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झोपड़ी से जापान तक : 12वीं की स्टूडेंट पूजा की रोचक कहानी

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 बाराबंकी, उत्तर प्रदेश

गरीबी की झोपड़ी में पली-बढ़ी बाराबंकी की बेटी पूजा पाल आज पूरे देश की पहचान बन चुकी है। खेतों में धूल से जूझती इस मासूम छात्रा ने अपनी मेधा और संकल्प से ऐसा थ्रेशर मॉडल बनाया, जिसने न केवल शिक्षकों और वैज्ञानिकों को चौंकाया अपितु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की डॉक्यूमेंट्री 'कर्मयोग: एक अंतहीन यात्रा' तक जगह बना ली। आज वही पूजा मिशन शक्ति 5.0 की रोल मॉडल है और हजारों बेटियों के लिए जीती-जागती प्रेरणा। पिता राजगीर मजदूर, माँ विद्यालय की रसोइया और घर झोपड़ी का। घर में बिजली तक नहीं थी लेकिन पूजा के सपने जगमगा रहे थे। बैटरी और मोमबत्ती की रोशनी में पढ़ने वाली इस बेटी ने दिखा दिया कि कठिनाइयाँ कभी भी प्रतिभा की उड़ान को रोक नहीं सकतीं। साल 2020 में गेहूं की कटाई के दौरान थ्रेशर से उड़ती धूल ने उसे परेशान किया। आँखों में जलन, सांस में तकलीफ और वहीं से उसने ठान लिया कि इस समस्या का हल ढूँढना ही है। कबाड़ इकट्ठा किया, थोड़ी सामग्री खरीदी और गढ़ दिया धूल-मुक्त थ्रेशर मॉडल।

बाराबंकी :  झोपड़ी से जापान तक, बाल वैज्ञानिक पूजा ने रच दिया इतिहास

इस मॉडल ने पहले जिले और मंडल में बाजी मारी, फिर उत्तर प्रदेश के टॉप 10 मॉडलों में जगह बनाई। राज्य स्तर पर गूँज उठा और दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम में आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिता में जब पूरे देश के 441 मॉडलों में से केवल 60 चुने गए, तो पूजा का मॉडल उनमें चमक उठा। यही नहीं, इस उपलब्धि ने उसे जापान तक पहुँचा दिया, जहाँ उसने वैज्ञानिकों से नई तकनीकें सीखीं। जापान से लौटकर पूजा का भव्य स्वागत हुआ। राज्यमंत्री सतीश शर्मा ने उसके घर पहुँचकर सम्मानित किया और बिजली की सुविधा दिलाई। अब उसे आवास भी स्वीकृत हो चुका है।

छात्रा पूजा पाल

पूजा पाल  थ्रेशर मॉडल के साथ

एक झोपड़ी में पली-बढ़ी लड़की, आज सरकारी सम्मान और अंतरराष्ट्रीय पहचान की हकदार है। आज पूजा 12वीं की छात्रा है और आगे विज्ञान की दुनिया में बीएससी कर अपनी पहचान बनाना चाहती है। उसका थ्रेशर मॉडल पेटेंट की प्रक्रिया में है, जो किसानों को धूल-मुक्त भूसा देगा और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से बचाएगा। यानी, पूजा की बुद्धिमत्ता केवल उसकी कहानी नहीं, बल्कि किसानों के लिए वरदान बनने वाली है।

पूजा पाल को किया गया सम्मानित