उदयपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह अरुण कुमार ने कहा कि दिवेर विजय सिर्फ मेवाड़ के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं थी, बल्कि यह भारत की विजय का शुभारंभ था. इस विजय ने भारतवर्ष में उन सभी नायकों में प्रेरणा का संचार किया, जो मुगल आक्रांताओं के विरुद्ध झंडा थामे हुए थे. यही वह समय था, जब भारत ने अपना शौर्यपूर्ण स्वाभिमान पुनः स्थापित करने की शुरुआत की. सह सरकार्यवाह सोमवार सायं प्रताप गौरव केन्द्र ‘राष्ट्रीय तीर्थ’ में एक माह से चल रहे दिवेर विजय महोत्सव के समापन समारोह में संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप केवल मेवाड़ के ही नायक नहीं थे, बल्कि वे भारत के इतिहास के परिवर्तन के नायक थे. महाराणा प्रताप ने संकट के समय भी अपना चरित्र नहीं बदला. महाराणा प्रताप का प्रत्येक क्षेत्र में नेतृत्व अतुलनीय था. प्रबन्धन में महारत थी. वे बचपन से अहंकार रहित और सर्वप्रिय थे. उनमें कुशल नेतृत्व क्षमता थी. उन्होंने तत्कालीन परिस्थितियों में आमजन में उत्साह और आत्मविश्वास का संचार किया. मेवाड़ को स्वतंत्र करवाने के संकल्प पर आजीवन अडिग रहे. दिवेर विजय ने मेवाड़ में लगभग दो दशक तक लंबी शांति स्थापित करने का कार्य किया. उस दौरान महाराणा प्रताप एक कुशल प्रशासक और कला प्रेमी के रूप में उभर कर आए।
सह सरकार्यवाह ने कहा कि भारत पर विदेशियों के आक्रमण का सदियों लंबा इतिहास है. यूनानी, हूण, कुषाण आदि आक्रांताओं को हमने पराजित कर अपने अंदर समाहित कर लिया. उसके बाद लगभग एक हजार वर्ष का इतिहास ऐसे संघर्ष का रहा, जिसके दौरान हम परतंत्रता के चिन्ह मिटा नहीं पाए. दूसरों की लिखी कहानी पढ़कर हम अपने स्वाभिमान को भुला बैठे हैं. उसे अपने दृष्टिकोण से पुनः लिखते हुए परतंत्रता के चिन्ह मिटाने होंगे. इसके लिए दिवेर विजय दिवस पर उस युग परिवर्तनकारी विजय का स्मरण करते हुए हमें संकल्पित होना होगा.
वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति के अध्यक्ष प्रो. बीपी शर्मा ने कहा कि विक्रम संवत 1640 को विजयादशमी के दिन लड़ा गया दिवेर का युद्ध भारतीय इतिहास में युगान्तकारी परिवर्तन लाने वाला युद्ध है. महाराणा प्रताप के नेतृत्व में मेवाड़ सेना ने युद्ध में प्रथम बार अपनी रक्षात्मक युद्ध नीति में परिवर्तन कर आक्रामक नीति को अपनाया तथा ऐसा तांडव रचा कि 36 हजार बर्बर मुगल सैनिकों को बुरी तरह पराजित कर दिया. दिवेर विजय के उपरांत अगले चार-पांच दिन में ही मुगलों द्वारा स्थापित 36 महत्वपूर्ण थाने समाप्त हो गए. इसके बाद शनै-शनै दो-तीन वर्षों में मुगलों द्वारा स्थापित समस्त थाने समाप्त हो गए. लगभग समस्त मेवाड़, वागड़, गोड़वाड़, मेरवाड़ा से लेकर मालवा तथा गुजरात तक के कुछ हिस्सों पर महाराणा प्रताप का शासन स्थापित हुआ. अगले 20-22 वर्षों तक मेवाड़ में शांति बनी रही तथा मुगलों ने इस ओर आंख उठाने का साहस नहीं किया।
समारोह में मेवाड़ पीठाधीश्वर स्वामी सुदर्शनाचार्य महाराज (गोपाल आश्रम, बड़ी सादड़ी) ने कहा कि राष्ट्रधर्म सर्वोपरि होता है. अगर हम सनातन की रक्षा नहीं कर पाएंगे तो हमारा धर्म मुश्किल में पड़ जाएगा. मध्यकाल में सिर्फ दया-धर्म का ही पाठ पढ़ाया गया. केवल दया-धर्म से राष्ट्र की रक्षा नहीं होती, समय-समय पर शास्त्र के साथ शस्त्र का भी महत्व होता है. संघ परिवार के कारण राष्ट्र सुरक्षित है. उन्होंने तीर्थराज चित्तौड़ पर आधारित कविता सुनाते हुए कहा कि पूरे भारत और विदेशों में कोई भारत को जानता है तो महाराणा प्रताप के कारण जानता है।
प्रताप गौरव केन्द्र के निदेशक अनुराग सक्सेना ने केन्द्र का संक्षिप्त परिचय रखा. दिवेर विजय महोत्सव का प्रतिवेदन महोत्सव के संयोजक डॉ. सुभाष भार्गव ने प्रस्तुत किया. समारोह का संचालन डॉ. सरोज कुमार ने किया. समिति के सचिव पवन शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
दिवेर विजय महोत्सव के अंतर्गत एक माह से चल रही व्याख्यानमाला के क्रम में सोमवार प्रातः उदयपुर की पेसिफिक यूनिवर्सिटी में व्याख्यान हुआ. यहां प्रताप गौरव केंद्र में शोध निदेशक डॉ. विवेक भटनागर ने दिवेर विजय पर प्रकाश डाला।