पुणे
स्वच्छता के प्रति स्वयंसेवकों की पहल – निर्मल वारी के लिए 3600 मोबाइल शौचालय की व्यवस्था; 10 वर्ष में गंदगी में 80 प्रतिशत की कमी आई
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने शताब्दी वर्ष में पाँच संकल्पों को लेकर समाज में जनजागरण कर रहा है। यह पांच संकल्प है- स्व , कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण और नागरिक कर्तव्य। इन पंचसंकल्पों में “नागरिक कर्तव्य” के अंतर्गत पुणे में स्वयंसेवकों ने ‘निर्मल वारी’ अभियान के ज़रिए एक बड़ी पहल की है।
बताते चलें की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सेवा सहयोग ने निर्मल वारी के लिए कुल 3600 मोबाइल शौचालयों का उपयोग किया जा रहा है, और आषाढी एकादशी के लिए पंढरपुर में अतिरिक्त दो हजार शौचालय स्थापित किए गए हैं। विशेष बात यह कि पंढरपुर के स्थानीय प्रशासन ने 26 हजार सार्वजनिक शौचालय उपलब्ध कराए हैं। पिछले 10 वर्षों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सेवा सहयोग संस्था के कार्यकर्ताओं ने स्वच्छता यज्ञ को लगातार जारी रखा है। जिससे वारी मार्ग के गांवों में गंदगी में 80 प्रतिशत तक की कमी आई है। आषाढ़ी एकादशी के अवसर पर हर साल लाखों वारकरी डिंडी (पालकी) पैदल पंढरपुर जाते हैं। पालकी के पड़ाव पर सुविधाओं के अभाव में वारकरियों को खुले में शौच करना पड़ता था, जिससे गंदगी फैलती थी। इस समस्या का समाधान करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सेवा सहयोग संस्था ने पहल की और निर्मल वारी की शुरुआत की।
महाराष्ट्र की सांस्कृतिक परंपरा वाली यह वारी सकुशल संपन्न हो, पर्यावरण की रक्षा हो और जिन गांवों से वारी गुजरती है, वहां बीमारियां न फैलें, इसके लिए 2015 से निर्मल वारी अभियान चलाया जा रहा है। सैकड़ों वर्षों से अनेक उतार-चढ़ाव देखते हुए वारकरी पंढरपुर की वारी नियमित रूप से करते आ रहे हैं। आधुनिक काल में अब वारी सही मायने में भौतिक रूप से निर्मल हो गई है। निर्मल वारी के मुख्य संयोजक संदीप जाधव बताते हैं – “संतश्रेष्ठ ज्ञानेश्वर महाराज, जगद्गुरु संत तुकाराम महाराज, निवृत्तिनाथ महाराज, सोपानकाका की पालकियों के साथ राज्य सरकार ने मोबाइल शौचालय उपलब्ध कराए हैं। उनके प्रबंधन, स्वच्छता, उपयोग का नियोजन, साथ ही वारकरियों के प्रबोधन का नियोजन सेवा सहयोग और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक पिछले 10 साल कर रहे हैं। वारी की यात्रा को स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिए स्वयंसेवकों ने आगे आकर यह अभियान शुरू किया। जिसे अब राज्य सरकार और समाज की विभिन्न संस्थाओं का बड़ा साथ मिल रहा है। हर साल वारी अधिक स्वच्छ और स्वास्थ्यवर्धक होती जा रही है। पालकी पड़ावों पर फैलने वाली बीमारियां लगभग खत्म हो गई हैं।” जाधव ने बताया कि पिछले 10 साल में वारी में खुले में शौच करने का प्रमाण 80 प्रतिशत तक घट गया है। नियमित वारी करने वाले वारकरी शौचालयों का उपयोग कर रहे हैं, और डिंडी चालक तथा स्थानीय नागरिकों द्वारा भी शौचालयों के उपयोग पर जोर दिया जा रहा है, जिसे वारकरियों का भी सकारात्मक प्रतिसाद मिल रहा है।
हजारों कार्यकर्ता
चारों संतों के पालकी समारोह में शुरू से ही निर्मल वारी के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सेवा सहयोग के हजारों कार्यकर्ता कार्यरत हैं। 27 कार्यकर्ता पालकी के दौरान पूर्णकालिक रूप से नियोजन कर रहे हैं। निर्मल वारी के मुख्य संयोजक जाधव के साथ संतोष दाभाडे, सह-संयोजक अविनाश भेगडे, माउली की पालकी मार्ग के प्रमुख भूषण सोनवणे, सह-प्रमुख मंदार लोंबर, तुकाराम महाराज की पालकी मार्ग के प्रमुख विशाल वेदपाठक, सह-प्रमुख नितिन बारणे, जबकि पंढरपुर में स्वानंद देशमाने प्रमुख के रूप में और साहिल शर्मा सह-प्रमुख के रूप में कार्यरत हैं। साथ ही वाखरी पड़ाव पर विनय हडवळे, आशीष गौड़, निखिल घोरपडे, प्रसन्न पवार, जयदीप खापरे, सतीश नागरगोजे आदि कार्यकर्ता शामिल हैं। साथ ही प्रत्येक पड़ाव पर रा. स्व. संघ के महाविद्यालयीन विभाग के स्वयंसेवक और समाज के कार्यकर्ता 50 से 60 की संख्या में व्यवस्था के लिए जा रहे हैं। वहां पानी, बिजली, स्वच्छता आदि व्यवस्थागत कार्य और वारकरियों को जागरूक करने का कार्य कर रहे हैं। सोलापुर स्थित विठ्ठळ एजुकेशन संस्था, हिन्दू एकता आंदोलन, सिंहगर्जना पथक आदि का भी सहयोग मिल रहा है।
पंढरपुर एकादशी के लिए तैयार
आषाढी एकादशी को पंढरपुर में
बारह/तेरह लाख वारकरी आते हैं। इसलिए पहले वाळवंट (रेत का मैदान) में अत्यधिक
दुर्गंध फैल जाती थी। अब हालांकि यह प्रमाण 85 प्रतिशत
तक कम हो गया है, संदीप जाधव ने कहा कि “निर्मल वारी के
माध्यम से इस साल दो हजार और स्थानीय प्रशासन द्वारा 26 हजार सार्वजनिक शौचालयों की व्यवस्था की गई है। वारकरियों को
जागरूक करने और स्वच्छता का कार्य निर्मल वारी के माध्यम से हो रहा है, और तीन दिनों तक वहां यह कार्य किया जाएगा।” उन्होंने विश्वास
व्यक्त किया कि अभी भी इस स्वच्छता को बढ़ाने के लिए प्रयास करना आवश्यक है, और जनभागीदारी से यह निश्चित रूप से संभव होगा।
‘निर्मल वारी’ एक उदाहरण है कि कैसे स्वयंसेवक नागरिक कर्तव्यों को निभाते हुए समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। यह अभियान न केवल स्वच्छता को बढ़ावा देता है, बल्कि जनसहभागिता की प्रेरणा भी देता है।