• अनुवाद करें: |
विशेष

आर्थिक न्याय और विकास के प्रेरणास्रोत

  • Share:

  • facebook
  • twitter
  • whatsapp

आर्थिक न्याय और विकास के प्रेरणास्रोत

लेखक -  डॉ. प्रियंका सिंह

एसोसिएट प्रोफेसर, अर्थशास्त्र शम्भू दयाल पीजी कॉलेज, गाजियाबाद

 

भीमराव राम जी अंबेडकर, जिन्हें बाबा साहेब अंबेडकर के नाम से जाना जाता है उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू इंदौर के पास हुआ। भारतीय संविधान के शिल्पकार बाबा साहेब न केवल एक विधिवेत्ता थे बल्कि एक प्रख्यात राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री, चिंतक, दार्शनिक, लेखक और संपादक भी थे। उन्होंने अपने जीवन में अस्पृश्यता जैसी सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष किया और वंचितों व दलितों के अधिकारों के लिए सतत कार्य किया। उनकी दूरदर्शिता आज भी हमारे समाज और आर्थिक नीतियों को दिशा प्रदान करती है। जो न केवल अर्थव्यवस्था में संख्याओं व नीतियों तक सीमित है अपितु सामाजिक न्याय एवं समानताओं की भी आधारशिला है। पहली बार समाजसेवी जनार्दन सदाशिव रणपिसे ने 14 अप्रैल 1928 को पुणे में सार्वजनिक रूप से अंबेडकर जयन्ती का आयोजन किया।


विदेश में अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद जब बाबा साहब भारत वापस आए तो देश में जातिगत भेदभाव चरम पर था। अपनी बात जनमानस तक पहुंचाने के लिए एवं सामाजिक कुरीतियों के दुष्प्रभाव को समझाने के उद्देश्य से "मूकनायक" नामक समाचार पत्र की शुरुआत की। उनका मानना था की किसी भी देश का भविष्य, उसकी शक्ति इस बात पर निर्भर करती है कि उसका आर्थिक और सामाजिक ताना बाना कितना मजबूत है।

 

उनका यह दृष्टिकोण मात्र विकास तक सीमित नहीं था अपितु उन्होंने इसे सामाजिक न्याय से जोड़कर भी देखा। 1947 में प्रकाशित "State and minority" में उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, श्रमिक अधिकारों, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार की बात की। 1923 में Out Cost Welfare Association की स्थापना जिसका उद्देश्य वंचित वर्ग में शिक्षा एवं संस्कृति का प्रसार होना था ।1930 में उन्होंने काला राम मंदिर प्रवेश आंदोलन शुरू किया जो मानवाधिकारों और सामाजिक न्याय के लिए एक ऐतिहासिक संघर्ष था।

 

प्रत्येक क्षेत्र में उनकी दूरदर्शिता और लिए गये निर्णय आज भी प्रासंगिक हैं जहाँ एक तरफ उन्होंने कृषि सुधार हेतु सुझाव दिया कि यदि किसान एक साथ मिलकर खेती करें और संसाधनों को आपस में साझा करें जिससे उत्पादन भी बढ़ेगा और स्थिति भी सुदृढ़ होगी वही औद्योगिकरण के बारे में उनका दृष्टिकोण अत्यंत स्पष्ट था। गरीबी और बेरोजगारी मुक्त करना है तो बड़े उद्योगों की स्थापना करनी होगी। आज "मेक इन इण्डिया और "आत्मनिर्भर भारत" जैसी योजनाएं उनके विचारों की गूंज है।

आर्थिक अस्थिरता के कारणों का गहन विश्लेषण और भारतीय रुपयों की स्थिरता के समाधान को उन्होंने 1923 में अपनी पुस्तक "The Problems of the Rupee: It's Origin and Its Solution" में लिखा है।

 

वित्तीय विकेंद्रीकरण की उनकी अवधारणा बहुत व्यापक है। उनका मानना था कि राज्य सरकारों व केंद्र सरकारों के मध्य संसाधनों का न्याय संगत साझेदारी होनी चाहिए क्योंकि यदि राष्ट्र को मजबूत होना है तो ऐसी आर्थिक नीतियों को धरातल पर उतारना आवश्यक होगा जहाँ विकास का लाभ प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचे। उन्होंने श्रमिक अधिकारों, न्यूनतम वेतन, मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को जन जन तक पहुंचाने की वकालत की जिससे सभी को समान अवसर प्राप्त हो सके। बाबा साहेब का आर्थिक चिंतन और नीतिगत योगदान भारतीय अर्थव्यवस्था के मूलभूत ढांचे को मजबूत करने में सहायक सिद्ध हुआ। जहां उनके शोष और विचारों ने भारतीय वित्त आयोग (Finance Commission of India) की स्थापना की वही भारतीय रिजर्व बैंक अभिनियम 1934 (RBI Act 1934) के दिशा निर्देशों के निर्माण में उनके द्वारा हिल्टन यंग कमीशन को प्रस्तुत किए गए विचारों का योगदान रहा। जिससे यह स्पष्ट है कि उनकी बौद्धिक क्षमता व समाज सुधारक दृष्टि समकालीन संदर्भ में भी प्रासंगिक बने हुए हैं और समाज के वैचारिक विमर्श को दिशा प्रदान कर रहे हैं।


अंबेडकर जयंती के अवसर पर, यह आवश्यक है कि हम उनके आर्थिक विचारों को न केवल स्मरण करें, बल्कि उन्हें नीति निर्माण और विकास योजनाओं में भी समाहित करें। आर्थिक न्याय और समानता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता समावेशी विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रेरणा है। वर्तमान वैश्विक और राष्ट्रीय आर्थिक परिदृश्य में उनके विचार न केवल प्रासंगिक है, बल्कि सामाजिक आर्थिक सशक्तिकरण के लिए एक आवश्यक दिशा-निर्देशक के रूप में कार्य करते हैं। अतः, यह हमारा वायित्व बनता है कि हम उनके सिद्धांतों को व्यवहारिक रूप में लागू कर, भारत को आर्थिक समानता और सतत विकास के मार्ग पर अग्रसर करें।