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आजादी का अमृत महोत्सव

भारतीय संविधान पर उनके वक्तव्यों के अंश - डॉ. मोहन भागवत जी, सरसंघचालक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

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“ऐसी नीतियॉं चलाकर देश के जिस स्वरूप के निर्माण की आकांक्षा अपने संविधान ने दिग्दर्शित की है, उस ओर देश को बढ़ाने का काम करना होगा।“ (विजयादशमी उत्सव, नागपुर - 3 अक्टूबर 2014)

“इस देश की संस्कृति हम सब को जोड़ती है, यह प्राकृतिक सत्य है। हमारे संविधान में भी इस भावनात्मक एकता पर बल दिया गया है। हमारी मानसिकता इन्हीं मूल्यों से ओतप्रोत है।“ (संघ शिक्षा वर्ग तृतीय वर्ष समापन समारोह, नागपुर - 9 जून 2016)

 “स्वतंत्र भारत के सब प्रतीकों के अनुशासन में उसका पूर्ण सम्मान करके हम चलते हैं। हमारा संविधान भी ऐसा ही प्रतीक है। शतकों के बाद हम को फिर से अपना जीवन अपने तंत्र से खड़ा करने का जो मौका मिला, उस पर हमारे देश के मूर्धन्य लोगों ने, विचारवान लोगों ने एकत्रित आकर विचार करके संविधान को बनाया है।“(भविष्य का भारत - 18 सितम्बर 2018, विज्ञान भवन, नई दिल्ली)

“संविधान ऐसे ही नहीं बना है। उसके एक-एक शब्द का बहुत खल हुआ है और उनको लेकर सर्वसहमति उत्पन्न करने के पूर्ण प्रयास के बाद जो सहमति बनी, वह संविधान के रूप में अपने पास आयी, उसकी एक प्रस्तावना preamble है। उसमें नागरिक कर्तव्य बताए हैं। उसमें डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स है, और उसमें नागरिक अधिकार भी है।“ (भविष्य का भारत, नई दिल्ली - 18 सितम्बर 2018)

“मैं preamble पढ़ देता हूँ, ‘WE, THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN SOCIALIST SECULAR DEMOCRATIC REPUBLIC and to secure to all its citizens: JUSTICE, social, economic and political; LIBERTY of thought, expression, belief, faith and worship; EQUALITY of status and of opportunity; and to promote among them all FRATERNITY assuring the dignity of the individual and the unity and integrity of the Nation’.” (भविष्य का भारत, नई दिल्ली - 18 सितम्बर 2018)

“हमारे प्रजातांत्रिक देश ने हमनें एक संविधान को स्वीकार किया है। वह संविधान हमारे लोगों (भारतीय लोगों ने) ने तैयार किया है। हमारा संविधान, हमारे देश की चेतना है। इसलिए उस संविधान के अनुशासन का पालन करना, यह सबका कर्तव्य है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसको पहले से मानता है।” (भविष्य का भारत, नई दिल्ली - 18 सितम्बर 2018)

“संविधान के कारण राजनीतिक तथा आर्थिक समता का पथ प्रशस्त हो गया, परन्तु सामाजिक समता को लाये बिना वास्तविक व टिकाऊ परिवर्तन नही आयेगा ऐसी चेतावनी पूज्य डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी ने हम सबको दी थी।“ (विजयादशमी उत्सव, नागपुर - 5 अक्तूबर 2022)

 “शासन-प्रशासन के किसी निर्णय पर या समाज में घटने वाली अच्छी बुरी घटनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया देते समय अथवा अपना विरोध जताते समय, हम लोगों की कृति, राष्ट्रीय एकात्मता का ध्यान व सम्मान रखकर, समाज में विद्यमान सभी पंथ, प्रांत, जाति, भाषा आदि विविधताओं का सम्मान रखते हुए व संविधान कानून की मर्यादा के अंदर ही अभिव्यक्त हो यह आवश्यक है। दुर्भाग्य से अपने देश में इन बातों पर प्रामाणिक निष्ठा न रखने वाले अथवा इन मूल्यों का विरोध करने वाले लोग भी, अपने आप को प्रजातंत्र, संविधान, कानून, पंथनिरपेक्षता आदि मूल्यों के सबसे बड़े रखवाले बताकर, समाज को भ्रमित करने का कार्य करते चले आ रहे हैं। 25 नवम्बर, 1949 के संविधान सभा में दिये अपने भाषण में श्रद्धेय डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने उनके ऐसे तरीकों को "अराजकता का व्याकरण"(Grammer of Anarchy) कहा था। ऐसे छद्मवेषी उपद्रव करने वालों को पहचानना व उनके षड्यंत्रों को नाकाम करना तथा भ्रमवश उनका साथ देने से बचना समाज को सीखना पड़ेगा।“ (विजयादशमी उत्सव, नागपुर - 25 अक्तूबर 2020)

“भारत के बच्चों को जब वे जीवन के प्रारंभिक चरण (formative stage) में होते हैं तब उनको संविधान की प्रस्तावना, संविधान में नागरिक कर्तव्य, संविधान में नागरिक अधिकार और अपने संविधान के मार्गदर्शक अर्थात नीति निर्देशक तत्व, ये सब ठीक से पढ़ाने चाहिए। क्योंकि यही धर्म है।”  (हिन्दी मासिक पत्रिका - विवेक के साथ साक्षात्कार – 9 अक्टूबर 2020)