बड़कोट, उत्तराखण्ड
बड़कोट तहसील से लगे पोल गांव निवासी शिक्षक दिनेश प्रसाद जगूड़ी ने कलम के साथ कुदाल थामी तो खेती और बागवानी लहलहाने लगी। साप्ताहिक अवकाश और अन्य छुट्टियों में खेतों में मेहनत कर वह उदाहरण बन गए हैं। सरकारी नौकरी के साथ खेती व बागवानी को जीवन का अहम हिस्सा बनाना उनके लिए प्रेरणा बन गया है। वर्तमान में वे डंडाल गांव के प्राथमिक विद्यालय में तैनात हैं। शिक्षक होने के बावजूद उनका मन मिट्टी से जुड़ा है और खेती-बागवानी में रमता है। उनकी पत्नी संगीता और बच्चे पीयूष व आराधना भी इसमें सक्रिय योगदान देते हैं। कोरोना काल के दौरान लॉकडाउन में उन्होंने अपनी जमीन पर 1.80 लाख रुपये की लागत से सेब का बगीचा लगाया, जिसमें आज 250 पेड़ हैं और हर साल लगभग एक लाख रुपये की आय हो रही है। उन्होंने गाला प्रजाति के सेब की फसल जून में ही तैयार कर दिखा दी, जबकि आमतौर पर यह अगस्त-सितंबर में पकती है। इसके साथ परिवार मौसमी सब्जियां जैसे कद्दू, लौकी, करेला और बारहमासी छेमी भी उगाता है। शिक्षक दिनेश का मानना है कि खेती सिर्फ आजीविका का साधन नहीं अपितु स्वास्थ्य और संस्कृति से जुड़ाव का माध्यम है। बच्चों को गाँव और मिट्टी से जोड़ना जरूरी है, वरना आज का युवा मोबाइल और आभासी दुनिया में खो रहा है। उनकी जीवनशैली प्रधानमंत्री के फिट इंडिया मूवमेंट की झलक दिखाती है और यह साबित करती है कि आधुनिकता व परंपरा का संतुलन बनाकर आत्मनिर्भर और खुशहाल जीवन जिया जा सकता है। दिनेश प्रसाद जगूड़ी का यह प्रयास न केवल उनके परिवार बल्कि गाँव के अन्य परिवारों के लिए भी प्रेरणा बन चुका है।