उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। उत्तराखंड कि अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत है किन्तु पिछले अनेक वर्षों में देवभूमि उत्तराखंड में एक बड़ी समस्या देखने में आयी है और वह है पलायन। पिछले कुछ दशकों में उत्तराखंड के गाँवों से देश के दूसरे राज्यों में बड़ी संख्या में पलायान हुआ है किन्तु अब धीरे-धीरे आशा कि एक किरण दिखाई देने लगी है। अब उत्तरखंड के युवा आया तो अपने ही गाँवों में आत्मनिर्भरता कि राह पकड़ रहे हैं या फिर दूसरे राज्यों में न जाकर देवभूमि के ही नगरों-कस्बों में अपने सपनों को साकार कर रहे हैं।
पलायन निवारण आयोग के आंकड़े बताते हैं कि गांवों से स्थायी पलायन घटा है और रिवर्स पलायन ने उम्मीद जगाई है। वर्ष 2018 से 2022 के बीच स्थायी रूप से पलायन करने वालों का आंकड़ा 28,531 पर आ गया, जो वर्ष 2011-18 के बीच 1,18,981 था। यही नहीं, सभी जिलों में बड़ी संख्या में प्रवासी गांव लौटे हैं। इनमें से 6282 गांवों में ही रहकर विभिन्न काम धंधों में रमे हैं।
वे अन्य लोगों को भी रोजगार मुहैया करा रहे हैं। पलायन के दंश से पर्वतीय और मैदानी, दोनों जिले जूझ रहे हैं। यद्यपि, पर्वतीय क्षेत्र के गांवों में यह रफ्तार अधिक है। अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय से चली आ रही पलायन की समस्या के कारण गांव खाली होते चले गए और खेत-खलिहान बंजर में तब्दील। पलायन के दंश का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि पिछले 25 वर्ष में अनेक गाँवों में आबादी उँगलियों पर गिनने लायक रह गयी है।
सरकार ने वर्ष 2017 में पलायन के कारणों और इसके समाधान के उपाय सुझाने के दृष्टिगत पलायन आयोग (अब पलायन निवारण आयोग) का गठन किया। आयोग की पहली रिपोर्ट में बात सामने आई कि वर्ष 2011 से 2018 के बीच 3,83,726 व्यक्तियों ने अस्थायी और 1,18,981 ने स्थायी रूप से पलायन किया। इसके पीछे आजीविका के अवसरों की कमी, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पानी, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव, वन्यजीवों से फसल की क्षति जैसे अनेक कारण सामने आए। यह देखने में आया कि बेहतर भविष्य की आस में लोग मजबूरी में अपने गाँव देहात से पलायन करते चले गए।
सरकार ने पलायन की रोकथाम को ध्यान में रखते हुए कृषि, पशुपालन व डेयरी, मत्स्य, सहकारिता, उद्यान, स्वरोजगार, ग्रामीण विकास, पर्यटन जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया। साथ ही रिवर्स पलायन पर विशेष रूप से जोर दिया। सामरिक रूप से महत्वपूर्ण चीन और नेपाल सीमा के निकट बसे गाँवों में जीवंत ग्राम योजना लाई गयी है जिस पर अभी भी काम चल रहा है।
घर वापसी करने वालों के लिए मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना, पलायन रोकथाम योजना, सीमांत क्षेत्र विकास योजना समेत अन्य योजनाएं लाई गईं। इसके सार्थक परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं। अनेक लोग अब अपने गाँवों कि और लौटने लगे हैं और पलायन करने वालों कि संख्या में भी कमी आयी है। अपने गाँव-देहात से जुड़कर आजीविकोपर्जन करने वाले युवाओं कि संख्या बढ़ी है। सरकार की इस पहल से उत्तराखंड की रौनक लौटने लगी है।



