हिंदी विवेक के “सनातन भारत” ग्रंथ में सनातन परम्परा से सम्बंधित सभी प्रश्नों को समाहित किया गया है. विचार, भाषा और कलेवर की दृष्टि से यह अप्रतिम ग्रंथ है. सनातन का सीधा अर्थ है, जो कल भी था, आज है और हमेशा रहेगा. इसका विनाश नहीं हो सकता क्योंकि इसका कोई संस्थापक नहीं हैं. यह सनातन प्रवाह है. जिस प्रकार विज्ञान में तमाम वैज्ञानिक अपने सिद्धांत देते हैं, पर उसका कोई संस्थापक नहीं है, वही मर्म हिन्दू धर्म का है. श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंददेव गिरि जी ने हिंदी विवेक मासिक पत्रिका द्वारा प्रकाशित सनातन भारत ग्रंथ के विमोचन समारोह में संबोधित किया.
उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति में सबके कल्याण की भावना विद्यमान है. हमारी परम्परा में धर्म की जीवन मूल्यात्मक व्याख्या की गई है. गीता में भी बताए गए 26 लक्षण जीवन मूल्य ही हैं. सर्व धर्म समभाव जैसे शब्द को उच्चारने से पहले भारत की परम्परा का ध्यान करो जो कहती है कि, यह सब कुछ परमात्मा का स्वरूप है. विज्ञान जितना विकास करेगा, सनातन को उतना ही प्रमाणित करता जाएगा. संसार में सबसे श्रेष्ठ विज्ञान भारत का था. जिस समाज की बुद्धि मार दी जाती है, वह पीछे हो जाता है. राष्ट्र के निर्माण के लिए समाज, जमीन, परम्परा होनी चाहिए. भारत में यह सदा से विद्यमान रहा.
कार्यक्रम में विशेष अतिथि सुनील देवधर ने कहा कि सनातन धर्म, मैं नहीं तू, का भाव देता है. हमने विश्व को सब कुछ दिया, पर अहंकार नहीं किया. सृष्टि का शोषण नहीं, अपितु सृजन किया. सनातन भारत ग्रंथ समय की मांग है क्योंकि इंडिया तेजी से भारत की ओर बढ़ रहा है. हम 1947 में स्वाधीन हुए, परंतु 2014 में जाकर हम स्व-तंत्र हुए. भारत हर क्षेत्र में प्रगति कर रहा है.
विशिष्ट अतिथि और हिंदुस्थान प्रकाशन संस्था के अध्यक्ष पद्मश्री रमेश पतंगे ने कहा कि डॉ. आम्बेडकर जी ने भारतीय चिंतन को तीन भागों में विभाजित किया था. प्रजातंत्र के लिए ‘अहं ब्रह्मास्मि’ से बड़ा कोई मूल मंत्र नहीं हो सकता. उन्होंने वेदों की कहीं आलोचना नहीं की. चातुर्वर्ण्य की कमियां बताईं, पर उसका निषेध नहीं किया.
अमोल पेडणेकर ने सनातन भारत ग्रंथ के विमोचन कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रस्तुत की और हिंदी विवेक के अब तक के प्रवास पर प्रकाश डाला. दोनों अतिथियों ने पिछले व्यावसायिक वर्ष में सभी टार्गेट पूरा करने वाले हिंदी विवेक के प्रतिनिधियों राजीव जहागीरदार, विलास मेस्त्री, हरिभाऊ ताम्हणकर, के. एस. चौबे और विलास आराध्ये का सम्मान कर उत्साहवर्धन किया. कार्यक्रम का संचालन हिंदी विवेक की कार्यकारी सम्पादक पल्लवी अनवेकर ने किया.