जम्मू एवं कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में नियंत्रण रेखा के समीप स्थित तीतवाल (Teetwal) में पुनर्निर्मित माँ शारदा मंदिर में देश विभाजन (1947) के बाद पहली बार शारदीय नवरात्र में पूजा अर्चना की गई. इस दौरान मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु भी उपस्थित रहे और मंदिर में पूजा अर्चना कर माता रानी का आशीर्वाद प्राप्त किया. मंदिर में पूजा के दौरान हम्पी के स्वामी गोविंदानंद सरस्वती जी अपने अनुयायियों के साथ पहुंचे. इसके अलावा कश्मीरी हिन्दू एवं प्रसिद्ध थियेटर कलाकार एमके रैना भी उपस्थित रहे.
1947 के बाद पहली बार शारदीय नवरात्रि में माता शारदा देवी मंदिर में पूजा को केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी ऐतिहासिक क्षण बताया. केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा – यह आध्यात्मिक महत्व की बात है कि 1947 के बाद पहली बार कश्मीर के ऐतिहासिक शारदा मंदिर में नवरात्रि पूजा आयोजित की गई है. इस वर्ष चैत्र नवरात्रि के अवसर पर भी यहां पूजा की गई थी और अब शारदीय नवरात्रि के अवसर पर भी मंदिर में पूजा के मंत्र गूंज रहे हैं.
मंदिर के पुनर्रुद्धार के बाद केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने वर्चुअली शारदा मंदिर का उद्घाटन किया था. कहा कि उन्हें मंदिर के पुनर्रुद्धार के बाद 23 मार्च, 2023 को मंदिर को दोबारा खोलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था. यह न केवल घाटी में शांति लौटने का प्रतीक है, बल्कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में हमारे देश की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक लौ फिर से प्रज्वलित होने का भी प्रतीक है.
मंदिर के बारे में सेवा शारदा कमेटी कश्मीर के संस्थापक रविंद्र पंडिता ने कहा कि 23 मार्च को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने शारदा माता के मंदिर का उद्घाटन किया था. इस दौरान मंदिर में पंचलोहा मूर्ति प्रतिष्ठापित की गई थी. इससे पहले मां शारदा की मूर्ति को कर्नाटक के श्रृंगेरी से उत्तरी कश्मीर संभाग में नियंत्रण रेखा के करीब स्थित तीतवाल तक ले जाने के लिए एक भव्य सोभा यात्रा निकाली गई थी.
शारदा पीठ – भारतीय सभ्यता व संस्कृति का केन्द्र
हिन्दुओं का यह धार्मिक स्थल लगभग 5 हजार वर्ष पुराना है. प्राचीन काल से कश्मीर को शारदापीठ के नाम से ही जाना जाता है, जिसका अर्थ है देवी शारदा का निवास. यह मंदिर पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले क्षेत्र PoJK में नीलम नदी के तट पर स्थित है. पाकिस्तान के कब्जे में जाने के बाद धीरे-धीरे यह मंदिर खंडित हो चुका है. मान्यता है कि देवी सती के शरीर के अंग उनके पति भगवान शिव द्वारा लाते वक्त यहीं पर गिरे थे. इसलिए यह 18 महाशक्ति पीठों में से एक है या कहें कि ये पूरे दक्षिण एशिया में एक अत्यंत प्रतिष्ठित मंदिर, शक्ति पीठ है. भक्त माता के दर्शन के लिए उत्सुक रहते हैं, लेकिन पाकिस्तान के कब्जे में होने के कारण कोई भारतीय आसानी से यहां नहीं जा पाता है.
1948 तक, गंगा अष्टमी पर नियमित शारदापीठ यात्रा शुरू होती थी. भक्त नवरात्रों के दौरान मंदिर भी जाते. विभाजन से पहले शारदा देवी का तीतवाल मंदिर विश्व प्रसिद्ध शारदा तीर्थ का आधार शिविर था. किशनगंगा नदी के तट पर स्थित मूल मंदिर और निकटवर्ती गुरुद्वारा को 1947 में पाकिस्तानी हमलावरों द्वारा नष्ट कर दिया गया था. तब से, न तो सरकारों और न ही किसी संगठन ने इन धार्मिक स्थलों के पुनर्निर्माण के लिए कोई पहल की. शारदा पीठ देवी सरस्वती का कश्मीरी नाम है. यह छठी और बारहवीं शताब्दी के बीच भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्राचीन विश्वविद्यालयों में से एक था और मध्य एशिया और भारत के विद्वान ऐतिहासिक शिक्षा के लिए यहां आते थे. शारदा मंदिर का पुनर्निर्माण शारदा पीठ की प्राचीन तीर्थयात्रा की पुन: शुरुआत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
#Navratri2023 #Blessings
— Information & PR, J&K (@diprjk) October 15, 2023
Embracing the divine on the first day of #Navratra at the holy Sharda Mata Mandir Teetwal Kupwara .
Devotees gather in huge numbers to seek the blessings of Mata with enthusiasm.@PMOIndia@HMOIndia@OfficeOfLGJandK@MinOfCultureGoI@PIB_India… pic.twitter.com/aEQTIBPMig