भक्ति और समरसता का संगम: पुरी धाम की रथ यात्रा
काजल सिंह, स्वतंत्र टिप्पणीकार
भारत, एक ऐसा देश है जिसकी संस्कृति और परंपरा विश्व प्रसिद्ध है। भारतीय संस्कृति की जड़ें हजारों वर्षों पुरानी हैं और यह हमारे गौरवमयी इतिहास, धर्म, कला, संगीत, साहित्य और संस्कारों में बसी हुई है। भारत की वैविध्यपूर्ण संस्कृति एकात्म भाव से पोषित है जहां परंपराओं को बड़े उत्साह और हर्ष के साथ मनाया जाता है। ऐसा ही एक उत्सव है पुरी की ”श्री जगन्नाथजी की यात्रा“ जो भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को समर्पित होती है। यह यात्रा विशेष रूप से उड़ीसा के पुरी शहर में बहुत ही भव्य रूप से निकाली जाती है। यह मात्र एक धार्मिक उत्सव नहीं बल्कि आस्था, भक्ति और एकता का संगम है।
भगवान जगन्नाथ, भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के ही एक रूप हैं। उड़ीसा में इन्हें विशेष रूप से पूजा जाता है। ‘जगन्नाथ’ शब्द का अर्थ होता है- ‘जगत के नाथ’ अर्थात् पूरे संसार के स्वामी। इनके साथ उनके बड़े भाई बलभद्र और छोटी बहन सुभद्रा की भी पूजा की जाती है। पुरी में स्थित प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर इन तीनों भाई-बहन को समर्पित है। यह मंदिर भारत के चार धामों में से एक है। मान्यता है कि यहां भगवान जगन्नाथ स्वयं विराजमान हैं।
रथ यात्रा की शुरुआत कब और कैसे होती है? पुरी में प्रतिवर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा विशाल रथों पर बैठकर अपने मौसी के घर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। यह यात्रा पूरे 9 दिनों तक चलती है।
यात्रा के आरंभ से पहले भगवानों की मूर्तियों को स्नान कराया जाता है जिसे स्नान पूर्णिमा कहा जाता है। इसके बाद मूर्तियां कुछ दिनों तक विश्राम करती हैं। भगवान का यह रथ 3 किलोमीटर लंबी यात्रा करता है और गुंडिचा मंदिर पहुँचता है, जहाँ भगवान 7 दिन तक विश्राम करते हैं। इस दौरान उन्हें विशेष भोग अर्पित किए जाते हैं। यह मंदिर भगवान की मौसी का घर माना जाता है। 8वें दिन भगवान की वापसी यात्रा होती है जिसे बहुड़ा यात्रा कहा जाता है। वापसी के दौरान भगवान एक दिन के लिए मौसी के घर के रास्ते पर स्थित माऊसी मंदिर में रुकते हैं और वहां उन्हें एक विशेष मिठाई अर्पित की जाती है, जिसे पोड़ा पीठा कहते है
रथ यात्रा का धार्मिक महत्व: रथ यात्रा मात्र एक शोभा यात्रा नहीं है, बल्कि यह भक्ति, प्रेम और समर्पण से पूर्ण भारतीय संस्कृति की एक गहन झलक है। यह यात्रा दर्शाती है कि भगवान अपने भक्तों के प्रति कितने करुणामय और सुलभ हैं। रथ यात्रा के पावन अवसर पर भगवान स्वयं अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर विराजमान होकर नगर भ्रमण करते हैं, जिससे हर वर्ग, धर्म और जाति के श्रद्धालु उनके दर्शन कर सकते हैं। रथ को भक्तगण अपने हाथों से खींचते हैं, जो यह दर्शाता है कि भगवान को पाने के लिए प्रेम और समर्पण ही सबसे बड़ा माध्यम है। रथ यात्रा एक आध्यात्मिक यात्रा भी है, जो आत्मा की परमात्मा की ओर गति का संकेत देती है। इसके माध्यम से सामाजिक एकता, विश्वबंधुत्व और मानवता का संदेश भी दिया जाता है। इसलिए रथ यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टि से, अपितु सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह यात्रा दुनिया का सबसे बड़ा रथ उत्सव है। इसमें लाखों भक्त सम्मिलित होते हैं। प्रतिवर्ष तीन विशाल रथों को केवल लकड़ी से बनाना एक बड़ी कला है, जो सदियों से चली आ रही है। यह पर्व भारत के दर्शन को दर्शाता है जिसमें सभी को साथ लेकर चलने का संदेश है।
इसमें जाति, धर्म, रंग, भाषा का कोई भेदभाव नहीं होता। हर कोई भगवान के रथ को खींच सकता है, हर कोई भगवान को देख सकता है। श्री जगन्नाथ यात्रा भारतीय संस्कृति का एक अद्भुत पर्व है। यह न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज में प्रेम, समानता और एकता का भी संदेश देता है। जब लाखों श्रद्धालु एक साथ ”जय जगन्नाथ“ का जयघोष करते हैं, तो वह मात्र एक नारा नहीं होता, बल्कि वह भगवान और भक्त के बीच के अटूट संबंध का प्रमाण होता है। हमें ऐसे पर्वों के पीछे छुपे संदेश को भी अपनाना चाहिए जहां भगवान स्वयं अपने रथ से उतरकर हमारे बीच आते हैं, हमें साथ लेकर चलते हैं और यह दिखाते हैं कि सच्चा धर्म वही है जो सबको एक साथ लेकर चले। भारतीय संस्कृति के यही पर्व और उत्सव इसे जीवंत बनांते हैं।
जय जगन्नाथ!