अयोध्या नगरी प्रभु श्रीराम के स्वागत की तैयारियों में जुटी हुई है. समस्त राम भक्त भव्य मंदिर में श्रीरामलला के विराजमान होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं. श्रीरामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र मुक्ति आंदोलन में बलिदानी कारसेवकों के परिवारों को भी प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने के लिए निमंत्रण भेज रहा है.
समाजवादी पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने तुष्टिकरण की राजनीति के चलते हजारों निहत्थे राम भक्तों पर गोलियां चलवाईं थीं. जिसमें अनेकों रामभक्त बलिदान हो गए थे.
ऐसे ही एक बलिदानी हैं – रमेश कुमार पांडेय जी. उनका परिवार हनुमानगढ़ी मंदिर से थोड़ी दूरी पर रानी बाजार क्षेत्र में रहता है. जिस समय अयोध्या में देशभर के रामभक्त कारसेवा के लिए जुटे थे तो रमेश कुमार उनकी सेवा में लगे थे. 2 नवंबर, 1990 को मुलायम सिंह यादव सरकार ने जब रामभक्तों पर गोली चलाने का आदेश दिया तो एक गोली रमेश कुमार पांडेय को लगी. जिसमे वह मौके पर ही बलिदान हो गए.
उनके छोटे बेटे सुरेश ने बताया कि बलिदान के समय उनके पिता अपने पीछे पत्नी, 2 पुत्री और 2 पुत्र का परिवार छोड़ गए थे. उस समय उनकी मां (रमेश पांडेय की पत्नी) की उम्र महज 35 वर्ष थी. बेहद ही साधारण और वर्षों पुराना सा दिखने वाला यह मकान परिवार ने किराए पर लिया है. सुरेश ने बताया कि यह मकान उनके पिता के समय से ही किराए पर है, लगभग 40 वर्षों से परिवार इसी मकान में रह रहा है. यह मकान अयोध्या के “राजपरिवार” की संपत्ति है.
पिता के देहांत के बाद माँ ने संभाला परिवार
अपने बचपन का स्मरण करते हुए सुरेश ने बताया कि 1990 में बलिदान के समय उनके पिता की उम्र 40 वर्ष के आसपास थी. उनके बलिदान होने के बाद पूरे परिवार की जिम्मेदारी उनकी मां पर आ गई. परिश्रम कर परिवार को पालन किया, सभी बेटी-बेटों की शादियाँ की.
सुरेश ने बताया कि अब तो मेरे भी बाल-बच्चे हैं, और एक छोटी सी दुकान चला कर अपने परिवार का गुजारा चला रहा हूँ, और अपनी माता जी के साथ रह रहा हूँ.
सुरेश पांडेय 2 नवंबर, 1990 की घटना को याद करते हुए भावुक हो गए और 30 अक्तूबर, 1990 को गोलीकांड के बाद तत्कालीन मुलायम सरकार इस भ्रम में थी कि उन्होंने राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन को कुचल दिया है.
लेकिन अयोध्या में मौजूद रामभक्तों का जत्था भगवान राम के दर्शन के लिए जन्मभूमि की तरफ कूच कर चुका था. इस जत्थे में देशभर के रामभक्तों के साथ अयोध्या के रामभक्त भी मौजूद थे. रामभक्तों के इस जत्थे को रामजन्मभूमि की और बढ़ते देख घेराबंदी की गई और आदेश मिलते ही रामभक्तों पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दी गईं. जत्थे के आगे चल रहे पिता जी (रमेश कुमार पांडेय) के सिर में गोली लगी, वह जमीन पर गिर पड़े और मौके पर ही बलिदान हो गए.
सुरेश ने बताया कि पिता के बलिदान के समय हम सभी भाई बहनों की उम्र बहुत कम थी तो उस समय माता जी को पिता जी का शव लेने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ी थी. पहले तो कोई भी प्रशासनिक अधिकारी यह बताने को तैयार नहीं था कि आखिर हुआ क्या है. जब अधिकारियों से कोई जानकारी नहीं मिली तो माता जी ने उस जत्थे के लोगों से संपर्क किया, जिस जत्थे के साथ पिताजी चल रहे थे. तब जत्थे में साथ चल रहे लोगों ने बताया कि उनके पिताजी को भी गोली लगी है और उनका देहांत हो गया है.
जानकारी मिलने के बाद उनकी माँ ने कई जगहों पर मिन्नत की और अन्न-जल त्याग कर वह पार्थिव शरीर को लेने के लिए दौड़ती रहीं. कई जगह निराशा हाथ लगी. लेकिन अंततः तमाम शवों के बीच उन्हें पिता जी (रमेश पांडेय) का पार्थिव भी मिला. अंतिम संस्कार के समय भी पूरी अयोध्या पुलिस छावनी बनी थी और शव यात्रा में शामिल लोग भी बंदूकों के साये में थे. सभी कानूनी औपचारिकताओं के बाद ही अंतिम संस्कार हो पाया.
सुरेश ने बताया कि पिता जी के देहांत के बाद जब उनकी माँ परिवार पालने के लिए संघर्ष कर रही थीं, तब कोई मदद प्राप्त नहीं हुई. इतना जरुर था कि स्थानीय प्रशासन ने उनके जख्मों को ढकने के लिए 1 लाख रुपये दिए थे, जो परिवार के भरण-पोषण के लिए नाकाफी थे.
भव्य मंदिर निर्माण पर कहा कि श्रीराम के मंदिर के निर्माण से केवल उनका परिवार ही नहीं, बल्कि प्रत्येक कारसेवक का परिवार प्रसन्न है. जिस तरह आज मंदिर निर्माण को देखकर मेरे पिता की आत्मा को शन्ति मिलती होगी, ठीक उसी तरह उन सभी आत्माओं को भी शांति मिल रही होगी जो मंदिर निर्माण के लिए बलिदान हो गए.