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काशीनाथ जी ने रत्नदीप बनकर समाज के लिए जीवन समर्पित किया – डॉ. मोहन भागवत जी

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स्व. काशीनाथ गोरे के जीवन पर केंद्रित स्मारिका का विमोचन संपन्न

बिलासपुर, छत्तीसगढ़ (30 अगस्त, 2025)।

बिलासपुर स्थित छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान प्रेक्षागृह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व विभाग संघचालक स्व. काशीनाथ गोरे जी के जीवन कर्तृत्व पर केंद्रित स्मारिका का विमोचन सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने किया। कार्यक्रम का शुभारंभ सांघिक गीत व भारत माता के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। स्मारिका विमोचन समिति के सचिव विश्वास जलताड़े ने मंचस्थ अतिथियों का परिचय कराया।

इस अवसर पर सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि बिलासपुर जब भी आया काशीनाथ जी की उपस्थिति अवश्य रहती थी। काशीनाथ जी संघ के स्वयंसेवक थे, ऐसा कहेंगे तो भी उनके जीवन का वर्णन पूर्ण हो जाता है। क्योंकि आद्यरसंघचालक डॉक्टर साहब कहा करते थे, स्वयंसेवक का व्यक्तित्व ऐसा होता है जो लोगों को आकर्षित करता है। काशीनाथ जी से एक बार यदि कोई मिल लेता था तो उसके साथ एक आत्मीयता बन जाती। वह रत्नदीप के समान समाज के उत्तम लोगों में थे..अच्छा काम करने में यश की भी अपेक्षा उन्हें नहीं थी। पूज्य गुरु जी कहा करते थे, संघ में साधारण स्वयंसेवक सबसे महत्वपूर्ण है। एक घंटे की शाखा के बाद भी 23 घंटे उसका जीवन समाज के लिए उपयोगी होता है। संघ स्वयंसेवकत्व से चलता है। सभी बाधाओं व चुनौती में संघ को स्वयंसेवक ने बढ़ाया, संघ को अर्थात राष्ट्र व समाज को बढ़ाया। समाज में अपनत्व को जगाने का कार्य स्वयंसेवक करता है। अच्छे स्वयंसेवक के बारे में यही कहा जाता है कि वह अनुशासित, कर्मठ है। समाज में हो या घर में, वह बिना मांगे सबकी सहायता करता है।

उन्होंने कहा, शिवाजी महाराज जैसा पराक्रम सब चाहते हैं, लेकिन उसे अर्जित करना कठिन है। एक व्यक्ति के नाते परिवार को सुखी रखना, समाज को भी सँस्कारित करना है तो एक संतुलन चाहिए। मेरा कुल क्यों ठीक रहे, समाज हित के लिए, समाज राष्ट्र के लिए श्रेष्ठ बने। इसी चिंतन में सर्वे भवन्तु सुखिनः के दर्शन का साक्षात्कार होता है। ऐसी जिसकी प्राथमिकता सुनिश्चित हो जाती है, वह सबके लिए सज्जन शक्ति होते हैं। सत्य स्वयंसेवक बनने के लिए जो निरंतर प्रयत्नशील रहते हैं, उनका सामान्य जीवन भी अनुकरणीय व प्रेरक बन जाता है। काशीनाथ जी का व्यक्तित्व ऐसे ही सत्य स्वयंसेवक का था।

सरसंघचालक जी ने कहा कि काशीनाथ जी को दायित्व दिया गया हो या नहीं, किन्तु समाज के लिए जो उपयोगी कार्य हो सकता था, वह करते रहे। यथासंभव क्षमता से बिना किसी अपेक्षा से करते थे। सूर्य जैसा प्रखर होकर सारी दुनिया को प्रकाशमय करने वाला व्यक्तित्व भी होता है, लेकिन अंधकार में दीप जैसा प्रकाशमान होना पड़ता है, उसकी आवश्यकता अधिक है। दीप जिस प्रकार जलकर प्रकाश देता है, वैसे ही सद्पुरुष होते हैं। यह एक बहुत अच्छा संयोग है कि संघ की सौ वर्ष की यात्रा के दौरान ऐसे सद्पुरुषों को हम याद कर रहे हैं। संघ को प्रत्यक्ष अपने जीवन में चरितार्थ करने वाले लोगों के स्मरण का यह अवसर है। काशीनाथ जी नहीं हैं, लेकिन उनकी कीर्ति आज भी है। कीर्ति कभी समाप्त नहीं होती।

कार्यक्रम के अध्यक्ष छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने कहा कि उन्होंने अपने जीवन का एक-एक क्षण राष्ट्र के लिए समर्पित किया। स्वयंसेवक, गृहस्थ, शासकीय सेवक हर भूमिका में आदर्श स्थापित किया। उनका पूरा परिवार राष्ट्र कार्य में जुटा रहा, वह परंपरा आज भी जारी है। उनके व्यक्तित्व का आज भी उदाहरण दिया जाता है।