीं रमा। उन्होंने कुछ अलग करने की ठानी और अपने दो मित्रों पँडुला निवासी अमित रावत और रिंगोली निवासी महावीर कंडारी के साथ मिलकर एक सपना बुना।


यह सपना था आत्मनिर्भर बनने और अपनी जड़ों से जुड़कर कुछ नया रचने का। तीनों युवाओं ने मिलकर कीर्तिनगर ब्लॉक के चौरास क्षेत्र में एक छोटी-सी दुकान से लकड़ी पर मंदिरों की मूर्तियां, आकृतियां और सजावटी सामान बनाने का कार्य शुरू किया। बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री जैसे प्रसिद्ध मंदिरों की तसवीरें उकेरी ... उन्होंने इतनी कलात्मक तरीके से इसे    कि तीर्थयात्रियों और स्थानीयों के बीच यह उत्पाद खूब लोकप्रिय हो गए।


आज उनके बनाए उत्पाद न केवल श्रीनगर में अपितु रुद्रप्रयाग, पौड़ी और चारधाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं में भी आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। मनोज बताते हैं कि शुरुआत में तीनों साथियों ने मिलकर सात लाख रुपये का निवेश किया। शुरू में सबकुछ हाथ से बनाते थे लेकिन धीरे-धीरे आधुनिक मशीनों को शामिल कर उत्पादकता और गुणवत्ता दोनों में निखार लाया। आज यह यूनिट हर माह 50 से 60 हजार रुपये का शुद्ध लाभ कमा रही है और यह मात्र शुरुआत है।


मनोज और उनकी टीम की योजना अब इस स्टार्टअप को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स, हैंडीक्राफ्ट मेलों और निर्यात बाजार तक ले जाने की है। उनका मानना है कि पारंपरिक कारीगरी और डिजिटल मार्केटिंग के संयोग से भारत की लोककलाएं वैश्विक पहचान बना सकती हैं। यह स्टार्टअप केवल एक व्यवसाय नहीं, अपितु एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण भी है।


यह उदाहरण है कि कैसे गाँव, परंपरा और शिल्प मिलकर आत्मनिर्भर भारत का मजबूत आधार बना सकते हैं। मनोज, अमित और महावीर जैसे युवाओं की सोच और समर्पण ही भारत को आर्थिक और सांस्कृतिक दोनों दृष्टियों से समृद्ध बना रहे हैं