भारत के सबसे विशाल, समाजसेवी व राष्ट्रभक्त संगठन, “राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ” के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म युगाब्द 4991 की चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नागपुर के एक गरीब वेदपाठी परिवार में हुआ था। डॉ. हेडगेवार जी के पिता का नाम श्री बलिराम पंत व माता का नाम रेवतीबाई था। हेडगेवार जी का बचपन बहुत ही गरीबी में बीता किन्तु गरीबी के उस वातावरण में भी व्यायाम, कुश्ती, लाठी चलाना आदि में उनकी रूचि रही। बचपन में विभिन्न भवनों पर फहराते हुए यूनियन जैक को देखकर वे सोचते थे कि हमारे भारत वर्ष का हिन्दुओं का झंडा तो भगवा ही है क्योंकि भगवान राम और कृष्ण, शिवाजी, महाराणा प्रताप सभी की जीवन लीलाएं इसी झंडे की छत्रछाया में संपन्न हुई हैं और यहीं से उनके ह्रदय में यूनियन जैक को उतार फेंकने की योजना तैयार होने लगी।
केशव की प्रारम्भिक शिक्षा अंग्रेजी विद्यालय नीलसिटी में हुई जहां उन्होंने महारानी विक्टोरिया के 60वें जन्म दिन पर बांटी गयी मिठाई को कूड़ेदान में फेंक दिया था। सन 1901 में इंग्लैंड के राजा एडवर्ड सप्तम के राज्यारोहण के समय लोगों द्वारा खुशी मनाये जाने पर बहुत दुःखी हुए।
1902 में प्लेग की महामारी के कारण उनके माता- पिता का देहावसान हो गया।हेडगेवार जी के बड़े भाई क्रोधी स्वभाव के थे जिसके कारण उन्होंने घर छोड़ दिया और अपने मित्रों के साथ रहने लगे। उन्होंने लोकमान्य तिलक के पत्र के लिए धन एकत्र करने का काम प्रारंभ किया और स्वदेशी वस्तुओं की दुकान खोलने में भी सहायता की।19 सितम्बर 1905 को अंग्रेज सरकार ने बंगाल को विभाजित कर दिया जिसका पूरे देश में व्यापक विरोध हुआ। पूरा भारत वंदेमातरम के नारे से गूंज उठा था। केशव ने नागपुर के किले से अंग्रेजों के झंडे उतारकर भगवा झंडा लगाने का प्रयास किया। विद्यालय में निरीक्षक के आने पर छात्रों ने वंदेमातरम के नारे लगाये। कुछ ही दिनों में केशव नागपुर में तिलक के नाम से प्रसिद्ध हो गये।केशव ने 1906 में दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। वह अपनी पढ़ाई के लिए टयूशन और एक विद्यालय में नौकरी करने लगे । सन 1908 में अंग्रेज सरकार ने केशव के पीछे गुप्तचर लगा दिये।
बड़े क्रांतिकरियो के साथ सम्पर्क में आने के लिए वह 1910 में कलकत्ता आ गये।विद्यालय के पश्चात वह अन्य विद्यार्थियों से सम्पर्क करते थे।सन 1910 मे कलकत्ता में हुए दंगे के दौरान उन्होंने एक सुश्रूवा दल बनाया था। यहां अनुशीलन समिति व प्रमुख क्रांतिकारियों से केशव का सम्पर्क हुआ।जहां केशव रहते थे वहीं एक गुप्तचर उनके पीछे लग गया। शंका होने पर उसकी तलाशी ली गयी और कई प्रमाण मिले जिसके बाद उन्होंने अपनी वेशभूषा बदल दी।1913 में उन्होंने दामोदर नदी की बाढ़ में लोगों की खूब सेवा की। 2 सितम्बर को एल एल एंड संस की पदवी प्राप्त की और डाक्टर की उपाधि लेकर वापस नागपुर लौटे। 1915 से 1920 तक डॉक्टर बन चुके केशव राष्ट्रीय आंदोलनों में अत्यंत सक्रिय रहे। प्रवास, सभा, बैठक आदि में सदा सक्रिय रहते थे।तरूणों में पूर्ण स्वतंत्रता की आकांक्षा को धधकाने में वे सदा तत्पर रहते थे।
नागपुर में दोबारा प्लेग फैलने के बाद उनके भाई का निधन हो गया और फिर उन्होंने जीवन भर अविवाहित रहकर राष्ट्र कार्य करने का निश्चय किया। डॉ केशव गणोशोत्सव में उत्साह से भाग लेते थे और उत्साह भरने वाले भाषण देते थे।उन्होंने होमरूल आंदोलन में भी भाग लिया।क्रांति के लिए व्यक्ति, धन तथा शस्त्रास्त्र की व्यवस्था करते थे। डॉ केशव ने राष्ट्रीय उत्सव मंडल की स्थापना की और उनके घर पर शरद पूर्णिमा मनायी गयी।सन 1919 में उन्होंने लाहौर कांग्रेस में भाग लिया, 31 जुलाई को असहयोग आंदोलन आरम्भ हो गया। डॉ केशव योगीराज अरविंद से मिलने पांडिचेरी गये।1920 में नागपुर के कांग्रेस अधिवेशन में वह सेवा दल के प्रमुख बने।
डॉ केशव जी ने खिलाफत आंदोलन का विरोध किया और कहा कि यह देश के लिए घातक सिद्ध होगा। सरकार ने एक माह के लिए उनके भाषणों पर प्रतिबंध लगा दिया और फिर उन्हें एक वर्ष कारावास की सजा हुई।एक वर्ष बाद जब वे कारागार से छूटे तब स्थान- स्थान पर जनता ने उनका भारी स्वागत किया।
इस बीच हुए मोपला कांड में डेढ़ हजार हिंदू मारे गये और बीस हजार हिंदू मुसलमान बनाये गये। तीन करोड़ की सम्पत्ति नष्ट हुई। 1923 में गणपति के जुलूस को तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने मस्जिद के सामने से निकलने पर रोक लगा दी थी और मुसलमानों ने दिण्डी निकलने का विरोध किया तब डॉक्टर साहब ने हिंदू समाज में जागृति उत्पन्न कर राजे लक्ष्मणराव भौसले के सहयोग से दिण्डी सत्याग्रह का अयोजन करवाया। वह सत्याग्रह बहुत सफल हुआ। सन 1922 से 1925 तक केशव ने हिंदू महासभा के कार्यों में जुटे रहे। यह काल उनके जीवन में गहन विचार मंथन का काल कहा जा सकता है।
इसी बीच वीर सावरकर ने 1922 में ही जेल से हिन्दुत्व नामक खोजपूर्ण पुस्तक लिखकर जेल से बाहर भेजी।1924 में एकता परिषदें बनीं और कई नेताओं ने अपने विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर क्रांतिकारी लाला हरदयाल ने कहा कि हिंदू राष्ट्र के उज्वल भविष्य के लिए शुद्धि संगठन और अफगानिस्तान का भारत में विलीनीकरण आवश्यक है।
उस समय सार्वजनिक कार्य करने के जो तरीके प्रचलित थे उनसे अलग हटकर डॉ केशव ने अपनी प्रतिभा से ”शाखा“ की एक नयी पद्धति खोज निकाली। इस अनुशासित पद्धति में स्थायी संस्कार देने की अद्भुत क्षमता थी। 1925 की विजयदशमी के दिन डाक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार ने संघ की स्थापना की घोषणा की और बाद में 17 अप्रैल 1926 को एक बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम तय हुआ। संघ के नामकरण की बैठक में उन्होंने समझाया कि हिंदुस्थान में हिदुओं का संगठन राष्ट्रीय ही कहलायेगा।उसे साम्प्रदायिक नहीं कहा जा सकता।हिंदुओं का कोई भी कार्य राष्ट्रीय ही माना जाना चाहिए।
संघ की स्थापना के बाद डॉक्टर साहब ने भगवाध्वज को ही गुरु रूप में रखा। प्रतिवर्ष गुरूपूर्णिमा के दिन इसका पूजन कर दक्षिणा समर्पण करना चाहिए। हेडगेवार जी ने स्वयंसेवकों से कहा कि वह संघ का गणवेश धारण करें। संघ की कार्य पद्धति का धीरे धीरे विकास हुआ और उसमें समय- समय पर अनेक बातें जुड़ती चली गयीं।विजयादशमी, मकर सक्रांति, वर्ष प्रतिपदा, गुरूपूर्णिमा व रक्षाबंधन के परम्परागत उत्सव संघ शाखाओं द्वारा मनाये जाने हेतु चुने गये।इन पांच परम्परागत उत्सवों के साथ डॉक्टर साहब ने हिंदू साम्राज्य दिवस का छठा उत्सव भी प्रचलित कर स्वयंसेवकों व समाज के समक्ष यह बात रखी कि संघ क्या करना चाहता है।
सन 1936 में नासिक के शंकराचार्य ने केशव को राष्ट्र सेनापति की पदवी से विभूषित किया। डॉक्टर केशव ने संघ के विकास व विस्तार के लिए भारत के विभिन्न क्षेत्रों व राज्यों का भ्रमण किया। अनेक बैठकें व कार्यक्रम आयोजित किए।1935 और 1936 में उन्होंने अथक श्रम किया। कुछ दिनों बाद वे नासिक आ गये जहां उन्हें डबल न्यूमोनिया हो गया । 6 फरवरी 1940 को उन्हें राजगिरि ले जाया गया। वह कुछ समय बाद पूना और फिर नागपुर आये जहां पर उनका स्वास्थ्य फिर खराब हो गया। अस्वस्थता बढ़ती गयी और 21 जून 1940 को उनका निधन हो गया।
डॉक्टर जी सदा दलगत राजनीति से दूर रहे। उनका स्पष्ट विचार था कि परतंत्र राष्ट्र के लिए स्वतंत्रता प्राप्ति के अतिरिक्त और कोई राजनीति नहीं हो सकती। जिस महापुरूष ने अपने कतृत्व के बल पर संघ कार्य को सफल कर दिखाया उसके प्रति कृतज्ञता का भाव मन में धारण कर उसके कार्य को आगे बढ़ाना प्रत्येक हिंदू का स्वाभाविक कर्तव्य है।संघ ने भारत को परम वैभवशाली बनाने का लक्ष्य अपनी आंखों के सामने रखा है।उसे साकार करने में सहयोग देना हिंदू और राष्ट्र के लिए परम कल्याणकारी होगा।डॉक्टर जी ने दैनिक जीवन में समाजरूपी देवता की उपासना का मार्ग दिखाया है।
डॉक्टर साहब का जीवन अत्यंत उद्यमशील, कर्तृत्वशील और राष्ट्र को समर्पित था। उन्होंने संघ कार्य में तत्व निष्ठा को महत्व दिया।डॉक्टर हेडगेवार जी एक ऐसा महान व्यक्तित्व थे जिनके स्मृति मंदिर में भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और ए. पी. जे. अब्दुल कलाम अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर चुके हैं। उन्होंने सभही समकालीन विचारधाराओं का मंथन करने के उपरांत ही हिंदू राष्ट्र की स्थापना के लिए संघ की स्थापना की थी। डॉक्टर जी के विचार आज भी प्रासंगिक हैं।डॉक्टर साहब की 1928 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस से भेंट हुंई थी और उस समय नेताजी को डाक्टर साहब की हिदू संगठन की कल्पना पसंद आई थी।डॉक्टर साहब का मत था कि हिंदुओं के श्रेष्ठ तत्वज्ञान और जीवन दर्शन के आधार पर ही विश्व की सभी समस्याओं का समाधान निकल सकता है।
आज की कांग्रेस पार्टी व उसका नेतृत्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर जो आरोप लगा रहा है उन्हें डाक्टर साहब की जीवनी और उनके विचार अवश्य पढ़ने चाहिए। विगत दिनों कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने लंदन में संघ को मुस्लिम ब्रदरहुड कहकर संबोधित किया है इससे उनकी अज्ञानता और संघ के प्रति ईर्ष्या व नफरत स्पष्ट परिलक्षित होती है । कांग्रेस को संभवतः यह नहीं पता कि अगर आज भारत स्वतंत्र है तो उसके पीछे डॉक्टर हेडगेवार जैसे कुशल संगठनकर्ता की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ डॉक्टर हेडगेवार के जी के विचारों के अनुरूप ही लगातार आगे बढ़ रहा है और समाज की सेवा कर रहा है।आज संघ के जो भी सेवाकार्य चल रहे हैं उनके पीछे डॉक्टर हेडगेवार जी के ही प्रेरक विचार, कार्य व प्रसंग हैं। संघ के सेवा कार्यों से ही समाज में बड़ा बदलाव भी दिख रहा है।