बुरांश बना उत्तराखंड की नई पहचान, गांवों में खिली आत्मनिर्भरता की लालिमा
पौड़ी, उत्तराखंड : जहां बर्फ की चादर उतरते ही खिलती है लालिमा... वहीं खिलता है आत्मनिर्भरता का नव स्वप्न। उत्तराखंड के जंगलों में प्रति वर्ष फरवरी से मई तक खिलने वाला 'बुरांश'-अब मात्र सुंदरता का प्रतीक नहीं, अपितु ग्रामीणों की आर्थिकी का मजबूत स्तंभ बन रहा है। पूर्व में जहां ग्रामीण महिलाएं बुरांश के फूल मात्र घर के लिए तोड़ती थीं, आज वही महिलाएं इन फूलों से आजीविका कमा रही हैं। ‘
बनजोश’- एक ऐसी इकाई है जो बुरांश से बना जूस देश-विदेश तक पहुंचा रही है। यहां 35 रुपये प्रति किलो की दर से फूल खरीदे जा रहे हैं और अब तैयार हो रहा है शुगर फ्री जूस भी। पौड़ी जिले के आठ ब्लॉकों में फैले स्वयं सहायता समूहों और आठ स्वयंसेवी संस्थाओं ने मिलकर इस बार दो टन बुरांश इकठ्ठा किया। यही है ‘आत्मनिर्भर भारत’ का असली रंग—जहां संसाधन भी अपने, समाधान भी अपने।
यह सिर्फ जूस नहीं, आत्मनिर्भरता की एक नई धारा है, जो बह रही है बुरांश की लालिमा के साथ। बुरांश अब सिर्फ फूल नहीं रहा... ये बना है उत्तराखंड की आर्थिकी का नव फूल