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वैश्विक स्तर पर भारतीय सबसे अधिक प्रसन्नता प्राप्त करने की ओर अग्रसर

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अभी हाल ही में वर्ष 2023 के लिए वैश्विक प्रसन्नता प्रतिवेदन (ग्लोबल हप्पीनेस रिपोर्ट 2023) जारी किया गया है। वैश्विक प्रसन्नता प्रतिवेदन को,  150 से अधिक देशों का विभिन बिंदुओं पर सर्वे करने के उपरांत, संयुक्त राष्ट्र दीर्घकालिक विकास समाधान तंत्र द्वारा प्रकाशित किया जाता है। वैश्विक प्रसन्नता प्रतिवेदन को अंतिम रूप देने के पूर्व, स्वस्थ जीवन प्रत्याशा, प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद, सामाजिक सहयोग, भ्रष्टाचार का स्तर, समाज में नागरिकों के बीच आपसी सदाशयता एवं निर्णय लेने की स्वतंत्रता जैसे बिंदुओं पर विभिन्न देशों का आंकलन किया जाता है। फिनलैंड, डेनमार्क, आइसलैंड, स्वीडन एवं नॉर्वे जैसे छोटे छोटे देश जिनकी जनसंख्या तुलनात्मक रूप से बहुत कम रहती है, इस सूची में शीर्ष स्थान प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं। उक्त सर्वे के अनुसार सबसे अधिक प्रसन्न देश, फिनलैंड में केवल 55 लाख नागरिक निवास करते हैं, डेनमार्क में 58.6 लाख लोग रहते हैं एवं आइसलैंड में तो महज 3.73 लाख नागरिक ही निवास करते हैं। इसके विपरीत भारत के अकेले मुम्बई, दिल्ली, कोलकता, चेन्नई, बैंगलोर, हैदराबाद जैसे शहरों की जनसंख्या इन देशों की उक्त वर्णित जनसंख्या से कई गुना अधिक है।  वैसे विश्व के विभिन्न देशों के नागरिकों की प्रसन्नता को एक जैसे 6 अथवा 7 बिंदुओं पर सर्वे करते हुए नहीं आंका जा सकता है। क्योंकि, प्रत्येक देश के नागरिकों में खुशी अथवा गम की अवस्था अलग अलग कारकों एवं कारणों के चलते भिन्न भिन्न होती है। 


वैश्विक प्रसन्नता प्रतिवेदन के माध्यम से जारी सूची में भारत को 126वां स्थान दिया गया है। परंतु, आश्चर्य तो इस बात पर है कि लगातार आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक समस्याओं से जूझ रहा पाकिस्तान इस सूची में 103वें स्थान पर है। इस आंकलन के अनुसार, क्या पाकिस्तान के नागरिक, भारत के नागरिकों की अपेक्षा अधिक प्रसन्न हैं? इसी प्रकार, इस सूची में चीन को 64वां, नेपाल को 78वां, बांग्लादेश को 118वां एवं श्रीलंका को 112वां स्थान दिया गया है। जबकि, श्रीलंका, बांग्लादेश एवं नेपाल भी लगातार आर्थिक समस्याओं से जूझते हुए दिखाई दे रहे हैं। वैश्विक प्रसन्नता प्रतिवेदन के माध्यम से जारी सूची में शीर्ष 20 देशों में एशिया का कोई भी देश शामिल नहीं है। अर्थात, केवल यूरोपीय देशों के नागरिक ही प्रसन्न रहते हैं, जबकि एशिया से चीन विश्व की दूसरी, जापान विश्व की तीसरी एवं भारत विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। अर्थात, विश्व की शीर्ष पांच अर्थव्यवस्थाओं में तीन एशिया के देश हैं, परंतु फिर भी एशिया के नागरिक प्रसन्न नहीं हैं? उक्त वैश्विक प्रसन्नता प्रतिवेदन को अंतिम रूप दिए जाते समय सम्भवतः कुछ बुनियादी गलतियां हुई होंगी, ऐसा आभास होता है। क्योंकि, उक्त सर्वे के साथ ही इसी संदर्भ में तीन अन्य सर्वे भी जारी हुए हैं, जिनके परिणामों में भारतीय नागरिकों को बहुत प्रसन्न बताया गया है।  


भारतीय स्टेट बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग द्वारा भी अभी हाल ही में विभिन्न देशों में नागरिकों की प्रसन्नता को आंकने के संदर्भ में एक सर्वे किया गया है। यह सर्वे मुख्य रूप से वित्तीय क्षेत्र में प्रसन्नता, कार्य स्थल पर पहुंचने एवं उत्पादकता से सम्बंधित प्रसन्नता, मानसिक प्रसन्नता, जीवन एवं कार्य के बीच संतुलन, ऊर्जा की उपलब्धता, आदि जैसे बिंदुओं पर आधारित है। यह सर्वे 61 देशों के सम्बंध में उक्त वर्णित मानदंडों पर प्राप्त विस्तृत जानकारी के आधार पर सम्पन्न किया गया है।  


वित्तीय क्षेत्र में प्रसन्नता को आंकते समय देश में सकल बचत, शुद्ध बचत एवं निजी साख ब्यूरो कवरेज का ध्यान रखा गया है। बचत एवं ऋण की आसान उपलब्धता को भी वित्तीय प्रसन्नता को आंकने के मापदंड में शामिल किया गया है। वित्तीय प्रसन्नता के मापदंड पर कतर को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है, ग्रीस को अंतिम स्थान प्राप्त हुआ है एवं भारत को 17वां स्थान प्राप्त हुआ है।   


कार्य स्थल पर पहुंचने एवं उत्पादकता से सम्बंधित प्रसन्नता को आंकते समय कृषि, उद्योग एवं सेवा क्षेत्र से अलग अलग जानकारीयां प्राप्त की गई है। देश में फसल उत्पादन सूचकांक के आधार पर किसानों की प्रसन्नता को आंका गया है। देश में व्यापार करने में आसानी (ईज आफ डूइंग बिजनिस) सूचकांक के आधार पर उद्योग क्षेत्र में कार्य कर रहे नागरिकों की प्रसन्नता को आंका गया है। कर्मचारियों की उत्पादकता को आंकने हेतु मानव पूंजी सूचकांक का उपयोग किया गया है। देश में बेरोजगारी की दर बढ़ने से नागरिकों में नकारात्मक भाव जागृत होता है, इसे आंकने का प्रयास भी किया गया है। प्रत्येक देश में कर्मचारियों को वेतन के साथ उपलब्ध कराए जा रहे अवकाश की संख्या को भी कर्मचारियों में प्रसन्नता को आंकने हेतु उपयोग किया गया है। इस प्रकार किए गए आंकलन के अनुसार सिंगापुर को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है एवं इराक को सबसे निचला स्थान प्राप्त हुआ है। भारत को 45वां स्थान प्राप्त हुआ है। 


देश में मानसिक प्रसन्नता को आंकने के लिए नागरिकों में विषाद की स्थिति को आंका गया है एवं इन देशों के नागरिकों द्वारा अपना कितना समय परोपकार के कार्यों में लगाया जाता है, इसे भी आंकने का प्रयास किया गया है। इस मापदंड पर इंडोनेशिया को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है एवं पुर्तगाल को अंतिम स्थान प्राप्त हुआ है। जबकि भारत 11वें स्थान पर रहा है। 


उक्त सर्वे में यह रोचक तथ्य भी उभरकर सामने आया है कि कुछ देशों में जीवन एवं कार्य के बीच संतुलन बनाए रखने की दृष्टि से इन देशों के नागरिकों द्वारा उस कार्य को किया ही नहीं जाता है जिससे उनके जीवन एवं कार्य के बीच असंतुलन की स्थिति निर्मित हो। कार्य के कुल समय में कितना लचीलापन है, नौकरी की सुरक्षा, 65 वर्ष के पूर्व सेवा निवृत्ति प्राप्त करना एवं नौकरी से प्रयोजन का हल होना जैसे बिंदुओं को इस मापदंड के अंतर्गत आंका गया है। इस मापदंड को आंकने के लिये केवल 28 देशों की जानकारी प्राप्त हो पाई है। इस मापदंड के अनुसार, भारत को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है एवं जापान को अंतिम स्थान प्राप्त हुआ है।  


ऊपर वर्णित समस्त मापदंडो को मिलाकर जो 61 देशों के अंतिम परिणाम प्राप्त हुए हैं, उनके अनुसार आस्ट्रेलिया प्रथम स्थान पर रहा है एवं सूडान को अंतिम स्थान प्राप्त हुआ है। जबकि, भारत को 48वां स्थान प्राप्त हुआ है। इस सूची में प्रथम 10 देश निम्न प्रकार रहे है, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, न्यूजीलैंड, ब्रिटेन, ग्रीस, कनाडा, पोलैंड, जर्मनी, इटली एवं फिनलैंड। 


इसी प्रकार, एक परामर्शदात्री संस्थान हैप्पीप्लस द्वारा ‘द स्टेट ऑफ हैप्पीनेस 2023’ विषय पर जारी एक प्रतिवेदन के अनुसार, भारत में लगभग 35 प्रतिशत नागरिकों ने वर्ष 2022 में नकारात्मकता और दुख का अनुभव किया है, और शेष 65 प्रतिशत नागरिक अपेक्षाकृत प्रसन्नचित रहे हैं। उक्त प्रतिवेदन भारत के 36 राज्यों एवं केंद्र शासित क्षेत्रों में निवासरत 14,000 नागरिकों की प्रतिक्रिया जानने के बाद तैयार किया गया है। इसी प्रकार के एक अन्य सर्वे के अनुसार भी भारत में कम से कम 84 प्रतिशत नागरिकों ने अपने आप को प्रसन्न बताया है। ‘जीवन संतुष्टि’ पर आधारित यह ‘इप्सोस ग्लोबल हैप्पीनेस सर्वे’ बताता है कि पूरे विश्व में 73 प्रतिशत नागरिक संतुष्ट हैं।


अभी हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अपने एक बयान में कहा है कि भारत एवं चीन मिलकर ,  केलेंडर वर्ष 2023 के दौरान होने वाली वैश्विक आर्थिक वृद्धि में, 50 प्रतिशत की भागीदारी करेंगे। कोरोना महामारी एवं रूस तथा यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के कारण वैश्विक स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद में 3 प्रतिशत से कम की वृद्धि दर्ज होगी, जो कि सम्भवतः वर्ष 1990 के बाद से किसी एक वर्ष में सबसे कम वृद्धि दर होने जा रही है। कलेंडर वर्ष 2023 के दौरान भारत एवं चीन को छोड़कर विश्व के अन्य सभी बड़े देशों में आर्थिक वृद्धि दर विपरीत रूप से प्रभावित होने की सम्भावना व्यक्त की गई है। इस प्रकार, जब भारत में आर्थिक विकास बहुत तेज़ गति से आगे बढ़ रहा है तो स्वाभाविक रूप से भारत के नागरिकों में प्रसन्नता का भाव भी बढ़ेगा। वैसे भी, विश्व बैंक ने विशेष रूप से भारत में  गरीब वर्ग के नागरिकों की आर्थिक स्थिति में लगातार हो रहे अतुलनीय सुधार के चलते गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे नागरिकों की संख्या में भारी कमी की भरपूर प्रशंसा की है। साथ ही, भारत के नागरिकों का आध्यात्म एवं धर्म की ओर झुकाव भी उन्हें विपरीत परिस्थितियों के बीच भी संतुष्ट एवं प्रसन्न रहना सिखाता है। इसी मुख्य कारण से भारत प्राचीन काल में विश्व गुरु रहा है। और, अब पुनः भारत, विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर हो चुका है, इससे भी भारत के नागरिकों में प्रसन्नता की स्थिति का निर्माण होना बहुत स्वाभाविक ही है।