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वायु प्रदूषण को कम करने में पीपल का पेड़ सर्वोत्तम

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जयनारायण व्यास विवि, जोधपुर और लाइफ साइंसेज़ यूनिवर्सिटी ऑफ वारसा, पॉलैंड के एक शोध के निष्कर्ष में बताया गया कि वायु को शुद्ध करने में पीपल का वृक्ष सर्वोत्तम है. दूसरे स्थान पर जाल व तीसरे स्थान पर गिलोय का पेड़ पाया गया है. यह शोध जोधपुर में प्रो. ज्ञानसिंह शेखावत (जयनारायण व्यास विवि, जोधपुर) और प्रो. रॉबर्ट पोपेक (लाइफ साइंसेज यूनिवर्सिटी ऑफ वारसा, पॉलैंड) ने मिलकर किया है.

एक समय था, जब अपने घर के आस-पास, गांव में नीम, पीपल, बरगद, गूलर के पेड़ लगाते थे और कहा जाता था कि इससे वातावरण शुद्ध रहता है. लेकिन धीरे धीरे चलन बदला और उनका स्थान फैंसी पेड़ों साइकस, पाम आदि ने ले लिया.

पीपल के वैज्ञानिक महत्व के कारण इसे धर्म से भी जोड़ा गया, वनस्पति विज्ञान और आयुर्वेद भी पीपल के पेड़ के कई तरह के फायदे बताते हैं. धर्म में पीपल के पेड़ को वृक्षों का राजा माना गया है. धर्म शास्त्रों के अनुसार, पीपल के पेड़ में सभी देवी-देवताओं और पितरों का वास होता है. प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, पीपल का पेड़ भगवान विष्णु का जीवन और पूर्णत: मूर्तिमान स्वरूप माना गया है. इन्हीं सभी कारणों से पीपल के पेड़ का धार्मिक क्षेत्र में और आयुर्वेद में भी बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है.

शोधकर्ता प्रो. शेखावत का कहना है कि जोधपुर में वायु प्रदूषण अधिक है. यहां पार्टिकुलेट मैटर अर्थात हवा में उपस्थित छोटे कण बहुत अधिक मात्रा में हैं. जोधपुर में कैडमियम व लैड की मात्रा भी अधिक है. अत्यधिक वायु प्रदूषण के कारण ही उन्होंने अपने शोध के लिए जोधपुर का चयन किया. शोध के लिए जोधपुर के सर्वाधिक प्रदूषित, मध्यम प्रदूषित, कम प्रदूषित और हरियाली वाले 35 क्षेत्रों से 10 पेड़ों की पत्तियों के नमूने लिए गए तथा शोध करके रिपोर्ट तैयार की गई है.

शोध में पाया कि पीपल के पेड़ पर मोम बहुत अधिक होता है. पेड़ों की पत्तियां अपनी सतह पर उपस्थित प्राकृतिक मोम के कारण हवा में तैर रहे भारी धातु कणों (कैडमियम, लैड, निकल, कॉपर, आयरन, कार्बन, सिलिकॉन आदि) को आकर्षित कर चिपका लेती हैं. इससे वायु में उपस्थित धातुओं की मात्रा कम हो जाती है और वायु शुद्ध होती है. बारिश के मौसम में ये कण पानी के साथ बहकर वापस भूमि पर आ जाते हैं.

यह शोध विज्ञान पत्रिका एनवायरमेंटल साइंस एंड पॉल्यूशन रिसर्च ने प्रकाशित किया है तथा भारत की विज्ञान पत्रिका करंट साइंस ने इसे प्रॉब्लम सोल्विंग रिसर्च के रूप में प्रकाशित किया है.