सहारनपुर, उत्तर प्रदेश
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बसा सहारनपुर, जिसे 'गेट ऑफ यूपी' भी कहा जाता है, सदियों से व्यापार, संस्कृति और इतिहास का संगम रहा है। इसी जिले के लखनौती गांव में खड़ा है वह किला, जो वर्षों पुराने गौरव की याद दिलाता है। लेकिन यह किला लंबे समय से मुसलमानों के अवैध कब्जों में कैद था। ईंट-पत्थरों में दबे इस इतिहास को आजादी मिली जब प्रशासन ने बड़ी कार्रवाई करते हुए 26 बीघा भूमि कब्जा मुक्त कराई। एसडीएम सुरेंद्र कुमार के नेतृत्व में राजस्व व पुलिस की संयुक्त टीम ने यह कदम उठाया। कब्जाधारियों ने हाईकोर्ट तक जाकर बचाव करने की कोशिश की, मगर नाकाम रहे। नोटिस के 48 घंटे बाद भी जब उन्होंने किला खाली नहीं किया तो प्रशासन फोर्स के साथ पहुंचा और कार्रवाई कर डाली।
सदियों बाद मिली मुक्ति
लखनौती किला अब मुसलमानों के कब्जे से मुक्त है। फरजंद अली, शाह हसन, मोहम्मद कारिब, मोहम्मद शारिब और मोहम्मद कुमैल जैसे लोगों ने इस धरोहर को अपनी पैतृक संपत्ति की तरह घेर रखा था, मगर इतिहास ने करवट ली और कब्जा हट गया। प्रशासन ने खसरा नंबर 174 के नाम से दर्ज 26 बीघा जमीन को मुक्त कराया है। अब केवल 500 वर्ग मीटर भूमि पर से कब्जा हटाना शेष है, जिसके बाद किला पूरी तरह स्वतंत्र होगा। कब्जा धारियों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मगर न्यायालय से भी उन्हें कोई स्थगन आदेश नहीं मिला। यह साबित करता है कि उनकी दावेदारी सिर्फ गलत और अवैध थी।
किले में मंदिर मौजूद
किले की सबसे बड़ी खासियत है यहां मौजूद मंदिर। दुर्भाग्य है कि संरक्षण के अभाव में यह अब जर्जर हो रहा है। ग्रामीण बताते हैं कि मुगलकाल में लखनौती व्यापार का गढ़ था। यहां एक बड़ा सर्राफा बाजार होता था। शाही सैनिक चौकियों पर तैनात रहते थे। अंग्रेजों के दौर में भी यहां पुलिस बल ठहरा करता था। अंग्रेजों के समय इस किले पर पोल साहब नामक ऑफिसर ने कब्जा कर लिया था। आज भी कई जगह अंग्रेजी शासनकाल के हुजरे और इमारतें मौजूद हैं। यह बताता है कि किले की अहमियत औपनिवेशिक रणनीति में भी रही।
पर्यटन की अपार संभावना
बसपा सरकार के दौरान इसे ग्रामीण पर्यटन स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया था, मगर योजना ठंडे बस्ते में चली गई। आज भी अगर पुरातत्व विभाग संरक्षण ले और पर्यटन विभाग बजट आवंटित करे तो लखनौती उत्तर भारत का बड़ा पर्यटन आकर्षण बन सकता है। यह महज सरकारी जमीन छुड़ाने का काम नहीं है,अपितु भारत के गौरवपूर्ण अतीत का पुनर्जागरण है। अगर बची हुई जमीन भी मुक्त हो और किले का संरक्षण किया जाए, तो यह किला आने वाली पीढ़ियों के लिए सभ्यता, संघर्ष और संस्कृति का जीवित स्मारक बनेगा।
लखनौती का गौरवशाली इतिहास
इतिहासकार बताते हैं कि 1526 में जब बाबर भारत आया, तो इसी गांव में इब्राहीम लोदी से टकराया, जिसके बाद बाबर ने लखनौती पर अपना कब्जा कर लिया। उस दौर में यहां 79,694 बीघा जमीन पर खेती होती थी और 17 लाख से अधिक दाम मालगुजारी वसूली जाती थी। यह गांव न केवल राजनीतिक अपितु आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी धनी रहा। स्थानीय ग्रामीण मानते हैं कि कब्जा हटना सिर्फ पहली जीत है। असली चुनौती अब संरक्षण और पुनर्निर्माण की है। मंदिर अगर समय रहते संरक्षित हो जाएं तो लखनौती केवल सहारनपुर ही नहीं अपितु पूरे उत्तर भारत के पर्यटन मानचित्र पर चमक सकता है। कब्जा हटने के बाद अब लखनौती किला स्वतंत्र है। यह केवल प्रशासनिक जीत नहीं अपितु भारतीय इतिहास और सभ्यता की पुनः विजय है।