• अनुवाद करें: |
मुख्य समाचार

भारत की मत पंथ परंपरा का मूल सनातन है – निम्बाराम जी

  • Share:

  • facebook
  • twitter
  • whatsapp

उदयपुर । 
- भारत ने कभी विश्व पर अपना ज्ञान नहीं थोपा और ना ही आक्रमण किया। लेकिन आज विश्व पटल पर सनातन की व्यापक चर्चा है

- संस्कृति बनी रहती है। बुधवार को संपर्क विभाग द्वारा प्रबुद्ध नागरिक गोष्ठी “सनातन के समक्ष चुनौतियां एवं हमारी भूमिका” का आयोजन प्रताप गौरव केंद्र के सभागार में किया गया

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राजस्थान क्षेत्र प्रचारक निम्बाराम जी ने प्रबुद्ध नागरिक गोष्ठी में कहा कि जब विश्व में असभ्यता थी, तब भी भारत में ज्ञान था। भारत ने कभी विश्व पर अपना ज्ञान नहीं थोपा और ना ही आक्रमण किया। लेकिन आज विश्व पटल पर सनातन की व्यापक चर्चा है। संस्कृति बनी रहती है। बुधवार को संपर्क विभाग द्वारा प्रबुद्ध नागरिक गोष्ठी “सनातन के समक्ष चुनौतियां एवं हमारी भूमिका” का आयोजन प्रताप गौरव केंद्र के सभागार में किया गया।

मुख्य वक्ता निम्बाराम जी ने कहा कि आध्यात्मिक महापुरूषों के ज्ञान का विश्व ने अभिनन्दन किया है। भारत की मत-पंथ परंपरा का मूल सनातन है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा है कि हिन्दू एक जीवन पद्धति है। आज हिन्दू शब्द अधिक मान्य है। कभी आर्य के रूप में पहचान थी। वर्तमान में कनीक व विज्ञान का समय है, नई पीढी के समक्ष इस स्वरूप में शोधपरक विचार रखना चाहिए।

उन्होंने कहा कि संस्कृति व जीवन मूल्य एक हैं, पंथ – परंपराएं अलग हो सकती हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारे डीएनए में है। भारत के संविधान में पंथनिरपेक्ष, हम भारत के लोग, अधिकार व कर्तव्य, चित्र, सनातन का प्रतिबिंब हैं। हूण, कुषाण, शक बाहरी समूह शासन के उद्देश्य से आए, परंतु भारतीय समाज ने उन्हें आत्मसात कर लिया। इस्लाम का उद्देश्य मजहब का विस्तार था, इसके चलते जजिया कर लगाया गया। महिला दुष्कर्म, आस्था व सांस्कृतिक केन्द्रों को ध्वस्त किया गया। इस कालखंड में भारतीय समाज में रूढियां भी स्थापित हुई।

उन्होंने कहा कि इवेंजिकल फोर्सेज जब भारत आईं तो भारत के एकत्व को देखकर अचंभित थे। उन्होंने भारतीय समाज का व्यापक अध्ययन कर अलग-अलग पहचान स्थापित कर समाज को बांटा। मैकाले की शिक्षा पद्धति ने हमारे पूर्वजों को कमतर बताया और अंग्रेजों का विचार प्रचारित किया। इस विचार ने भारतीय पीढ़ी की मन:स्थिति को बदलना प्रारंभ किया।

उन्होंने कहा कि स्व की त्रयी – स्वदेशी, स्वधर्म व स्वराज को लेकर 1857 का स्वतंत्रता संग्राम हुआ था। सन् 1920 में नागपुर में कांग्रेस अधिवेशन में संघ संस्थापक डॉ. केशव राव हेडगेवार ने समस्त व्यवस्थाएं संभाली। गांधी जी की अध्यक्षता में हो रहे अधिवेशन में डॉ. हेडगेवार ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव रखने का आग्रह किया, लेकिन उसे स्वीकार नहीं किया गया। बाद में लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पारित हुआ तो संघ ने भी अपनी सभी शाखाओं में 26 जनवरी, 1930 को स्वतंत्रता दिवस मनाया और आभार प्रस्ताव पारित किया।

उन्होंने कहा कि परिवर्तन समाज के बल पर आता है। भक्ति आंदोलन के बल पर समाज परिवर्तन हुआ था। राजस्थान के लोकदेवताओं का समय एक स्वर्णिम पृष्ठ है।

पराधीनता का प्रतीक अब तक क्यों? इन्हें बदलना आवश्यक है चाहे प्रतीक हों या नाम। अब राजपथ कर्तव्य पथ है। ऐसे कई उदाहरण हैं, इसमें समाज को भी जुड़ना चाहिए। हम तभी भावी पीढ़ी को गर्व महसूस करवा पाएंगे। जी 20 के मंच पर वैश्विक नेताओं के समक्ष भारत ने नालंदा विश्वविद्यालय के चित्र को प्रदर्शित किया एवं गौरवशाली इतिहास सबके सामने रखा।

डीप स्टेट, परदे के पीछे से तंत्र को अस्थिर करने का प्रयास वैश्विक विस्तारवादी शक्तियां कर रही हैं, हमारे समक्ष भी यह बड़ी चुनौती है। युवाओं को स्वतंत्रता के नाम पर बरगलाना, स्वच्छंदता के नाम पर भटकाया जा रहा है। सांस्कृतिक प्रतीकों को हटाने को लेकर आंदोलन करवाए जा रहे हैं। ऐसे में भारतीय अवधारणा को युगानूकूल व्याख्या के साथ नई पीढ़ी में ले जाना चाहिए।

गोष्ठी के दौरान भारत के संविधान में अंकित 22 चित्रों की व्याख्या सहित प्रदर्शनी लगाई गई, लोकमाता अहिल्यादेवी के जीवन पर आधारित प्रदर्शनी भी लगाई गई थी।