चमोली, उत्तराखण्ड
सनातनी त्यौहार हो और पहाड़ी खुश्बू में लिपटी लोककला की चमक, साथ में हों आत्मनिर्भता की खनक, तीनों का संगम हो जाए तो तीज त्योहार खिलखिला उठते हैं। राखी के त्योहार को खुशनुमा बनाने के लिए कुमाऊं में रचीबसी अनूठी चित्रकला को नए अंदाज में उभारने का काम कर रही है ममता भट्ट। ममता चमोली के गोपेश्वर की रहने वाली हैं। घर संभालने के साथ-साथ लोककला ऐपण के संरक्षण में भी जुटी हैं। ममता ऐपण कला से राखियों में रंग भर रही हैं। जिससे लोककला को न केवल संरक्षण मिल रहा है। अपितु आर्थिक संबल भी मिल रहा है। ऐपण से सजीं ये राखियां लोगों को खूब भा रही हैं। ममता अब तक 1500 राखियां बेच चुकी हैं और इससे उन्हें 60 हजार रुपये से अधिक की आय हुई है।
ममता का कहना है कि उन्होंने अपनी मां से लोककला सीखी.. और अब युवा पीढ़ी को इस लोककला से जोड़ने के लिए ऐपण से सजी राखियां तैयार कर रही हैं। राखियों के अलावा वे जूट के बैग, बर्तन, पहाड़ी टोपी और दीवार घड़ी को भी ऐपण से डिजाइन कर रही हैं। ममता का कहना है कि पहाड़ की पारंपरिक कला स्कूलों में सिखाई जानी चाहिए। वहीं अधिक से अधिक महिलाओं को भी इस कला से जोड़ना चाहिएं, ताकि कला के संरक्षण के साथ-साथ युवाओं के लिए रोजगार सृजन का आधार भी बनेगी।