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सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते

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हे नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगल मयी हो। कल्याण दायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को) सिद्ध करने वाली हो। शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। हे नारायणी, तुम्हें नमस्कार है। नवरात्रि के दौरान उत्तर प्रदेश के प्रमुख देवी मंदिरों पर विशेष तैयारियाँ की गई हैं, क्योंकि इन मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है। इस पवित्र अवसर पर मंदिरों को आकर्षक ढंग से सजाया गया है और श्रद्धालुओं के लिए विशेष सुविधाओं का प्रबंध किया गया है। यहां कुछ मुख्य पहलू हैं जिन पर खास ध्यान दिया जाता है।

नवरात्रि के समय लाखों भक्त देवी के दर्शन के लिए आते हैं, इसलिए मंदिर परिसरों में सुरक्षा के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं। पुलिस, होम गार्ड और वॉलंटियर्स की तैनाती की गई है ताकि भक्तों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। CCTV कैमरों के जरिए निगरानी भी बढ़ाई जाती है।

नवरात्रि के दिनों में सुबह से लेकर रात तक विशेष पूजा, हवन और आरती का आयोजन किया जा रहा है। हर दिन देवी के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाएगी और भक्तों के लिए प्रसाद वितरण की व्यवस्था भी की गई है।

कुछ प्रमुख मंदिरों, जैसे विंध्याचल और शारदा देवी मंदिर (मैहर) में, भक्तों के सुविधा के लिए रोपवे की सेवा भी दी गई है ताकि वे आसानी से मंदिर तक पहुंच सकें। साथ ही, वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांगों के लिए विशेष दर्शन की व्यवस्था की गई है।

नवरात्रि के दौरान उत्तर प्रदेश के इन प्रमुख मंदिरों पर प्रशासन और मंदिर समिति द्वारा भक्तों की सुविधाओं और सुरक्षा के लिए विशेष बंधोबस्त किए गए है, जिससे वे बिना किसी बाधा के देवी माँ के दर्शन कर सकें और आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।

उत्तर प्रदेश के देवी मंदिरों का इतिहास अत्यंत समृद्ध और धार्मिक महत्त्व से भरा हुआ है। ये मंदिर भारतीय संस्कृति, आस्था और परंपराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। 

विंध्याचल मंदिर (मिर्जापुर):

मंदिर का महत्त्व: विंध्याचल मंदिर शक्तिपीठों में से एक है, और यहाँ माता विंध्यवासिनी की पूजा की जाती है। यह स्थान देवी सती के शरीर के गिरने के स्थानों में से एक माना जाता है। माना जाता है कि जब राजा सगर के पुत्रों ने माँ विंध्यवासिनी की उपासना की, तो देवी ने उन्हें दर्शन दिए। इसके बाद इस स्थान पर मंदिर का निर्माण किया गया। यहाँ हर साल नवरात्रि में भारी संख्या में भक्त आते हैं।

दुर्गा मंदिर (वाराणसी):

मंदिर का महत्त्व: वाराणसी का दुर्गा मंदिर शक्ति की देवी माँ दुर्गा को समर्पित है। यह मंदिर काशी के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में बंगाल की महारानी ने करवाया था। मंदिर का लाल रंग देवी दुर्गा की शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है। यह मंदिर गंगा नदी के पास स्थित है और यहाँ आने वाले भक्तों की श्रद्धा अद्वितीय होती है।

ललिता देवी मंदिर (प्रयागराज):

मंदिर का महत्त्व: ललिता देवी मंदिर प्रयागराज में स्थित है और इसे शक्तिपीठों में गिना जाता है। यह स्थल देवी सती के "अंगुली" के गिरने के स्थान के रूप में जाना जाता है। धार्मिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने जब देवी सती के शरीर को विभाजित किया था, तब इस स्थान पर देवी की अंगुली गिरी थी। तब से यह स्थल तीर्थ और आस्था का केंद्र बना हुआ है। कुंभ और नवरात्रि के समय यहाँ विशेष आयोजन होते हैं।

मानकामनेश्वर मंदिर (कानपुर):

मंदिर का महत्त्व: मानकामेश्वर मंदिर देवी भगवती माँ काली को समर्पित है, जिन्हें "मनोकामना पूरी करने वाली देवी" कहा जाता है। इस मंदिर की स्थापना कानपुर के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्त्व से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि इस मंदिर में की गई पूजा से भक्तों की सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं। हर साल यहाँ नवरात्रि और दुर्गा पूजा के समय विशेष उत्सव आयोजित किए जाते हैं।

काली देवी मंदिर (लखनऊ)-

मंदिर का महत्त्व: लखनऊ का काली मंदिर माँ काली को समर्पित है, जो शक्ति और विनाश की देवी के रूप में पूजी जाती हैं। यह मंदिर लखनऊ के ऐतिहासिक महत्त्व से जुड़ा हुआ है और माना जाता है कि यहाँ पूजा करने से भक्तों की सभी बाधाएँ दूर होती हैं। नवरात्रि के समय यहाँ हजारों की संख्या में भक्त दर्शन करने आते हैं।

शाकंभरी देवी मंदिर (सहारनपुर):

मंदिर का महत्त्व: यह मंदिर देवी शाकंभरी को समर्पित है, जिन्हें अन्नपूर्णा देवी के रूप में भी जाना जाता है। यहाँ विशेष रूप से नवरात्रि के समय बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। शाकंभरी देवी को उन भक्तों की रक्षक माना जाता है, जो अन्न और जल की कमी से पीड़ित होते हैं। यह मंदिर सहारनपुर जिले में स्थित है और इसका धार्मिक महत्त्व दूर-दूर तक फैला हुआ है।

उत्तर प्रदेश के ये देवी मंदिर केवल धार्मिक स्थल ही नहीं हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति और इतिहास की धरोहर भी हैं। यहाँ की प्राचीन कथाएँ, पूजा विधियाँ और आस्था भक्तों के लिए जीवन में ऊर्जा और शांति का स्रोत बनती हैं।

इस बार नवरात्रि 2024 की विशेषताएं विभिन्न गतिविधियों और धार्मिक अनुष्ठानों के रूप में दिखाई देंगी। नवरात्रि का पर्व 3 अक्टूबर से 12 अक्टूबर तक मनाया जाएगा, जिसमें कुल नौ दिन देवी दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाएगी। इस महापर्व का समापन दशहरा के दिन होगा, जो 12 अक्टूबर को मनाया जाएगा।

दिव्य स्वरूपों की पूजा: प्रत्येक दिन देवी दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाएगी। जैसे कि आज पहले दिन शैलपुत्री, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, और आगे के दिनों में अन्य स्वरूपों की पूजा की जाएगी। इस दौरान भक्तगण विशेष अनुष्ठान और भजन-कीर्तन का आयोजन करेंगे।

गर्भगृह की स्थापना: नवरात्रि की शुरुआत 'घटस्थापना' से होती है, जिसमें कलश स्थापित किया जाता है। यह देवी दुर्गा की ऊर्जा का प्रतीक होता है और इसे पूजा स्थल पर रखा जाता है।

नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम: नवरात्रि के दौरान गरबा और डांडिया जैसे पारंपरिक नृत्य कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, जो न केवल भक्ति का प्रतीक होते हैं, बल्कि सामुदायिक एकता को भी बढ़ाते हैं।

व्रत और उपवास: कई भक्त इस अवसर पर उपवास रखते हैं, जिसमें वे विशेष आहार का सेवन करते हैं। नवरात्रि का पर्व आत्म-शुद्धि और मानसिक स्थिरता का भी प्रतीक है, इसलिए भक्तगण उपवास के माध्यम से अपने भीतर की नकारात्मकताओं को दूर करने का प्रयास करते हैं।

सामुदायिक कार्यक्रम: नवरात्रि के दौरान कई जगहों पर सामुदायिक कार्यक्रम और मेला आयोजित होते हैं, जहां लोग एकत्रित होते हैं, खाना साझा करते हैं, और एक-दूसरे के साथ समय बिताते हैं, जिससे प्यार और एकता का संचार होता है।

इस प्रकार, नवरात्रि का पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक महोत्सव है, जो समुदाय को एकजुट करता है और देवी दुर्गा के प्रति आस्था को प्रकट करता है। 

नवरात्रि का वैदिक महत्व अत्यंत गहरा है और इसे शुद्धता, आस्था, और देवी शक्ति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि इसमें अनेक वैदिक तत्व भी शामिल हैं, जो इसकी गहराई और महत्व को दर्शाते हैं।

शक्ति की पूजा:

नवरात्रि का मुख्य उद्देश्य देवी दुर्गा की शक्ति का सम्मान करना है। देवी दुर्गा को शक्ति, ऊर्जा और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है। वैदिक ग्रंथों में, शक्ति के विभिन्न रूपों की पूजा का उल्लेख मिलता है, और नवरात्रि के दौरान यह परंपरा जीवित रहती है। यह पर्व विशेष रूप से शारदीय नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है, जिसमें देवी दुर्गा के नौ रूपों की आराधना की जाती है।

धार्मिक अनुष्ठान:

वैदिक अनुष्ठानों का पालन करना नवरात्रि के दौरान अनिवार्य होता है। 'घटस्थापना' जैसे अनुष्ठान किए जाते हैं, जो न केवल देवी का स्वागत करते हैं, बल्कि भक्तों के लिए शुद्धता और समर्पण का प्रतीक भी होते हैं। यह अनुष्ठान भक्तों को ध्यान और साधना के लिए प्रेरित करता है।

साधना और उपासना:

नवरात्रि के दौरान भक्त उपवास रखते हैं और विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। यह न केवल भक्ति का प्रदर्शन है, बल्कि आत्म-शुद्धि और मानसिक संतुलन का भी माध्यम है। वैदिक शिक्षाओं के अनुसार, साधना से व्यक्ति के भीतर की नकारात्मकताएँ दूर होती हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

संस्कृति और परंपरा:

नवरात्रि का पर्व भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है। वैदिक ग्रंथों में इस पर्व का उल्लेख होते हुए, इसे विभिन्न रूपों में मनाने की परंपरा है। यह पर्व हर व्यक्ति को एकता, प्रेम और सहिष्णुता का पाठ पढ़ाता है।

समाज और सामूहिकता:

यह पर्व न केवल व्यक्तिगत भक्ति का अवसर है, बल्कि यह समुदाय को भी एकत्रित करता है। भक्त विभिन्न पूजा कार्यक्रमों, गरबा और डांडिया जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, जो सामूहिकता और समाज की एकता को बढ़ावा देते हैं।

इन सभी पहलुओं से, नवरात्रि का वैदिक महत्व न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक भी है। यह एक ऐसा पर्व है जो न केवल भक्तों को धार्मिक अनुशासन सिखाता है, बल्कि उन्हें एकजुट भी करता है। 

उपवास (व्रत) के दौरान कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए, ताकि यह न केवल धार्मिक आस्था को मजबूत करे बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी हो। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बिंदु दिए गए हैं:

संतुलित आहार का चयन:

उपवास के दौरान ऐसी खाद्य पदार्थों का चयन करें जो पोषक तत्वों से भरपूर हों। जैसे कि फल, सूखे मेवे, और कुट्टू का आटा या सिंघाड़े का आटा। यह ऊर्जा बनाए रखने में मदद करेगा। फाइबर युक्त भोजन का सेवन करें ताकि पेट साफ रहे और पाचन में मदद मिले।

जल का पर्याप्त सेवन:

उपवास के दौरान पर्याप्त मात्रा में पानी पीना आवश्यक है। इससे शरीर हाइड्रेटेड रहता है और विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं। फल का रस या नारियल पानी भी अच्छे विकल्प हैं।

भोजन का समय:

उपवास में भोजन के लिए निर्धारित समय का पालन करें। यह सुनिश्चित करें कि आप सुबह और शाम में नियमित अंतराल पर खाने का प्रयास करें। स्नैक्स के रूप में फल या नट्स का सेवन करें ताकि शरीर को आवश्यक ऊर्जा मिलती रहे।

नकारात्मकता से बचें:

उपवास के दौरान मानसिक शांति बनाए रखना महत्वपूर्ण है। नकारात्मक विचारों से दूर रहें और सकारात्मकता का अभ्यास करें। ध्यान या योग करना उपवास के दौरान मन को शांत करने में मदद कर सकता है।

सुगंधित और ताजा भोजन:

हमेशा ताजा और स्वच्छ भोजन का सेवन करें। यदि आप फल या सब्जियाँ खा रहे हैं, तो उन्हें अच्छे से धोकर ही खाएँ।

स्वास्थ्य पर ध्यान दें:

यदि आपको किसी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या है, तो उपवास करने से पहले डॉक्टर से परामर्श लें। यदि आप बहुत कमजोर महसूस करें, तो व्रत को तोड़ने में संकोच न करें।

शारीरिक गतिविधि:

उपवास के दौरान हल्की-फुल्की शारीरिक गतिविधियाँ, जैसे कि योग या सैर, करें। इससे आप ऊर्जा बनाए रख सकेंगे और मानसिक स्थिति भी बेहतर होगी।

इन बिंदुओं का ध्यान रखकर आप उपवास को न केवल धार्मिक रूप से सफल बना सकते हैं, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद बना सकते हैं। 

पूजा का विधान विभिन्न धर्मों और परंपराओं में भिन्न हो सकता है, लेकिन हिंदू धर्म में पूजा का एक विशेष विधान है जिसे श्रद्धा और आस्था के साथ किया जाता है। यहाँ पूजा के सामान्य विधान के कुछ मुख्य बिंदु दिए गए हैं:

पूजा की तैयारी:

स्थान का चयन: पूजा के लिए एक शुद्ध और शांत स्थान चुनें। यह स्थान विशेष रूप से देवी-देवताओं की मूर्तियों या चित्रों के पास होना चाहिए। पूजा स्थल को अच्छे से साफ करें। यह जगह शुद्ध और पवित्र होनी चाहिए।

आवश्यक सामग्री:

पूजा के लिए विभिन्न सामग्री की आवश्यकता होती है, जैसे:

फूल: देवी-देवताओं को चढ़ाने के लिए।

दीपक: आरती करने के लिए।

फल और मिठाई: भोग के रूप में।

गंगाजल या जल: शुद्धता के लिए।

धूप: सुगंध फैलाने के लिए।

पूजा विधि:

नियमित प्रार्थना: पूजा की शुरुआत करने से पहले मन में एकत्रित करना और ध्यान लगाना आवश्यक है।

अभिषेक: देवी-देवताओं को जल, दूध, या अन्य पदार्थों से स्नान कराना।

नैवेद्य: तैयार किए गए भोजन या फल को भगवान को भोग के रूप में चढ़ाना।

आरती: पूजा के अंत में दीप जलाकर आरती करनी चाहिए और सभी उपस्थित लोगों को इसके चारों ओर खड़ा होना चाहिए।

प्रसाद वितरण: पूजा के बाद भगवान का प्रसाद भक्तों में बांटना आवश्यक होता है।

समर्पण और भावनाएँ:

पूजा करते समय भक्त को अपने मन में श्रद्धा और समर्पण रखना चाहिए। प्रार्थनाएँ हृदय से होनी चाहिए, जिससे देवी-देवता की कृपा प्राप्त हो सके।

नियमितता:

पूजा का विधान नियमितता से पालन करना चाहिए। विशेष त्योहारों या नवरात्रि के दौरान विशेष पूजा विधियाँ होती हैं, जो भक्तों के लिए महत्वपूर्ण होती हैं।

इन बिंदुओं का पालन करके भक्त अपने आराध्य देव का सही तरीके से पूजन कर सकते हैं। पूजा का विधान केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह आस्था, संकल्प और समर्पण का प्रतीक है।