अमेठी, उत्तर प्रदेश
कभी नौकरी की तलाश में भटकती संगीता आज अमेठी में आत्मनिर्भरता की पहचान बन चुकी हैं। उन्होंने सिद्ध किया कि छोटे से संसाधन और थोड़ी लगन से भी बड़ा काम शुरू किया जा सकता है। संगीता ने बार-बार नौकरी पाने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। हार मानने की बजाय उन्होंने सोचा क्यों न कुछ ऐसा किया जाए जो खुद के लिए भी सहारा बने और दूसरों को भी जोड़ सके। गांव की सहेली से बातचीत में उन्हें समूह से जुड़ने का रास्ता मिला और यहीं से उनकी किस्मत ने करवट बदली।
संगीता ने आंवले से प्रोडक्ट बनाना शुरू किया। सिर्फ कुछ किलो आंवला, थोड़ी सी चीनी, मसाले और रसोई के बर्तन लेकर उन्होंने शुरुआत की। आज उनके हाथों से बने अचार, मुरब्बा, कैंडी, बर्फी और जूस अमेठी ही नहीं बल्कि आसपास के जिलों में भी बिकते हैं। इस काम की सबसे खास बात यह है कि इसे शुरू करने के लिए बड़े निवेश की ज़रूरत नहीं होती। लगभग 2 से 5 हजार रुपये में कोई भी व्यक्ति आंवले से बने प्रोडक्ट्स तैयार कर सकता है। आंवला आसानी से गांव-कस्बों के बाजार में सस्ते दाम पर मिल जाता है। प्रोसेसिंग और पैकेजिंग घर पर ही की जा सकती है।
स्थानीय हाट-बाजार और सोशल मीडिया से बिक्री शुरू की जा सकती है। यानी यह काम हर आम आदमी के लिए संभव है। संगीता अकेली ही नहीं आगे बढ़ीं। उन्होंने समूह से जुड़ी कई महिलाओं को भी इस काम से जोड़ा। जो महिलाएं पहले घर की तंगी से परेशान थीं, अब आत्मनिर्भर बन चुकी हैं। उन्हें घर से दूर जाकर नौकरी नहीं करनी पड़ती, बल्कि गांव में ही रोजगार मिल रहा है। संगीता की कहानी बताती है कि आत्मनिर्भर बनने के लिए बड़े पूंजी या डिग्री की नहीं, बल्कि हिम्मत और जज्बे की जरूरत है। छोटे स्तर पर शुरू किया गया काम धीरे-धीरे बड़ा कारोबार बन सकता है। उनकी पहल आज अमेठी ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की महिलाओं के लिए संदेश है छोटे कदम से शुरू करें, खुद पर भरोसा रखें और आत्मनिर्भर बनें।