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राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास को दी गई जल समाधि, अयोध्या में शोक की लहर

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अयोध्या। 

- दोपहर 12 बजे जब पार्थिव शरीर को रथ पर रखा गया, तो अंतिम यात्रा बैंड-बाजे के साथ निकली

- पहले पार्थिव शरीर को सरयू में स्नान कराया गया, फिर संत तुलसीदास घाट पर जल समाधि दी गई  

राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास को गुरुवार को श्रद्धा और सम्मान के साथ जल समाधि दी गई। हजारों श्रद्धालुओं और संतों की उपस्थिति में उनकी अंतिम यात्रा निकाली गई, लेकिन भारी भीड़ के कारण यह राम मंदिर के सामने से नहीं गुजरी।  

पालकी से सरयू घाट तक अंतिम यात्रा- 

आचार्य सत्येंद्र दास का पार्थिव शरीर पालकी में रखा गया और लता मंगेशकर चौक होते हुए सरयू घाट तक लाया गया। उनके शिष्य प्रदीप और विजय अंतिम क्षणों तक साथ रहे। पहले पार्थिव शरीर को सरयू में स्नान कराया गया, फिर संत तुलसीदास घाट पर जल समाधि दी गई।  

शहरभर से उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब-  

दोपहर 12 बजे जब पार्थिव शरीर को रथ पर रखा गया, तो अंतिम यात्रा बैंड-बाजे के साथ निकली। श्रद्धालुओं ने फूल बरसाकर उन्हें विदाई दी। सरयू घाट पर हजारों लोग घंटों तक अंतिम दर्शन के लिए खड़े रहे। केंद्रीय मंत्री सतीश शर्मा और अयोध्या सांसद अवधेश प्रसाद समेत कई गणमान्य लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।  

राम मंदिर के लिए समर्पित जीवन-  

आचार्य सत्येंद्र दास ने वर्ष 1992 से रामलला मंदिर के मुख्य पुजारी के रूप में सेवा दी। जब श्रीराम अस्थायी टेंट में विराजमान थे, तब भी वे उनकी सेवा में तत्पर रहे। वे प्रभु श्रीराम की सेवा बालक की तरह करते थे और अपना संपूर्ण जीवन उन्हीं को समर्पित कर दिया।  

ब्रेन हेमरेज के बाद हुआ निधन-  

आचार्य सत्येंद्र दास का बुधवार सुबह 7 बजे लखनऊ के पीजीआई में 80 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। 3 फरवरी को ब्रेन हेमरेज के बाद उन्हें अयोध्या से लखनऊ रेफर किया गया था, लेकिन इलाज के दौरान उनका देहांत हो गया।  

अयोध्या में शोक की लहर-  

आचार्य सत्येंद्र दास के निधन के बाद रामनगरी में शोक की लहर छा गई। उनकी अंतिम यात्रा में जगतगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य, निर्वाणी अनी अखाड़ा के पूर्व श्री महंत धर्मदास, विधायक वेद गुप्ता, महापौर गिरीश पति त्रिपाठी और वशिष्ठ भवन के महंत राघवेश दास समेत कई संत शामिल हुए।  

अयोध्या के श्रद्धालुओं और संत समाज के लिए यह अपूरणीय क्षति है। उनके निधन से राम मंदिर की परंपरा का एक महत्वपूर्ण अध्याय समाप्त हो गया, लेकिन उनकी भक्ति और सेवा की प्रेरणा हमेशा  बनी रहेगी।