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संघ की शाखा पर आतंकी हमले वाला स्थान बना सेवा का केन्द्र

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मोगा,पंजाब

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में गीत गाया जाता है ‘सेवा है यज्ञकुण्ड, समिधा सम हम जलें’। परन्तु मोगा का यह सेवा यज्ञकुण्ड कोई सामान्य नहीं, बल्कि इसमें हुतात्मा स्वयंसेवकों का खून भी हवन का घृत बन समाज में सेवा व बलिदान की अलख जला रहा है। आतंकियों के हमले में बलिदान स्वयंसेवकों के परिजन व संघ के स्वयंसेवक इस स्थान पर सेवा के अनेक प्रकल्प चला रहे हैं, जिसको समाज का भी अप्रितम सहयोग व स्नेह मिल रहा है।

मोगा पीड़ित सहायता समिति के अध्यक्ष अनिल बंसल हैं, जिनके पिता गजानन्द जी भी निहत्थे ही आतंकियों से लोहा लेते हुए बलिदान हुए थे। इसके अतिरिक्त सचिव की जिम्मेवारी रामपाल गुप्ता व कोषाध्यक्ष की जिम्मेवारी हितेष गुप्ता जी सम्भाले हुए हैं। समिति के पूर्व अध्यक्ष राजेश पुरी ने बताया कि बलिदानियों का रक्त सेवा रूपी ज्योति में तेल सरीखा काम कर रहा है। बलिदानियों के स्वप्न को साकार करने व उनके दृष्टिकोण को मूर्त रूप प्रदान करने के लिए शहीदी पार्क पर सेवा के अनेक काम शुरू किए गए हैं।

डॉ. राजेश पुरी ने बताया कि शहीदी स्मारक में कार्यालय भी चल रहा है, जो हमारे लिए प्रेरणापुंज है। समिति की ओर से यहां फिजियोथैरेपी केंद्र चलाया जा रहा है, जहां पर मात्र 70/- रुपये लेकर मरीजों का ईलाज किया जाता है। केंद्र में संचालन के लिए एक फिजियोथैरेपिस्ट व एक सहायक की सहायता ली जा रही है। औसतन प्रतिदिन 8 से 10 लोग सेवा का लाभ उठा रहे हैं।

शहीदी स्मारक में एक सामुदायिक भवन का निर्माण किया गया है। दो मंजिला भवन में नीचे आयोजन के लिए और ऊपर खाने-पीने का सामान बनाने के लिए स्थान दिया गया है। सामुदायिक भवन में केवल सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों को ही अनुमति दी जाती है। इसके लिए नाममात्र शुल्क लिया जाता है।

स्मारक में एक वाचनालय की स्थापना की गई है। यहां पर दैनिक समाचारपत्रों के साथ-साथ अनेक पत्रिकाएं पढ़ने के लिए उपलब्ध हैं। सद्साहित्य भी पढ़ने के लिए उपलब्ध है। प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोग यहां आते हैं। शहीदी पार्क में आने वालों व आसपास के लोगों के लिए दो वाटर कूलर स्थापित किए गए हैं। समय-समय पर समाज सेवा के अनेक प्रकल्प यहां चलाए जाते हैं।

पंजाब के मोगा शहर के इतिहास में 25 जून, 1989 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा पर आतंकियों ने हमला कर 25 स्वयंसेवकों व नागरिकों को मार दिया था। सुबह के समय चहल-पहल के दौरान हुई इस घटना के बाद हर तरफ मातम पसर गया, जिसने आंखों से यह मंजर देखा वह उसे आज तक नहीं भुला सका। डॉ. राजेश पुरी बताते हैं कि आतंकवादियों ने संघ का ध्वज उतारने के लिए कहा था, पर स्वयंसेवकों ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया और उनको रोकने का यत्न किया था, पर किसी की बात न सुनते हुए आतंकवादियों ने अंधाधुंध फायरिंग करनी शुरू कर दी थी, जिसमें 25 कीमती जानें गई थीं। इस घटना ने न केवल पंजाब में हिन्दू-सिक्ख एकता को नवजीवन दिया, बल्कि आतंकवाद पर भी गहरी चोट की क्योंकि घटना के अगले ही दिन उस जगह दोबारा शाखा लगी। जिससे आतंकियों के हौंसले पस्त हो गए।

रोजाना की तरह उस दिन भी सैर का आनंद ले रहे थे, वहीं दूसरी तरफ संघ स्वयंसेवकों की शाखा भी लगी हुई थी। इस दिन शहर की सभी शाखाएं नेहरू पार्क में एक जगह पर लगी थीं और संघ का एकत्रीकरण था। सुबह 6 बजे कार्यक्रम शुरू हुआ तो अचानक 6.25 पर सभा को संबोधित कर रहे स्वयंसेवकों पर आतंकवादियों ने आकर हमला कर दिया। गोलियों की बरसात रुकने के बाद हर तरफ खून का तालाब दिखाई दे रहा था। घायल स्वयंसेवक तड़प रहे थे। गोलियां लगने के कारण कई स्वयंसेवकों के शरीर भी बेजान हो गये और कईयों ने अस्पताल में जाकर अंतिम सांस ली। इस गोली कांड के दौरान 25 लोग बलिदान हो गए, वहीं आसपास के 31 के करीब लोग घायल भी हो गए। इस गोली कांड ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया, लेकिन फिर भी संघ के स्वयंसेवकों ने हिम्मत नहीं छोड़ी और अगले ही दिन 26 जून, 1989 को फिर से शाखा लगाई। बाद में नेहरू पार्क का नाम बदल कर शहीदी पार्क कर दिया गया, जो आज देशभक्तों के लिए तीर्थस्थान बना हुआ है।

जो बलिदान हुए

आतंकी हमले में बलिदान होने वालों में सर्वश्री लेखराज धवन, बाबू राम, भगवान दास, शिव दयाल, मदन गोयल, मदन मोहन, भगवान सिंह, गजानंद, अमन कुमार, ओमप्रकाश, सतीश कुमार, केसो राम, प्रभजोत सिंह, नीरज, मुनीश चौहान, जगदीश भगत, वेद प्रकाश पुरी, ओम प्रकाश और छिंदर कौर (पति-पत्नी), डिंपल, भगवान दास, पंडित दुर्गा दत्त, प्रह्लाद राय, जगतार राय सिंह, कुलवंत सिंह शामिल हैं। गोली कांड में प्रेम भूषण, राम लाल आहूजा, राम प्रकाश कांसल, बलवीर कोहली, राज कुमार, संजीव सिंगल, दीना नाथ, हंस राज, गुरबख्श राय गोयल, डॉ. विजय सिंगल, अमृत लाल बांसल, कृष्ण देव अग्रवाल, अजय गुप्ता, विनोद धमीजा, भजन सिंह, विद्या भूषण नागेश्वर राव, पवन गर्ग, गगन बेरी, राम प्रकाश, सतपाल सिंह कालड़ा, करमचंद और कुछ अन्य स्वयंसेवक घायल हुए थे।

जब निहत्थे दंपत्ति ने आतंकियों को ललकारा

गोली कांड के बाद छोटे गेट से भाग रहे आतंकवादियों को वहां मौजूद एक साहसी पति-पत्नी ओमप्रकाश और छिंदर कौर ने बड़े जोश से ललकारा और पकड़ने की कोशिश की, पर एके-47 से हुई गोलीबारी ने उनको भी मौत की नींद सुला दिया और साथ ही आतंकवादियों को पकड़ते समय समीप ही घरों के पास खेल रहे 2-3 बच्चों में से डेढ़ साल की डिंपल को भी मौत ने अपनी तरफ खींच लिया।

ध्वज न उतारने पर आतंकवादियों ने किया था फायर

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार आतंकवादियों ने आते ही संघ कार्यकर्ताओं को भगवा ध्वज उतारने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया तथा उनको रोकने का प्रयत्न किया। लेकिन किसी की बात न सुनते हुए आतंकवादियों ने अंधाधुंध फायरिंग करनी शुरू कर दी।

10 साल की उम्र में गोलीकांड को आंखों से देखने वाले एक नौजवान नितिन जैन ने बताया कि उनका घर शहीदी पार्क के बिल्कुल सामने था तथा रविवार का दिन होने के कारण वह सुबह पार्क में चला गया तथा जैसे ही आतंकवादियों ने धावा बोलकर गोलियां चलानी शुरू कीं तो वह धरती पर लेट गया तथा जब आतंकवादी भाग रहे थे तो सभी ने उनको पकड़ने की कोशिश की तथा मैं भी इसको खेल समझकर भागने लगा, तो एक व्यक्ति ने उसको पकड़ कर घर भेजा।

दंगा चाहने वाले भी हुए निराश

ये दिन थे, जब अभी दिल्ली सहित देश के सिक्ख विरोधी दंगों की आग में अभी तपिश जारी थी। आतंकियों ने तो संघ पर हमला कर हिन्दू-सिक्ख एकता में दरार डालने का प्रयास किया ही, साथ में कुछ दंगा संतोषियों ने भी कहना शुरू कर दिया कि सिक्खों ने अब लगाया है शेर की पूंछ को हाथ। इनका तात्पर्य था कि शायद सेक्युलर दल कांग्रेस की भांति संघ भी इसके बाद सदियों पुराने संबंध भुला कर देशभर में सिक्खों पर टूट पड़ेगा, परन्तु शायद वे संघ को समझने में चूक गए। संघ ने न तो देश में सांप्रदायिक माहौल खराब होने दिया और अगले ही दिन शाखा लगा कर आतंकियों व देशविरोधी ताकतों को संदेश दिया कि हिन्दुओं-सिक्ख एकता को कोई तोड़ नहीं सकता और न ही आतंकवाद पंजाबी एकता को तोड़ सकता। संघ ने आतंकियों के साथ-साथ दंगा संतोषियों को भी निशब्द कर दिया।

26 जून की सुबह ही उसी स्थान पर गुनगुना रहा था – ‘कौन कहंदा हिन्दू-सिक्ख वक्ख ने, ए भारत माँ दी सज्जी-खब्बी अक्ख ने’ अर्थात् कौन कहता है कि हिन्दू-सिक्ख अलग-अलग हैं, ये तो भारत माता की बाईं और दाईं आंख के समान हैं।

बलिदानियों की स्मृति को जीवित रखने के लिए शहीदी स्मारक बनाने का संकल्प लिया गया। इस कार्य के लिए मोगा पीड़ित मदद और स्मारक समिति का गठन हुआ। शहीदी स्मारक का नींव पत्थर 9 जुलाई को भाऊराव देवरस जी ने रखा, तथा स्मारक का उद्घाटन 24 जून, 1990 को प्रो. राजेंद्र सिंह (रज्जू भैया) ने किया था।