भारत-नेपाल सीमा, पीलीभीत, उत्तर प्रदेश
नेपाल से रचा गया मतान्तरण का सुनियोजित छद्म युद्ध
पाँच वर्षों से उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती जिले पीलीभीत में एक धीमा मगर अत्यंत घातक युद्ध चल रहा था, एक ऐसा छद्म युद्ध जो न बंदूकों से लड़ा गया, न तलवारों से। यह युद्ध में गरीबों की भूख, बीमारों की लाचारी और मासूमियत को निशाना बनाया गया। इस युद्ध में दुश्मन थे वे एजेंट, जो नेपाल की खुली सीमा से भारत की पवित्र भूमि में घुसे। उन्होंने अपने साथ लाई बाइबिलें, विदेशी डॉलर और नकली चमत्कार का स्वप्न । वे आए चेहरे पर करुणा का मुखौटा पहनकर, लेकिन भीतर थी एक पूरी सभ्यता को चुपचाप मिटा देने की योजना। धीरे-धीरे उन्होंने पीलीभीत के गांवों में जड़ें जमा लीं। सिख परिवारों को कहा गया - आपका संरक्षण यीशु करेगा, गुरु नहीं। बीमारियों से जूझते लोगों को प्रार्थना सभाओं में बुलाया गया। कुछ को दो लाख रुपये का लालच दिया गया तो कुछ से सरकारी योजनाओं का वादा किया गया। दक्षिण कोरियाई चर्चों के कैलेंडर दीवारों पर टांगे गए और ‘वाहे गुरु-वाहे गुरु’ बोलने वाले बच्चे ‘हालेलुयाह’ बोलने लगे। गाँव वही थे, लोग वही, नाम वही... पर बुद्धि को किसी और ने हथिया लिया था। ये कोई मात्र मतान्तरण नहीं था, ये परम्परा और संस्कारों पर सुनियोजित हमला था, एक साइलेंट सिविलाइजेशनल जेनोसाइड।
नेपाल क्यों बना आधार?
नेपाल आज ईसाई मिशनरियों का सबसे बड़ा गढ़ बन चुका है। वहां के चर्च विदेशी फंडिंग के माध्यम से मिशनरीज को प्रशिक्षित करते हैं, जो खुली सीमा से बिना किसी रोकटोक भारत में घुस आते हैं। फर्जी पहचान पत्र, स्थानीय एजेंट और भूखे दिलों की मजबूरी इनके सबसे बड़े हथियार हैं और उत्तर प्रदेश का पीलीभीत भी इसका शिकार बना। मिशनरियों ने लोगों से स्वर्ग का वादा किया, लेकिन जमीन पर नरक थमा दिया। जिन सिखों ने चर्च अपनाया, उनके लिए हालात जल्द ही बदल गए। मतान्तरण के बाद बहुतों से उनकी पुरानी पहचान छीन ली गई। कुछ को अपने ही गांव में अपमान सहना पड़ा। बच्चों को जबरन चर्च भेजा गया उन्हें गुरु ग्रंथ साहिब छूने से रोका गया। जिन महिलाओं ने विरोध किया, उन्हें ‘अविश्वासी’ कहकर अलग-थलग कर दिया गया। एक पीड़ित ने कहा- हमने सोचा यीशु की प्रार्थना से जीवन बदलेगा पर हमें अपनों से अलग कर दिया गया… वहाँ न गुरु था, न अपनापन। मतान्तरण के बाद बहुत से लोग चर्च के अनुशासन और दबाव में पिसते गए। स्वतंत्रता के नाम पर मिले थे नए बंधन। 16 जून 2025 — इतिहास में दर्ज हो चुका एक दिन। पीलीभीत में 305 सिखों ने वह साहस दिखाया जो पूरे भारत को चेताता है। उन्होंने चर्च को त्यागा और पुनः सनातन में घर वापसी की। अमृतपान किया गया, पवित्र कीर्तन गूंजे और वर्षों बाद गांवों में सनातन का स्वर फिर से गूंज उठा। उन्होंने कोई नया धर्म नहीं अपनाया - वे उसी सनतान परंपरा की ओर लौट आए, जो उनका वास्तविक अस्तित्व है। गुरु नानक से लेकर गुरु गोविंद सिंह तक की परंपरा वेदों से प्रेरित, भगवती की कृपा से पूरित और धर्मरक्षा के लिए समर्पित रही है।
अब भी जारी है सुनियोजित हमला
पीलीभीत की 305 घर वापसी कोई आंकड़ा नहीं,यह एक संकेत है। संकेत है कि भारत की जड़ों को काटने का बार-बार प्रयास किया गया। नेपाल के गिरजाघरों से प्रशिक्षित प्रचारक आज भी भारत में सक्रिय हैं। यह कोई साम्प्रदायिक टिप्पणी नहीं, यह कटु यथार्थ है और इस खतरे से लड़ने के लिए कानून के साथ ही चेतना की आवश्यकता है। यह मात्र पीलीभीत की लड़ाई नहीं। यह उस भारत की लड़ाई है जो मतान्तरण और सबसे प्रचीन परम्परा के बारे में जानकारी के अभाव से जूझ रहा है। यह उस सनातन का प्रश्न है जो सिख, जैन, बौद्ध जैसी शाखाओं में विभक्त होकर भी कभी अलग नहीं हुआ।