योग की वैश्विक स्वीकार्यता और प्रभाव
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में 21 जून को ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ घोषित करने का प्रस्ताव रखा, जिसे 177 देशों ने अभूतपूर्व समर्थन दिया। 2015 से हर वर्ष 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है। इस दिन लाखों-करोड़ों लोग सामूहिक योगाभ्यास, कार्यशालाओं, सेमिनारों और जागरूकता अभियानों में भाग लेते हैं। न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वायर, पेरिस के एफिल टॉवर, लंदन के ट्राफलगर स्क्वायर, बीजिंग, सिडनी, टोक्यो, मास्को, दुबई और केप टाउन जैसे प्रमुख शहरों में भव्य योग कार्यक्रमों का आयोजन होता है। इस आयोजन ने योग को न केवल एक वैश्विक पहचान दिलाई है, बल्कि यह विभिन्न देशों, संस्कृतियों, धर्मों और भाषाओं के लोगों को एक मंच पर लाने में भी सफल रहा है। योग दिवस आज वैश्विक एकता, सद्भाव और शांति का प्रतीक बन चुका है, जो यह दर्शाता है कि योग केवल एक व्यायाम प्रणाली नहीं, बल्कि विश्व को जोड़ने वाला एक सांस्कृतिक सेतु है।
वैश्विक स्वास्थ्य और जीवनशैली पर प्रभाव
1.शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: विकसित देशों में जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों- जैसे मोटापा, हृदय रोग, मधुमेह और उच्च रक्तचाप की बढ़ती चुनौतियों के बीच योग एक प्रभावी समाधान के रूप में उभरा है। इसके नियमित अभ्यास से शरीर में लचीलापन, मांसपेशियों की मजबूती, पाचन तंत्र की सक्रियता और रोग प्रतिरोधक क्षमता में उल्लेखनीय सुधार देखा गया है।
2. मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य में योगदान: तेजी से भागती आधुनिक जीवनशैली ने मानसिक तनाव, चिंता, अवसाद और अनिद्रा को आम बना दिया है। योग और प्राणायाम ने इन समस्याओं के समाधान में निर्णायक भूमिका निभाई है। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी जैसे वैश्विक संस्थानों द्वारा किए गए शोधों में यह प्रमाणित हुआ है कि योग एकाग्रता, आत्मविश्वास, और मानसिक स्पष्टता को बढ़ावा देता है।
3. चिकित्सा और पुनर्वास में योग की भूमिका: आज योग को अनेक चिकित्सा संस्थानों द्वारा पूरक चिकित्सा पद्धति के रूप में अपनाया जा रहा है। कैंसर, हृदय रोग, गठिया, अस्थमा जैसी पुरानी बीमारियों के प्रबंधन में यह एक सहायक प्रणाली बन गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी योग को रोगों की रोकथाम और स्वास्थ्य संवर्धन के एक प्रभावी उपकरण के रूप में मान्यता दी है।
सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव: योग भारत की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण अंग है, और इसके वैश्विक विस्तार ने भारतीय दर्शन, जीवन मूल्यों और परंपराओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा दिलाई है। योग के साथ-साथ आयुर्वेद, ध्यान, प्राचीन ग्रंथों और संस्कृत भाषा के प्रति भी वैश्विक रुचि बढ़ी है। यूनेस्को ने 2016 में योग को ‘मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत’ के रूप में मान्यता दी। सामाजिक दृष्टिकोण से योग की सार्वभौमिकता इसकी सबसे बड़ी विशेषता है, जो जाति, धर्म, लिंग, उम्र और राष्ट्रीयता से परे सभी को जोड़ता है। विश्वभर में योग स्टूडियो, ओपन एयर सत्रों और क्लबों के माध्यम से सामाजिक समरसता, सहिष्णुता और भाईचारे को बल मिला है। इसके अतिरिक्त, योग ने महिला सशक्तिकरण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जहाँ महिलाएं प्रशिक्षक, थेरेपिस्ट, और उद्यमी बनकर आत्मनिर्भर बनी हैं।
शिक्षा और अनुसंधान में योगदान: आज विश्व के अनेक स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में योग को शारीरिक, मानसिक और नैतिक विकास के साधन के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के शैक्षिक संस्थानों में योग शिक्षा को अनिवार्य बनाया जा रहा है। अनुसंधान के क्षेत्र में भी योग पर व्यापक अध्ययन हो रहे हैं। हार्वर्ड, ऑक्सफोर्ड, स्टैनफोर्ड, टोक्यो विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों ने योग के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक प्रभावों पर वैज्ञानिक शोध किए हैं, जिससे योग को वैज्ञानिक आधार प्राप्त हुआ है। इसके साथ ही, योग शिक्षकों और प्रशिक्षकों की वैश्विक मांग में वृद्धि हुई है, जिससे रोजगार के नए अवसर उत्पन्न हुए हैं।
आर्थिक प्रभावः योग के वैश्विक प्रसार ने एक पूर्ण उद्योग का रूप ले लिया है, जिसमें योग स्टूडियो, योगा मैट्स और परिधान, मोबाइल ऐप्स, ऑनलाइन कक्षाएं, योग पर्यटन, और रिट्रीट्स शामिल हैं। अमेरिका में ही योग उद्योग का वार्षिक कारोबार 16 अरब डॉलर से अधिक है। भारत, नेपाल, बाली, थाईलैंड और श्रीलंका जैसे देशों में योग पर्यटन तेजी से विकसित हो रहा है। ऋषिकेश, हरिद्वार, वाराणसी, और काठमांडू योग के अंतरराष्ट्रीय केंद्र बन चुके हैं। इसके साथ ही, योग प्रशिक्षकों, थेरेपिस्ट्स, उत्पाद निर्माताओं और योग टूर गाइड्स के रूप में लाखों लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ है, विशेषकर भारत में युवाओं के लिए यह एक नया करियर विकल्प बन चुका है।
पर्यावरणीय और वैश्विक स्थिरता में योगदान: योग का दर्शन केवल शरीर और मन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रकृति और पर्यावरण के साथ सामंजस्य की शिक्षा भी देता है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना योग के मूल में है, जो संपूर्ण पृथ्वी को एक परिवार के रूप में देखता है। हाल के वर्षों में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की थीम में ‘पर्यावरणीय कल्याण’ और ‘सतत विकास’ जैसे विषयों को भी जोड़ा गया है। योग अभ्यास ने लोगों को जैविक भोजन, प्राकृतिक चिकित्सा, और पोषणीय जीवनशैली की ओर प्रेरित किया है, जिससे पर्यावरण संरक्षण को भी बल मिला है।
राजनयिक और वैश्विक संबंधों में भूमिका: योग भारत की सांस्कृतिक कूटनीति का प्रमुख माध्यम बन गया है। भारतीय दूतावासों द्वारा आयोजित योग कार्यक्रमों ने भारत की ‘सॉफ्ट पावर’ को सशक्त किया है, जिससे भारत की छवि एक शांतिप्रिय, स्वास्थ्यप्रद और समावेशी राष्ट्र के रूप में उभरी है। योग के सिद्धांत - जैसे अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह वैश्विक शांति, सह-अस्तित्व और सद्भाव को प्रोत्साहित करते हैं। संयुक्त राष्ट्र, WHO और UNESCO जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने योग को वैश्विक शांति और सतत विकास के एक सशक्त साधन के रूप में स्वीकार किया है।
योग पर वैश्विक नेतृत्व और संस्थाओं की दृष्टि अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की स्थापना से लेकर इसके वैश्विक प्रचार-प्रसार तक, विश्व के अनेक राष्ट्राध्यक्षों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने योग की सार्वभौमिकता, स्वास्थ्य लाभ, और वैश्विक शांति में योगदान को खुले रूप में सराहा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में योग दिवस का प्रस्ताव रखा, जिसे 177 देशों का अभूतपूर्व समर्थन मिला। मोदी ने इसे जनस्वास्थ्य और वैश्विक एकता का प्रतीक बताया। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून और अन्य अधिकारियों ने योग को मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य का साधन बताया। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने योग को अमेरिकी जीवनशैली का अंग माना, वहीं फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, और कनाडा जैसे देशों ने भी इसे मानसिक स्वास्थ्य और सार्वजनिक कल्याण के लिए उपयोगी बताया। एशिया के कई राष्ट्राध्यक्षों जैसे दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, नेपाल, और मंगोलिया ने योग के सामाजिक और मानसिक लाभों की प्रशंसा की है।
इस्लामी देशों में भी योग को बढ़ावा मिला है; सऊदी अरब में योग को खेल गतिविधि का दर्जा मिला और इजरायल में यह स्कूली शिक्षा में शामिल किया गया है। WHO ने योग को स्वास्थ्य संवर्धन और गैर-संचारी रोगों की रोकथाम में प्रभावी बताया, जबकि UNESCO ने इसे मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता दी। हर वर्ष 21 जून को विश्वभर के प्रमुख शहरों में लाखों लोग सामूहिक योगाभ्यास में भाग लेते हैं, जो योग की वैश्विक स्वीकार्यता और प्रभाव को दर्शाता है।