कोटा. सामाजिक समरसता के लिए कार्यरत संघ स्वयंसेवकों ने शुक्रवार को इटावा में गाड़िया लोहार समाज की बेटी के विवाह में कन्यादान किया.
कोटा जिले की इटावा तहसील में रहने वाले बाबूलाल गाड़िया लोहार की बेटी पूजा का शुक्रवार को विवाह समारोह आयोजित हुआ. जिसमें समरसता का संदेश देते हुए संघ के स्वयंसेवकों ने कन्यादान किया, बारातियों का स्वागत कर भोजन व्यवस्था संभाली तथा बाद में गाड़िया लोहार समाज के साथ भोजन किया.
इस अवसर पर जिला संघचालक ने कहा कि आप और हम अलग नहीं हैं. आपके और हमारे महापुरुष एक हैं. हममें कोई छूत-अछूत नहीं है. हम सब एक हैं, हमारा रक्त का संबंध है.
उन्होंने कहा कि विमुक्त, घुमंतू, अर्द्धघुमंतू, जनजाति समाज को मुख्यधारा में लाना आवश्यक है. हमारा उद्देश्य सर्व विमुक्त घुमन्तू समाज के लोगों के उत्थान, कल्याण, विकास एवं उनकी समस्याओं के लिए कार्य करना है.
विमुक्त घुमंतू, अर्द्धघुमंतू जाति समाज के कोटा के संयोजक ने कहा कि घुमंतू समाज देशभक्त, स्वाभिमानी और सम्पन्न समाज है. आक्रांताओं से लड़ाई में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है. घुमंतू समाज के लोग देश के आर्थिक, धार्मिक, स्वतंत्रता सेनानी हैं. देश के लिए बलिदान देने के बाद भी 70 वर्षों से इस समाज को आधार कार्ड, जाति प्रमाण पत्र, वोटर आईडी कार्ड सहित अन्य छोटे-छोटे अधिकारों से वंचित रखा गया. समाज से आह्वान किया कि मतांतरण के बहकावे में न आएं तथा सभी मिलकर अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाएं.
गाड़िया लोहार समाज का इतिहास
इनके पूर्वज चित्तौड़ शासकों के सहयोगी के रूप में लुहारी का काम करते थे. 16वीं शताब्दी तक मेवाड़ राज्य का हिस्सा थे और सामान्य जीवन जी रहे थे. लेकिन 1568 में चित्तौड़ पर अकबर के हमले के बाद ये लोग यहां से निकल गए और प्रतिज्ञा की कि जब तक चित्तौड़ पुराने वैभव को प्राप्त नहीं कर लेगा, हम घर बनाकर नहीं रहेंगे, पलंग पर नहीं सोएंगे. तब से ही आज भी अपनी गाड़ियों में ही जीवन यापन कर रहे हैं. इसीलिए इन्हें गाड़िया लोहार कहा जाता है. ये लोहे का सामान बनाने में कुशल होते हैं. महाराणा सांगा के समय सेना के लिए हथियार बनाना व उनकी मरम्मत करना ही इनका काम था. बाद में जब अंग्रेजों ने बिना लाइसेंस शस्त्रों को रखने पर प्रतिबंध लगा दिया, तब से कृषि उपकरण व घरेलू उपयोग की वस्तुएं जैसे कुल्हाड़ी, फावड़ा, तगारी, तवा, कढ़ाई, चिमटा, बाल्टी, गेट आदि बनाने लगे.