उत्तरकाशी, उत्तराखण्ड
पहाड़ों की गोद, हरी-भरी वादियाँ, जहाँ सदियों पुरानी परम्पराएं आज भी सांस लेती हैं। वहां पारंपरिक विशेष परिधान पहने प्रधानमंत्री दूरबीन से जिस घाटी को देख रहे हैं। यहीं बसता है जाड़-भोटिया समुदाय। इसी समुदाय ने प्रधानमंत्री के लिए तैयार किया है सफेद ऊन के धागों से परकोटा परिधान। जिन्होंने सदियों से ऊन के धागों में अपनी कला और आजीविका को सँजोया है। 63 साल पहले भारत का ये समुदाय तिब्बत का सबसे बड़ा व्यापारी था। लेकिन 1962 में भारत-चीन युद्ध के कारण इन्हें व्यापार में नुकसान हुआ। तब जाड़ भोटिया समुदाय ने हार न मानते हुए भेड़ों की ऊन से गर्म, टिकाऊ और कलात्मक वस्त्र डिजाइन करने के अपने पारंपरिक कौशल से धूल छांटी और अपनी नई पहचान बना ली। आज भी ये समुदाय अपनी सदियों से चली आ रही हस्तकला को आधुनिक प्रयासों से नई ऊंचाई दे रहा है। इसी विरासत को आधुनिक बाजार से जोड़ने का काम कर रहा है 'नालंदा वुलन स्वयं सहायता समूह'। 80 महिलाओं का यह समूह, अपनी पारंपरिक बुनाई कला को एक सफल उद्यम में बदल रहा है। समूह की अध्यक्ष भागीरथी नेगी का कहना है कि "पहले काम सीमित था, लेकिन अब हमें देश भर से ऑर्डर मिल रहे हैं। हाल ही में हमें कुल्लू से 1.20 लाख के स्वेटर और कारगिल से तीन लाख के स्वेटर, कोट, शाल, जुराब, टोपी व दस्ताने का बड़ा ऑर्डर मिला है। यह दिखाता है कि हमारे पारंपरिक ऊनी कपड़ों की माँग बढ़ रही है।" इन ऑर्डरों को पूरा करने में समूह की 80 महिलाएँ जुटी हुई हैं, जिससे न सिर्फ़ उनकी पारंपरिक कला जीवित है, बल्कि उन्हें एक स्थाई आय का स्रोत भी मिल रहा है। यह उनके सशक्तिकरण और पूरे समुदाय की समृद्धि का प्रतीक है।

                                
                                
                                
                            
                            
                            
                            


