वाराणसी, उत्तर प्रदेश
गाँव की वही मिट्टी, वही खेत, फर्क केवल इतना कि एक किसान ने दिमाग लगाया और अमरूद को बना दिया लाखों रुपये कमाने का जरिया। वाराणसी के भाव गाँव के एमए पास शैलेंद्र सिंह ने शहर की नौकरी छोड़ खेती चुनी और आज उनकी अमरूद की बगिया हर साल 50–60 लाख रुपये उगल रही है। यह कमाई किसी बड़े बिजनेस से कम नहीं, बल्कि उससे भी आसान और पक्का रास्ता है, जिसे हर आम किसान अपना सकता है। साल 2006 में पढ़ाई खत्म करने के बाद शैलेंद्र ने ठान लिया कि नौकरी नहीं, बल्कि खेती करेंगे। उन्होंने लखनऊ के केंद्रीय बागवानी संस्थान से अमरूद की बेहतरीन किस्मों के पौधे लाए और शुरुआत कर दी। धीरे-धीरे 14 एकड़ में 14 किस्मों के अमरूद लगा दिए। यहाँ तक कि बीच की खाली जमीन में हल्दी, अदरक और सूरन जैसी फसलें भी बोईं ताकि शुरुआती सालों में भी आय बनी रहे। अमरूद साल में तीन बार फल देता है और ज्यादा देखभाल या पानी की जरूरत नहीं होती। यही इसकी सबसे बड़ी खूबी है। एक पेड़ से 40–50 किलो तक फल निकल आता है। शैलेंद्र अमरूद बेचकर ही हर साल करीब 35 लाख रुपये कमा लेते हैं। इसके अलावा उन्होंने पत्तियों को भी बेचना शुरू किया। बेंगलुरु की कंपनियाँ इन्हें 40 रुपये किलो में खरीदती हैं और उनसे हर्बल दवाइयाँ व ब्यूटी प्रोडक्ट बनते हैं। यानी जिस चीज को किसान पहले बेकार मानकर फेंक देते थे, वही अब पैसे बरसा रही है। 2011 में शैलेंद्र ने पॉलीहाउस बनाकर अमरूद की नर्सरी शुरू की। अब देशभर के किसान उनसे पौधे खरीदते हैं। सिर्फ पौधों और पत्तियों से ही 15–20 लाख रुपये सालाना की कमाई हो रही है। इतना ही नहीं, वह महीने में दो बार ट्रेनिंग प्रोग्राम भी कराते हैं, जिसमें किसान आकर सीखते हैं कि खेती को बिजनेस कैसे बनाया जाए। अगर किसी किसान के पास सिर्फ 1 एकड़ जमीन है तो वह उसमें लगभग 700 पौधे लगा सकता है। तीन साल बाद वही खेत सालाना डेढ़ से ढाई लाख रुपये का मुनाफा देगा। और अगर कोई 5 एकड़ लगाए तो समझिए लाखों की गारंटी पक्की। खास बात यह है कि अमरूद की खेती में जोखिम बहुत कम है और मेहनत का सीधा-सीधा फायदा मिलता है। शैलेंद्र की कहानी बताती है कि खेती मजदूरी नहीं अपितु बिजनेस है। गाँव का साधारण किसान भी अगर थोड़ी समझदारी और नई तकनीक अपनाए तो लाखों रुपये सालाना कमा सकता है।