·
देश के नागरिकों
का देशद्रोह में उपयोग किया जाना अत्यंत गम्भीर चुनौती है.
· राष्ट्रवादी सरकारें सत्ता में आएं यह सुनिश्चित करना हमारा दायित्व
हम स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। यह प्रसन्नता का विषय है। अमृत महोत्सव में हर्षोल्लास होना ही चाहिए, प्रसन्नता व्यक्त करने के लिए विभिन्न माध्यमों का उपयोग होना ही चाहिए परन्त बाद की बात अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि अमृत महोत्सव में स्वतंत्रता की निरंतरता पर चिंतन और मंथन करना भी अति आवश्यक है, नहीं तो अमृत महोत्सव का उल्लास बहुत दूर तक नहीं जा पाएगा। इसलिए आज हमारे राष्ट्र के समक्ष जो चुनौतियां खड़ी हैं या जो विद्रूप उपस्थित है या साधारणा भाषा में कहूं कि जो समस्याएं हैं, उन पर भी गंभीरता से चिन्तन और मंथन करना इस स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव पर अनिवार्य रूप से होना ही चाहिए।
इन चुनौतियों के दो प्रकार प्रमुख हैं जिनमें एक तो बाह्य चुनौतियां हैं और दूसरी आंतरिक चुनौतियां हैं। बाह्य चुनौतियों में अन्य देशों द्वारा उत्पन्न चुनौतियां सामने दिखती हैं। उनका कूटनीतिक हल किया जा सकता है और वर्तमान सरकार बड़े कूटनीतिक तरीके से उनका समाधान सम्मान पूर्वक कर रही है जैसे अमेरिका और चीन की तरफ से आने वाली चुनौतियों को वर्तमान भारत सरकार ने बहुत ही सम्मानजनक ढंग से हल किया है।
इन बाह्य चुनौतियों में कुछ गुप्त यानी खुफिया चुनौतियां भी होती हैं जो अधिक गंभीर होती हैं और अधिक खतरनाक भी हैं। इनसे निपटना भी आसान नहीं होता है - जैसे पाकिस्तान द्वारा जो प्रॉक्सी वार यानी छद्म युद्ध किया जा रहा है जो एक गंभीर चुनौती है। क्योंकि वह भारत से सीधा युद्ध नही कर सकता है इसलिए वह छद्म युद्ध कर रहा है और उसका एकदम निकटतम यानाी जो ताजा उदाहरण है हिन्दुओं की नृशंस हत्या जिसमें उन्हें तालिबानी तरीके से गलाकाट कर मारा गया है क्योंकि उनके तार विदेशी खुफिया एजेंसियों से जुड़े हैं। इसलिए यह बाह्य गंभीर चुनौती है।
पर यह चुनौती साधारण आदमी से इसलिए जुड़ी है कि इसमें हमारे ही देश के नागरिकों का देशद्रोह में उपयोग किया गया है और ये वही भारत के नागरिक हैं जो भारत का खाते हैं यहां के संसाधनों का भरपूर उपयोग करते हैं, सबसे अधिक सुविधाओं का उपयोग करते हैं और सदा अपने आप को सताए हुए दिखाते हैं। उन्होंने ही शत्रु देश के टूल के रूप में काम किया है और उन्होंने यह काम पैसे के लिए नहीं अपितु अपने मजहब के प्रचार-प्रसार और उत्थान के लिए किया है। यह अत्यंत गंभीर विषय है। इसलिए इस चुनौती से निपटना भारत सरकार के लिए निकटतम है क्योंक इसमें हमारे ही देश के नागरिक शत्रु देश के लिए मजहब के नाम पर काम कर रहे हैं। इसलिए उनसे निपटना आसान नहीं है। सीमा पर तो हमारे सैनिक हर तरह की चुनौती का मुकाबला करने के लिए हर क्षण तत्पर और सिद्ध रहते हैं परंतु अंदर जो नागरिक शत्रु देश से मिले हुए हैं, उनसे निपटना सेना का काम नहीं है, प्रशासन का काम है। परंतु प्रशासन राज्य सरकारों के अधीन हैं और कुछ राज्य सरकारें अपने स्वार्थों के लिए इन देशद्रोही नागरिकों के बचाव का भी हर संभव प्रयास करती हैं। परन्तु देश को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी जहां राज्य सरकारों की है वहीं केन्द्र सरकार की अधिक है। इसमें यदि राज्य सरकारें अपने स्वार्थों के लिए सहयोग न भी करें तो केन्द्र सरकार को इस तरह की कार्य योजना बनानी बहुत आवश्यक है जिससे देश का प्रत्येक नागरिक सुरक्षित रह सके। वैसे केन्द्र सरकार अपने तरीके से कर भी रही है। इसलिए देश की स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव पर इस समस्या पर भी विचार किया जाना अति आवश्यक है। यदि हमने इसे अनदेखा कर दिया तो फिर आने वाले दिनों में स्वतंत्रता के उत्सव मनाना भी कठिन हो जाएगा।
परंतु यह काम सहज यानि आसान नहीं है। हमें धर्मांधता को खत्म करना है पर यह सहज नहीं हैं क्योंकि जब भी सरकार थोड़ा भी प्रयास करती है तो शत्रु समर्थक धर्मान्ध लोग ही नहीं कुछ अन्य तथाकथित मानवाधिकारी देशद्रोही और कुछ राजनीतिक पार्टियां उनके साथ आ खड़े होती है। और इतना ही नहीं उनसे भी आगे आकर खड़ी हो जाती है। इसलिए पहला कदम तो सरकार को यह उठाना चाहिए कि सरकार देश के निवासियों को समान भारतीय माने, अलग-अलग खांचों में नहीं बांटा जाए जिस तरह से पहले से बांटा हुआ है यथा अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक, अगड़े-पिछड़े, स्त्री-पुरुष आदि आदि।
यह पहला और अति महत्वपूर्ण कदम है जिससे सब नागरिक समान होंगे तो देश में पूरी तरह से न सही परंतु आंशिक रूप मंे तो यह समानता आएगी ही। इसी पर सभी प्रकार की धार्मिक शिक्षा का सामूहिक रूप समाप्त होना चाहिए। व्यक्तिगत धार्मिकता बनी रहे। परंतु यह बहुत सहज नहीं हैं। इसके लिए राष्ट्र के आम नागरिकों को निरंतर कुछ वर्ष राष्ट्रवादी सरकारों को ही सत्ता में लाते रहना होगा।
इसी तरह कुछ दूसरी चुनौतियां भी हैं जिनमें बढ़ती जनसंख्या और सीमित संसाधन भी देश को प्रगति के बजाय अवनति की ओर ले जाएंगे। जिससे बेरोजगारी, भुखमरी और अपराधजीवी प्रवृत्ति स्वाभाविक रूप से जन्म लेती है। अन्यान्य चुनौतियों में सुशासन भी एक गंभीर समस्या है पर वह स्वतः निर्मित है और इसका समाधान भी थोड़ा कठिन है किन्तु दृढ़ इच्छाशक्ति से इसे भी हल किया जा सकता है। पर यह हमारे राजनेताओं से सम्बद्ध है। क्योंकि हमारे स्थानीय नेता ही इस समस्या के लिए अधिक उत्तरदायी हैं। क्योंकि वे ही समस्या को अधिक बढ़ाते हैं यदि नेताजी से फोन करने का अधिकार बलपूर्वक समाप्त कर दिया जाए तो आधी से अधिक समस्याएं स्वतः ही हल हो जाएंगी। क्योंकि वे अपने आदमियों के लिए फोन करते हैं तो दूसरों को तो हानि होती ही है।
इसी तरह सर्वाधिक बदनाम पुलिस विभाग है। जिसमें सबसे अधिक मनमानी चलती है। जांच अधिकारी काले को सफेद और सफेद को काला आसानी से कर देते हैं। फिर उसके बाद न्यायालय इस काले सफेद को खूब खींचता है। जिसमें कई बार तो वादी भगवान को भी प्यारा हो जाता है। पर न्यायालय की तराजू हिलती तक नहीं है। इसलिए आवश्यक है मुकदमों को निश्चित समय सीमा में सरकार मिटाने का कोई नियम अवश्य बनाएं ताकि देश के नागरिकों को अमृत महोत्सव में न्याय मिले और अमृत महोत्सव के आनंद की अनुभूति हो।
अन्य भी बहुत सी चुनौतियांे का आप भी जीवन में निश्चित सामना करते हैं उन्हें भी आप इस तरह उठाएं जिनसे उनका समाधान हो सके। हम समस्या को बढ़ाने के बजाय उस को हल करने में सहभागी बनें तो हमारा स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव बहुत ही सार्थक होगा और देश भी प्रगतिगामी बनेगा। इसलिए आओ हम स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव को आनंद व उल्लास के साथ मनाते रहने के लिए अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें और देश के लिए कुछ करने का संकल्प भी लें।
(लेखक साहित्यकार हैं)
नोट : ये लेखक के निजी विचार हैं