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सुनहरा पंच: बेल्जियम में पिथौरागढ़ की निवेदिता ने रचा इतिहास

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  • पिथौरागढ़ से बेल्जियम तक, बेटियों का बढ़ता आत्मविश्वास
  •  निवेदिता कार्की की कामयाबी, देश के लिए गर्व का क्षण
  • अंतरराष्ट्रीय मंच पर चमकी पिथौरागढ़ की बेटी, बेल्जियम में बजाया भारत का डंका

पिथौरागढ़ : बेटियां अब सिर्फ स्वप्न नहीं देखतीं, उन्हें पूरा करना भी जानती हैं। एक बार फिर एक बेटी ने देश का सिर गर्व से ऊँचा कर दिया है। आज हम बात कर रहे हैं पिथौरागढ़ की गोल्डन गर्ल निवेदिता कार्की के बारे में जिन्होनें बेल्जियम में हुए इंटरनेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर भारत का परचम लहराया है। नेपाल सीमा से सटे उत्तराखंड के रणवा गांव की बेटी निवेदिता कार्की ने साबित कर दिया कि बेटियां अगर ठान लें, तो अंतरराष्ट्रीय मंच भी उनके आगे झुक जाते हैं। बेल्जियम की राजधानी ब्रुशेल्स में आयोजित इंटरनेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में निवेदिता ने भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतकर पूरे देश को गौरवान्वित किया है।

ऑस्ट्रेलिया और बेल्जियम की प्रतिद्वंद्वियों को दी मात

24 अप्रैल से 28 अप्रैल तक ब्रुशेल्स में आयोजित इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में निवेदिता ने सेमीफाइनल मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया की जेमिमा गेट्ज को हराया। इसके बाद फाइनल में आतिथेय देश बेल्जियम की बॉक्सर सोफिया को मात देते हुए स्वर्ण पदक अपने नाम किया।

देहरादून में निवास, पिथौरागढ़ से शुरुआत

निवेदिता के पिता बहादुर सिंह कार्की भारत-तिब्बत सीमा पुलिस में तैनात हैं और मां एक गृहिणी हैं। वर्तमान में उनका परिवार देहरादून में निवास करता है। निवेदिता ने अपनी स्कूली शिक्षा पिथौरागढ़ के एशियन स्कूल से ग्रहण की और यहीं से उन्होंने बॉक्सिंग की दुनिया में कदम रखा।

बेटियों के साहस को नमन 

बेटी की इस कामयाबी पर पिता बहादुर सिंह ने कहा, “यह केवल हमारे परिवार के लिए ही नहीं, पूरे देश के लिए गर्व का क्षण है। निवेदिता ने यह दिखा दिया कि बेटियां किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं।”

खेलों में बढ़ता बेटियों का कदम

निवेदिता की यह सफलता सिर्फ एक व्यक्तिगत जीत नहीं, बल्कि एक संवाद है, बेटियां अब खेल जगत में भी अपनी धमक जमाने लगी हैं। उनकी मेहनत, जोश और भावना देश के लिए एक प्रेरणा है। भारत की बेटियां आज खेल के हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं चाहे वो मैरी कॉम हों, पी.वी. सिंधु, मीराबाई चानू, या निकहत ज़रीन। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेटियों की भागीदारी में पिछले एक दशक में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। सरकार द्वारा चलाई गई योजनाएं जैसे "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ", "खेलो इंडिया" और "टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम" ने बालिकाओं को खेलों में आगे बढ़ने का मंच दिया है।

2016 ओलंपिक में भारत को जो दो पदक मिले थे, वे दोनों बेटियों ने ही दिलाए थे – पी.वी. सिंधु और साक्षी मलिक।

2023 एशियन गेम्स में भारतीय महिला खिलाड़ियों ने कुल पदकों में 40% से अधिक योगदान दिया।

देशभर में लड़कियों की भागीदारी स्कूल व विश्वविद्यालय स्तर पर भी बढ़कर अब 35% से ऊपर पहुँच चुकी है।

निवेदिता जैसी बेटियां आज न सिर्फ व्यक्तिगत जीत प्राप्त कर रही हैं, बल्कि एक पूरे समाज को यह संदेश दे रही हैं कि अगर अवसर मिले, तो बेटियां हर क्षेत्र में देश का नाम रोशन कर सकती हैं।