• अनुवाद करें: |
विशेष

अमेरिका में भारतीय मूल के खिलते फूल

  • Share:

  • facebook
  • twitter
  • whatsapp

अमेरिका में भारतीय मूल के खिलते फूल

लेखक-  डॉ. बलराम सिंह

इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस्ड साइंसेज डार्टमाउथ, मेसाचुसेट्स, यूएसए

ब से मनुष्य जाति का इस धरा पर ज अवतरण हुआ है, जो कि अफ्रीका में मूल रूप से वैज्ञानिक विचार के अनुसार माना जाता है तभी से मनुष्य जाति का धरती भ्रमण चला आ रहा है। नेशनल ज्योग्राफिक मैगजीन के अनुसार डीएनए विश्लेषण के आधार पर माना जाता है कि अफ्रीका से मानव भारत में करीब 65 हजार वर्ष पूर्व आए। जिसका कारण आइस एज आधारित ठंडे मौसम की जटिलता माना गया है। करीब आज के हजार वर्ष पूर्व भारत से पहला देशांतर गमन अरब देश की तरफ हुआ था। भारत से दूसरा देशांतर गमन 45 हजार वर्ष पूर्व चीन की तरफ हुआ था और अंत में 40 हजार वर्ष पूर्व लोग भारत एवं अरब देश से यूरोप स्थान पर पहुंचे। अर्थात् भारत से बाहर जाने की प्रथा बड़ी प्राचीन रही है। आधुनिक काल में भी भारतीय मूल के लोग सारी दुनियां में पहुंच चुके हैं।

 

प्रवासी भारतीयों की संख्या करीब 3.5 करोड़ पहुंच चुकी है। भारतीय प्रवासी समुदाय को दुनिया का सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय माना जाता है। यहां पर कुछ प्रमुख देशों में भारतीय प्रवासियों की संख्या देखी जा सकती है, संयुक्त राज्य अमेरिका 54 लाख; संयुक्त अरब अमीरात 36 लाख; मलेशिया 29 लाख; कनाडा 28 लाख; सऊदी अरब 24 लाख; म्यनमार- 20 लाख; यूनाइटेड किंगडम 18 लाख और दक्षिण अफ्रीका 17 लाख।

अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों की संख्या 54 लाख (5.4 मिलियन) है जो अमेरिका की कुल आबादी का 1.5 प्रतिशत है। वे अमेरिका की अर्थव्यवस्था, राजनीति और संस्कृति में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं, विशेष रूप से विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित के क्षेत्रों में।


अर्थव्यवस्था : भारतीय-अमेरिकी समुदाय अमेरिका की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान करता है। वे उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं और विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अमेरिका में कई सफल भारतीय-अमेरिकी उद्यमी और व्यवसायी हैं। अमेरिकी भारतीय परिवारों की आय एक औसत अमेरिकी परिवार की लगभग दोगुनी है। भारतीय-अमेरिकी समुदाय के सदस्य अमेरिका के कई प्रमुख व्यवसायों में काम करते हैं। भारतीय-अमेरिकी समुदाय अमेरिका की राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उदाहरण के लिए, कमला हैरिस अमेरिका की पहली महिला उपराष्ट्रपति हैं, जो भारतीय मूल की हैं। भारतीय-अमेरिकी समुदाय के सदस्य विभिन्न राजनीतिक पदों पर भी काम करते हैं।

भारतीय-अमेरिकी समुदाय अमेरिका की संस्कृति को समृद्ध करता है। योग, आयुर्वेद और भारतीय त्यौहारों जैसे भारतीय संस्कृति के तत्वों को अमेरिका में व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है। भारतीय-अमेरिकी समुदाय विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों और गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेता है और शिक्षा प्रणाली में भी महत्वपूर्ण योगदान करता है। वे अमेरिका के शीर्ष विश्वविद्यालयों में अध्ययन करते हैं और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

भारतीय-अमेरिकी समुदाय अमेरिका में विभिन्न सामाजिक और सामुदायिक संगठनों में भी सक्रिय रूप से भाग लेता है। वे दान और सामाजिक कार्यों में भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। यह समुदाय अमेरिका को एक बेहतर जगह बनाने में मदद करता है। निष्कर्ष के रूप में देखा जाए तो भारतीय-अमेरिकी समुदाय अमेरिका के लिए एक महत्वपूर्ण संपत्ति है। वे अमेरिका की अर्थव्यवस्था, राजनीति, संस्कृति और शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं।

 भारतीय मूल के कई सफल सीईओ हैं जो बही अमेरिकी कंपनियों का नेतृत्व कर रहे हैं, यहां कुछ प्रमुख भारतीय मूल के सीईओ और उनकी कंपनियां दी गई है-

 सुंदर पिचाई गूगल और अल्फाबेट के सीईओ, सत्या नाडेला माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ, शांतनु नारायण एडोबी के सीईओ, अरविन्द कृष्णा- आईबीएम के सीईओ, नील मोहन- यूट्यूब के सीईओ, यामिनी रंगन (SAP, Lucent, Workday, Dropbox जैसी कंपनियों में काम किया है)

 इन सब गतिविधियों से एक बात उभर कर सामने आई है कि लगभग साढ़े तीन करोड़ भारतीय प्रवासियों का एक तरफ भारत से मानसिक जुड़ाव बढ़ने लगा और दूसरी तरफ तकनीकी स्थान्तरण और आर्थिक विनिमय के रास्ते खुल गए। इस आदान प्रदान में अभी भी कमी महसूस की जा रही है और वह है मतान्तर और निर्णय लेने की क्षमता। भारतीय प्रवासी (इंटलेक्युचल इनपुट एण्ड सॉफ्ट पावर) भारत को सॉफ्ट पावर देने और बौद्धिक पोषण करने में हिचकिचा रहे है। फिर भी एन.आर.आई. के दृष्टिकोण से देखें तो भारतीयों को प्रसिद्धि दिलाने में कई लोगों का योगदान रहा है। अग्रणी NRI/PIO नोबल पुरस्कार पाने वालों के नाम लें, तो साहित्य में सर विद्याबर नायपॉल, अर्थशास्त्र में प्रो. अमर्त्य सेन, रसायन शास्त्र में डॉ. वेन्की रामकृष्णन, फिजियोलॉजी एवं मेडिसिन में प्रो. हरगोविंद खुराना, भौतिकी (फिजिक्स) में डॉ. सुब्रमनियम चन्द्रशेखर आदि के नाम उभर कर सामने आते है। उसी प्रकार स्वामी विवेकानंद, इस्कॉन संस्थापक श्रील प्रभुपाद, महर्षि महेश योगी, परमहंस योगानंद जैसी अनेक विभूतियों ने अमेरिकी समाज को भारतीय आध्यात्मिक चेतना से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। पिछले कुछ वर्षों में डॉ. दीपक चोपड़ा ने भी जीवन कला विचारक के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। सन् 2015 से 2017 तक प्रो. बी अरविंद पनागरिया (उप सभापति नीति आयोग) कोलांबिया विश्वविद्यालय, अमेरिका के तथा 2013-2016 की अवधी में शिकागों विश्वविद्यालय के रघुराम राजन जो रिजर्व बैंक के गवर्नर के पद पर रहे हैं अपने क्षेत्र में, प्रतिष्ठित व्यक्ति माने जाते है। जिन्होंने भारत की उन्नति में योगदान दिया है।

 

अमेरिका में रहने वाले अनेक प्रवासी भारतीय राजनीति और व्यापार के क्षेत्र में उच्च पदों तक पहुंचे हैं, इसके अलावा चिकित्सा सेवा, विश्वविद्यालय शिक्षण और कंप्यूटर इंजीनियरिंग में भी ये बड़ी संख्या में शामिल हैं। उदाहरण के लिए, होटल और मोटल व्यवसाय में भारतीय मूल के अमेरिकी संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 68 प्रतिशत का बड़ा हिस्सा रखते हैं। एक स्वतंत्र उद्योग में इस तरह का स्वामित्व उन्हें आत्मनिर्भरता और संचालन की स्वतंत्रता प्रदान करता है। अभी हाल में हुए अमेरिका के चुनाव में भारतीय मूल के व्यक्ति रिपब्लिकन एवं डेमोक्रेटिक दोनों पार्टियों में नेता के रूप में उभरे। रिपब्लिकन पार्टी से वी. रामास्वामी ने एक प्रत्याशी के रूप अपनी शक्ति का जोरदार प्रदर्शन किया और अब Department of Government Efficiency (DOGE) का ट्रम्प के शासन में नेतृत्व करने को मिला। दूसरी तरफ कमला हैरिस डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट के रूप में उभरी।

 

पराजय के बावजूद उन्होंने भारतीय मूल के लोगों का प्रतिनिधित्व किया। इसी तरह भारतीय मूल के कैश पटेल Director of Federal Bureau of Investigation (FBI) के प्रतिष्ठित पद पर हैं और तुलसी गैबर्ड जो कि भारतीय मूल की तो नहीं है किन्तु भारतीय संस्कृति से प्रभावित हरे कृष्ण परिवार की ऐसी बेटी हैं जो हिन्दू धर्म के अनुसार जीवनयापन करती हैं। इन्होंने कैश पटेल की तरह भगवद्गीता पर हाथ रखकर शपथ ली थी और डायरेक्टर ऑफ नेशनल इंटेलिजेंस के पद को सम्भाले हुए हैं।

 

इस मामले में मैं अपने अनुभव को विनम्रता से प्रस्तुत करने की कोशिश करता हूँ। मैंने देखा है कि शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय मूल के लोग बहुत आगे हैं। इसका प्रभाव उनके आर्थिक एवं सामाजिक (अमेरिका में सबसे कम अपराधिक मामले भारतीय मूल के लोगों के होते हैं) स्तर पर तो है ही, भारतीय मूल के लोग शिक्षा क्षेत्र में नेतृत्व पदों पर, विशेष रूप से उच्च शिक्षा संस्थानों में नियुक्त है। इसके अत्तावा भारतीय मूल के लोगों ने, विशेष रूप से जैन समाज ने, अमेरिका के 14 विश्विद्यालयों में नामित प्रोफेसर पद (Named Professorship) की स्थापना की है। इसी तरह से सिख समाज ने भी कम से कम दो ऐसे पद नियुक्त करवाये हैं। एक बात और अनुभव में आयी है कि अनेक विश्वविद्यालय भारतीय विषयों का इण्डियन स्टडीज, साउथ एशियन स्टडीज अथवा एशियन स्टडीज के नाम पर अध्ययन करते हैं, परन्तु प्रायः इनमें भारतीयता कम और भारतीय समाज की बुराइयां अधिक दर्शायी जाती रही हैं।

 

इस क्षेत्र में हम लोगों ने जिसमे 'मेसाचुसेट्स यूनिवर्सिटी डार्टमाउथ' के कई प्रोफेसर शामिल थे, एक सेंटर फॉर इंडिक स्टडीज का विश्व में पहला स्थापन किया। वहां पर ऐकडेमिक विषय भारतीयता के आधार पर पढ़ाये जाते रहे हैं। यहां तक कि औपचारिक रूप से योग भी एक विज्ञान के रूप में पढ़ाया जाता है।


निःसंदेह अमेरिकी भारतीय भारत की संस्कृति और भारतीय स्वाभिमान को पूरी दुनिया तक विस्तृत करते हुए मातृभूमि से दूर रहते हुए भी माँ भारती की सेवा की एक अनुपम मिसाल प्रस्तुत कर रहे हैं।