जीवन जो सतत जलते हैं, जीवन जो सतत चलते हैं…. समाज के लिए, राष्ट्र के लिए, पूर्ण रूपेण समर्पित होकर अपने संगठन के सतत विस्तार के लिए, अपने कार्य में आत्मसात होकर, ऐसा ही प्रेरणादायी व्यक्तित्व रही राष्ट्र सेविका समिति की चतुर्थ प्रमुख संचालिका प्रमिलाताई मेढ़े जी 97 वर्ष के सुदीर्घ जीवन में सदैव समिति कार्य की चिंता, सेविकाओं से आत्मीयता और शाखा से लगाव। कोई भी बैठक, वर्ग या आयोजन ऐसा नहीं होगा, जहाँ उन्होंने अधिक आयु और अस्वस्थता के बीच भी सहभागिता न की हो। राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका लक्ष्मीबाई केलकर जी और सरस्वती ताई आप्टे के परम सान्निध्य में तप कर कुंदन बनी प्रमिला ताई ने अपने जीवन का एक ही लक्ष्य तय किया, माँ भारती की सेवा, समिति का विस्तार और अपने इस ध्येय की पूर्ति के लिए सतत प्रवास।
संघ शताब्दी वर्ष में 90 वर्ष पूर्ण करने जा रही सेविका समिति की इस यात्रा की पथिक प्रमिला ताई ने उस समय समिति कार्य स्वीकार किया, जब परिस्थितियाँ प्रतिकूल थीं। समाज में महिलाओं का आगे आकर समाज जागरण हेतु नेतृत्व स्वीकार्य नहीं था, किंतु मौसी जी की प्रेरणा और व ताई जी की दिशा ने तरुणी प्रमिला को राष्ट्र समर्पण की ऐसी भावना से जोड़ा कि वह अंतिम श्वास के पश्चात देहदान के साथ पूर्ण हो रही है। प्रखर राष्ट्रभक्ति में पगा हुआ जीवन अपने गंतव्य की और प्रस्थान कर रहा है, तो मन में जिज्ञासा होती है कि कैसा था ये आत्मीयता से परिपूर्ण जीवन।
राष्ट्र सेविका समिति की पूर्व प्रमुख संचालिका प्रमिला ताई मेढ़े का जीवन वास्तव में राष्ट्रभक्ति, मातृशक्ति और समाज जागरण की धधकती शिखा रहा है। महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले में जन्मीं प्रमिला ताई बालपन से ही राष्ट्र सेविका समिति के सम्पर्क में आ गईं थी। समिति की संस्थापिका वन्दनीया लक्ष्मीबाई केलकर उपाख्य मौसी जी का उन पर गहरा प्रभाव और स्नेह था। मौसी जी के निकट सान्निध्य में रहकर उन्होंने स्त्री शक्ति के नव जागरण के संगठन सूत्रों को समझा-सीखा और जाना। स्नातक एवं शिक्षक प्रशिक्षण पूर्ण कर नागपुर के सी.पी. एण्ड बरार उच्च माध्यमिक विद्यालय में दो वर्ष अध्यापन कार्य भी किया और उसके बाद वरिष्ठ अंकेक्षक (ऑडिटर) की शासकीय सेवा भी की, किन्तु समिति के कार्य के लिए सेवानिवृत्ति से 12 वर्ष पूर्व ही स्वैच्छिक अवकाश (वी.आर. एस.) ले लिया। राष्ट्र सेविका समिति के शाखा स्तर के दायित्व से लेकर उन्होंने क्रमशः नगर, विभाग, प्रांत, अखिल भारतीय स्तर के दायित्व बड़ी कुशलता से संभाले।
1950 से 1964 तक विदर्भ प्रांत की कार्यवाहिका रहीं। सन् 1965 से 1975 तक केन्द्रीय कार्यालय अहल्या मन्दिर की प्रमुख, 1975 से 1978 तक आन्ध्र प्रदेश की पालक अधिकारी, 1978 से 2003 तक 25 वर्ष का लम्बा कालखण्ड समिति की अ. भा. प्रमुख कार्यवाहिका के रूप में निर्वहन किया और संपूर्ण भारत सहित समिति कार्य के लिए इंग्लैण्ड, अमेरिका, कनाडा, डरबन आदि देशों का प्रवास भी किया। सामाजिक जागरण एवं स्त्री नवोन्मेष के इनके प्रयासों की सराहना सदैव ही हुई। अमेरिका में न्यूजर्सी शहर के महापौर द्वारा इन्हें “मानद नागरिकता” भी प्रदान की गई। फरवरी, 2003 से उन पर समिति की सह प्रमुख संचालिका और 2006 से 2012 तक प्रमुख संचालिका का दायित्व रहा। इस दायित्व पर रहते हुए उन्होंने मौसी जी के जन्म शताब्दी वर्ष में 2 अगस्त, 2003 से 2 मई, 2004 तक मौसी जी की जीवन-प्रदर्शनी के साथ 266 दिनों की भारत परिक्रमा निजी वाहनों से की। कन्याकुमारी से लेकर नेपाल, जम्मू-कश्मीर एवं जूनागढ़ से लेकर इम्फाल तक उन्होंने लगभग 28000 कि.मी. की यात्रा कर संपूर्ण देश को स्त्री शक्ति के संगठन व जागरण का महामंत्र दिया। एक ऐसी पालक के नाते जो समिति को ही जीती थी, भारत ही नहीं भारत के बाहर की भी हर सेविका को स्मरण रखना, उनकी तीव्र स्मरण शक्ति का उदाहरण था। अपनी शारीरिक अस्वस्थता के बीच भी 2022 में विश्व समिति शिक्षा वर्ग भोपाल में चित्रा ताई के साथ आग्रहपूर्वक नागपुर से कार द्वारा भोपाल पहुंचीं और दो दिन सभी सेविकाओं के साथ शाखा, बैठक में उपस्थित रहना और अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, कीनिया, कनाडा और संयुक्त अरब अमीरात की बहनों से पृथक संवाद किया। प्रबंधिका बहनों का उत्साहवर्धन करना ठीक वैसे ही जैसे एक माँ अपनी बेटियों की पीठ थपथपाती है। अभी कुछ समय पूर्व ही नागपुर में संपन्न हुए प्रवीण वर्ग में व्हील चेयर पर आकर सभी सेविका बहनों को स्नेह देना हो अथवा हाल ही में अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में सभी बहनों को आभासी माध्यम से सावधान रहें, सजग रहें, सतर्क रहना, कोई गलती नहीं करना, यही संदेश देते हुए सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना जब प्रमिला ताई ने की तो संपूर्ण भारत से एकत्रित आई सेविका बहनों की आँखों में श्रद्धा के अश्रु छलक उठे थे। मुझे भी भोपाल विश्व समिति शिक्षा वर्ग के साथ ही अभी नागपुर बैठक उपरांत प्रत्यक्ष अहल्या मन्दिर में दर्शन करने जाने पर न केवल स्मरण रखते हुए आशीर्वाद दिया, अपितु पालक के नाते हथेली पर प्रेम रूपी मिष्ठान का प्रसाद रखते हुए गृहण करने को दिया। आज भारत के साथ ही विश्व के अनेक देशों में निवासरत सेविकाओं को संगठन की ही नहीं, निजी क्षति का भी अनुभव हो रहा है और बस उनका यही वाक्य देश के लिए कार्य करो, अर्थ पूर्ण कार्य करो, निरंतर कार्य करो, जन्म जन्मांतर कार्य करो, पाथेय बन कर गूंज रहे हैं।