प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शाही जामा मस्जिद कमेटी, संभल द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी। याचिका में निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण करने के लिए एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति का निर्देश दिया गया था। न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए निर्णय सुनाया।
ट्रायल कोर्ट ने नवंबर 2024 में एक मुकदमे पर अपना आदेश पारित किया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि मस्जिद का निर्माण मुगल काल के दौरान ध्वस्त किए हिन्दू मंदिर पर किया गया था।
मुकदमा अधिवक्ता हरि शंकर जैन और सात अन्य लोगों ने दायर किया था। मामले में मंदिर पक्ष को बड़ी जीत मिली है।
सिविल कोर्ट की कार्यवाही फिलहाल रुकी हुई है, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश पारित किया है, जिसमें देशभर की अदालतों को संरचनाओं के धार्मिक चरित्र पर विवाद करने वाले मुकदमों में कोई प्रभावी आदेश पारित नहीं करने का निर्देश दिया गया है।
एएसआई ने मामले में कहा कि मस्जिद को एक केंद्रीय संरक्षित स्मारक के रूप में नामित किया गया है, जिसे सार्वजनिक पूजा स्थल के रूप में नहीं माना जा सकता क्योंकि इस तरह के दावे के लिए कोई सहायक रिकॉर्ड नहीं थे। इसमें कहा गया है कि स्वतंत्रता के बाद, प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 (एएमएएसआर अधिनियम) के प्रावधान, ऐसे स्थलों पर लागू हो गए। आधिकारिक रिकॉर्ड मस्जिद को धार्मिक स्थल के रूप में नहीं पहचानते हैं।
एएमएएसआर अधिनियम के तहत, एएसआई और केंद्र सरकार को संरक्षित स्मारकों की घोषणा करने और उन्हें संरक्षित करने का अधिकार है, जिससे मस्जिद समिति द्वारा किए किसी भी अनधिकृत स्वामित्व के दावे कानूनी रूप से अप्रासंगिक हो जाते हैं। न्यायालय ने 3 मई को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
ट्रायल कोर्ट के आदेश से संभल में नवंबर 2024 में हुए सर्वेक्षण के दौरान हिंसा भड़क गई थी, जिसमें चार लोग मारे गए थे। संभल जामा मस्जिद इंतजामिया कमेटी की पुनरीक्षण याचिका में संभल जिला न्यायालय में लंबित मूल वाद की आगे की अदालती कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग की गई थी।
सोमवार को आए निर्णय से यह स्पष्ट हो गया कि सर्वे की कार्रवाई जारी रहेगी। अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने दावा किया कि जामा मस्जिद दरअसल प्राचीन हरिहर मंदिर के स्थान पर बनाई गई है।