विकसित भारत 2047: हरित ऊर्जा के माध्यम से प्रगति का पथ
भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने का जो स्वपन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2024 को लाल किले की प्राचीर से प्रस्तुत किया, वह महज एक लक्ष्य नहीं, बल्कि एक व्यवस्थित और समग्र दृष्टिकोण है। यह लक्ष्य भारत को न केवल आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से सशक्त बनाने का प्रयास है, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन और ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में भी एक क्रांतिकारी कदम है। हरित ऊर्जा इस दृष्टि का मूल आधार है, जो आर्थिक विकास और पर्यावरणीय संरक्षण के बीच सामंजस्य स्थापित करती है। भारत दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और इसकी ऊर्जा मांग लगातार बढ़ रही है। यह मांग 2023 तक भारत को विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता बना चुकी है। बावजूद इसके, ऊर्जा की बड़ी मात्रा आज भी जीवाश्म ईंधनों से प्राप्त की जाती है। 2023 तक भारत अपनी 60 प्रतिशत ऊर्जा मांग कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों से पूरी कर रहा था। कोयला और पेट्रोलियम आधारित ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता न केवल आयात पर भार डालती है, बल्कि इससे पर्यावरण प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन की समस्याएं भी गंभीर होती जा रही हैं। इन चुनौतियों का समाधान हरित ऊर्जा के जरिए ही संभव है।
भारत ने हरित ऊर्जा के क्षेत्र में पिछले एक दशक में अभूतपूर्व प्रगति की है। 2023 तक भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 200 गीगावाट के पार पहुंच गई, जिसमें सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जलविद्युत और परमाणु ऊर्जा का समावेश है। इनमें से सौर ऊर्जा में भारत ने वैश्विक स्तर पर चौथा स्थान हासिल किया है। पवन ऊर्जा के क्षेत्र में भी भारत का प्रदर्शन शानदार रहा है और यह पांचवें स्थान पर है। भारत ने 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा है, जो इसके कुल ऊर्जा मिश्रण का 50 प्रतिशत होगी। यह लक्ष्य न केवल घरेलू ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करेगा, बल्कि भारत को वैश्विक जलवायु नेतृत्व की भूमिका में स्थापित करेगा। भारत के ‘राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन’ को भी एक मील का पत्थर माना जा सकता है। 2023 में शुरू हुए इस मिशन के तहत 2030 तक 5 मिलियन टन हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करने का लक्ष्य रखा गया है। यह हाइड्रोजन उद्योग, परिवहन और ऊर्जा क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने में सहायक होगा। इसके साथ ही, यह मिशन 125 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता विकसित करने में भी योगदान देगा। यह पहल न केवल भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाएगी, बल्कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन प्रयासों में एक मजबूत योगदान देगी।
हरित ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की प्रगति को वैश्विक सहयोग और प्रतिबद्धताओं से भी बल मिला है। 2015 में भारत द्वारा शुरू किया गया अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (प्ै।) इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। प्ै। के तहत, ‘वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड’ परियोजना का लक्ष्य वैश्विक स्तर पर सौर ऊर्जा का नेटवर्क बनाना है। इस गठबंधन में 110 से अधिक देश शामिल हैं, जो सौर ऊर्जा के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी, वित्त और शोध को साझा करने के लिए एक मंच प्रदान करते हैं। 2021 के ब्व्च्26 सम्मेलन में भारत ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अपनी प्रतिबद्धताओं को और सुदृढ़ किया। प्रधानमंत्री मोदी ने पंचामृत नामक योजना प्रस्तुत की, जिसके तहत भारत ने 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने और 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है। इसके अतिरिक्त, भारत ने हरित ऊर्जा परियोजनाओं में विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए $100 बिलियन का लक्ष्य निर्धारित किया है।
हरित ऊर्जा का प्रसार केवल पर्यावरणीय फायदे तक सीमित नहीं है। यह भारत की आर्थिक स्थिति को भी सुदृढ़ करता है। नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं से देश में लाखों नए रोजगार उत्पन्न हो रहे हैं। सौर और पवन ऊर्जा संयंत्रों ने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाए हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में बैटरी निर्माण और इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग ने तकनीकी और उच्च-कुशल नौकरियों का सृजन किया है। इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन के अनुसार, 2030 तक हरित ऊर्जा क्षेत्र में 10 लाख नए रोजगार उत्पन्न होने की संभावना है। इसके अतिरिक्त, हरित ऊर्जा परियोजनाओं से ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को भी बढ़ावा मिला है। उदाहरण के लिए, प्रधानमंत्री-कुसुम योजना के तहत किसानों को सौर ऊर्जा संचालित सिंचाई पंप प्रदान किए जा रहे हैं। इससे न केवल कृषि उत्पादन लागत में कमी आ रही है, बल्कि किसानों की आय भी बढ़ रही है। हरित ऊर्जा के उपयोग से न केवल ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित होती है, बल्कि यह पर्यावरणीय प्रदूषण को भी कम करता है। जीवाश्म ईंधनों के स्थान पर सौर और पवन ऊर्जा जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का उपयोग वायु गुणवत्ता में सुधार करता है। इससे स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च कम होता है और जनता का जीवन स्तर बेहतर होता है। इसके अलावा, हरित ऊर्जा का उपयोग जल संसाधनों को संरक्षित करने में भी सहायक है। पारंपरिक ऊर्जा उत्पादन प्रक्रियाओं के विपरीत, सौर और पवन ऊर्जा उत्पादन में जल की खपत नगण्य होती है। यह पहल भारत के जल संकट को हल करने में भी उपयोगी है।
हरित ऊर्जा क्षेत्र में भारत की प्रगति के बावजूद, चुनौतियां भी कम नहीं हैं। नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए प्रारंभिक निवेश की आवश्यकता बड़ी चुनौती है। भारत ने विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए व्यापक नीतियां लागू की हैं, लेकिन इसे सफलतापूर्वक कार्यान्वित करने के लिए और प्रयासों की जरूरत है। बिजली ग्रिड का आधुनिकीकरण एक अन्य चुनौती है। नवीकरणीय ऊर्जा को मुख्य ग्रिड में शामिल करने के लिए तकनीकी और संरचनात्मक सुधार आवश्यक हैं। भूमि अधिग्रहण, जो सौर और पवन ऊर्जा संयंत्रों के लिए आवश्यक है, कभी-कभी सामाजिक असंतोष का कारण बनता है। सरकार ने इस समस्या को हल करने के लिए स्थानीय समुदायों को शामिल करने और उचित मुआवजा देने की नीतियां अपनाई हैं। जनसामान्य को हरित ऊर्जा के लाभों के बारे में जागरूक करना भी एक महत्वपूर्ण पहलू है। हरित ऊर्जा को अपनाने में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करना सरकार और उद्योग दोनों की जिम्मेदारी है।
विकसित भारत 2047 के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हरित ऊर्जा का प्रसार एक अनिवार्य शर्त है। भारत ने 2030 तक दुनिया का सबसे बड़ा इलेक्ट्रिक वाहन नेटवर्क स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन के तहत 2030 तक 80 प्रतिशत तिपहिया और दोपहिया वाहनों को इलेक्ट्रिक बनाया जाएगा। साथ ही, हरित ऊर्जा गलियारों (ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर्स) का विकास नवीकरणीय ऊर्जा को मुख्य ग्रिड में एकीकृत करने में मदद करेगा। ये गलियारे ऊर्जा उत्पादन और वितरण के बीच सामंजस्य स्थापित करेंगे। हरित ऊर्जा के क्षेत्र में भारत का नेतृत्व वैश्विक जलवायु परिवर्तन प्रयासों को दिशा देगा। यह दृष्टिकोण न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा बनेगा। भारत का यह प्रयास केवल घरेलू ऊर्जा संकट का समाधान नहीं है, बल्कि यह वैश्विक पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान भी प्रस्तुत करता है।
हरित ऊर्जा के क्षेत्र में किए गए प्रयास ‘विकसित भारत 2047’ के लक्ष्य को साकार करने के लिए निर्णायक साबित होंगे। यह केवल ऊर्जा आत्मनिर्भरता का मार्ग नहीं है, बल्कि यह पर्यावरणीय स्थिरता, सामाजिक समावेशन और आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में भी एक बड़ी छलांग है। हरित ऊर्जा न केवल भारत को पर्यावरणीय चुनौतियों से लड़ने में सक्षम बनाएगी, बल्कि इसे एक सशक्त, आत्मनिर्भर और समृद्ध राष्ट्र के रूप में विश्व मंच पर स्थापित करेगी। प्रधानमंत्री द्वारा प्रस्तावित यह दृष्टि हर भारतीय का सपना है और इसे साकार करने के लिए हर नागरिक का योगदान आवश्यक है। 2047 में जब भारत अपनी स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे करेगा, तब यह हरित ऊर्जा आधारित विकास यात्रा एक नए युग की शुरुआत करेगी, जो भारत को न केवल विकसित राष्ट्र बल्कि विश्वगुरु के रूप में स्थापित करेगी।
लेखक - यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मास कम्युनिकेशन गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, दिल्ली में शोध छात्र हैं।




