गाजियाबाद के मोदीनगर की आशा कांवड़ यात्रा में शामिल हुई, तो भारतीय संस्कृति और भक्ति के अनुपम संगम की खुशबू बिखर गई। आशा ने अपने दिव्यांग पति सचिन को कंधे पर बिठाकर 170 किलोमीटर की कांवड़ यात्रा पूरी कर एक मिसाल कायम की है। उनके साथ उनका छोटा बेटा भी साथ ही चल रहा था, आशा ने न केवल एक मिसाल पेश की, बल्कि अपने बेटे को भी भारत की सबसे अद्भुत संस्कृति से परिचित कराया है। मोदीनगर से हरिद्वार पहुंचकर उन्होंने सबसे पहले दक्षेश्वर महादेव मंदिर में जलाभिषेक किया और भगवान शिव से अपने पति के स्वास्थ्य की कामना की। आशा का कहना है कि पहले प्रत्येक वर्ष उनके पति सचिन कांवड़ लेकर आते थे, परन्तु किसी बीमारी के कारण वे दिव्यांग हो गए। तब पत्नी आशा ने ना सिर्फ उनका साथ दिया बल्कि उनका अधूरा संकल्प भी पूरा किया। वहीं पति सचिन का कहना है कि भगवान ने उन्हें किस्मत से ऐसी पत्नी दी है जो हर परिस्थिति में साथ निभा रही है।
वहीं दूसरी ओर, हरियाणा की संतोष खुद दिव्यांग हैं — लेकिन जब उनके पति गलत रास्ते पर निकल गए और नशे में डूब गए, तो उन्होंने भगवान से वादा किया — "अगर ये नशा छोड़ देंगे, तो मैं हर साल आपके लिए गंगाजल लेकर आऊंगी।" पति का नशा छूट गया और संतोष ने अपना वादा निभाया। अब दिव्यांग संतोष हालात के आगे हारी नहीं, बल्कि हर साल वो 300 किलोमीटर ट्राइसाइकिल से कांवड़ यात्रा में सम्मिलित होती हैं। भारतीय संस्कृति में कहा गया है- नारी तू नारायणी। इसे सही साबित कर रही हैं आशा और संतोष जैसी महिलाएं। जिनके कुटुंब पर जब भी कोई परेशानी आई, तब-तब वे संकटमोचक दुर्गा बनकर, कभी खेवइयां बनकर कमान संभाल लेती हैं।